शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

किसी के दबाये कब दबी है ...प्रतिभा


कली ने कहा -तुम खिलना छोड़ दो ,
न फूल बनो
और ना ही अपनी खुशबू से ,
सारे संसार को महकाओ ,
वह न मानी
खिली खूब खिली !
फूल बनकर रही
चारों ओर अपनी खुशबू से
संसार को महका दिया !
हिरन ने कहा -तुम दौड़ना छोड़ दो ,
अपनी कस्तूरी गंध को छिपा के रख दो ,
उसने भी न दौड़ना छोड़ा
न अपनी गंध को संजोकर रखा
आगे बढी,देखा एक छोटी सी नदी
बह रही थी ,
उसे रोकने का प्रयास किया
विफल हो गयी
देखती हूँ आगे बढ़कर ,उसने एक
विशाल सरिता का रूप
धारण कर लिया है ,
ओर अब तो वह तीव्र गति से बह रही है !
ऊपर मुख किया तो देखा कि
सूर्य को रोकने की ताकत
मुझमें नहीं
उसका प्रकाश
कम करने की हिम्मत
मुझमें नहीं .......
उसी प्रकार

एक प्रतिभावान व्यक्ति की
प्रतिभा छिप नहीं सकती
दबाई नहीं जा सकती ,
उसकी गति रोकी
नहीं जा सकती ,
उसकी तेजस्विता
कम नहीं की जा सकती
वह कहीं न कहीं दिखाई देती है
उसकी योग्यता दिखाई देती है !

पर ......उग आती हैं बेटियाँ


बोये जाते हैं बेटे
ओर उग आती हैं बेटियाँ
खाद पानी बेटों में
और लहलहाती हैं बेटियाँ
एवरेस्ट की ऊँचाइयों तक ठेले जाते हैं बेटे
ओर चढ़ जाती हैं बेटियाँ
रुलाते हैं बेटे
और रोती हैं बेटियाँ
कई तरह गिरते और गिराते हैं बेटे
और संभाल लेती हैं बेटियाँ
सुख के स्वप्न दिखाते हैं बेटे
जीवन का यथार्थ होती है बेटियाँ
जीवन तो बेटों का है
और .........मारी जाती हैं बेटियाँ .

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

नपुंसक नेता ,भटके नक्सली और हमारी शिकायत

आपने ,हमने ,सबने
सुना ,पढ़ा
दंतेवाडा के क्रूर कारनामे के वक्त
नक्सलियों की क्रूरता तो देखी
लेकिन जवानों को दांव पर लगाने वाले
महानायकों की नपुंसकता किसने देखी ?
कसक दिग्गी राजा की -
अच्छा !नक्सली दुश्मन है ?
बम फोड़ता है ?जवानों को गोली मारता है ?
मगर सुन -दोस्ती में -इतना तो सहना ही पड़ता है
तय है -जरुर खोलेंगे एक और खिड़की -उसकी खातिर
मगर -हम नाराज हैं -तेरे लिए इतना तो कहना ही पड़ता है
तुम भी -बड़े जिद्दी हो -माओवादी भी बेचारे क्या करे
इतने बम फोड़े-इतनी गोलियां चलाईं -शर्म करो
तुमलोग सिर्फ ७६ ही मरे -इतने बेशर्म
चलो ठीक है -इतने कम से भी-उसका हौसला तो बढ़ता है
और फिर -तुम भी तो आखिर ११५ करोड़ हो -
क्या फर्क पड़ता है ?
भटके माओवादियों से मेरी शिकायत -
चुकाना तो पड़ेगा -इस प्यार का कर्जा
राजनेता दुनिया भर से -कर दी है शिकायत -की वो मारता है
दुनिया को फुर्सत मिले -तब तक तू यूँ ही मारते जा
किसे पडी है की -कौन मरा-और मारा गया कौन ?
मरना ही है तो -दर्जनों सैकड़ों नेताओं को मार
इनके लिए भी रख लेंगे ?
दो मिनट का हम मौन ।
समाधान -
ओढ़ी राजनीती ने अनीति की जो चादर है
एक बार उसे तार -तार होने दीजिये !
तो भूखे सिंह शावकों को खोल इसे
भेड़ियों सा शिकार होने दीजिये !!

रविवार, 7 मार्च 2010

केवल एक पक्ष की बात बेईमानी है


देश के साथ -साथ दुनिया भर की " निगाहें "भी आज भारत की और अवश्य होंगी आखिर हो भी क्यों न !सौवीं अंतर्राष्ट्रीय दिवस के मौके पर महिलाओं को ३३ प्रतिशत आरक्षण के सौगात की शुरुआती बाधा जो पार होने वाली है संभव है की आज यह बिल राज्यसभा से पेश और पारित हो जाए !कई महीनों से महगाई की आग में जल रहे आम लोगों की पीडाओं को दबाकर उससे न केवल निजात पाने की अथवा मूल मुद्दों से ध्यान हटाने का तरीका अगर सीखना हो तो वर्तमान कांग्रेसनीत सरकार से बढ़िया और क्या उदहारण हो सकता है
एक तीर से कई शिकार के मुहावरे तो आपने बहुत सुने होंगे ,लेकिन इसे सही निशाने के साथ शिकार करने के रोचक और अदभुत उदाहरण हमारे सामने हैं लेकिन आपको इसके लिए बाहरी आँखों के साथ - साथ अन्दर की आँखे भी खोलनी होगी
पिछले सप्ताह महगाई के मुद्दे पर विपक्ष के तमाम दलों सहित सरकार में बाहर से समर्थन दे रहे सपा ,राजद ने सरकार के नाकों में दम कर रक्खा था !इस एकजुटता के कारण संप्रग सरकार खासा परेशान हो रही थी !एसा प्राचीनकाल में राजा महाराजाओं के समय में भी होता रहा है जब महाराज परेशान होते थे तो उनके चाटुकार दरबारी ,मंत्री आदि उनको समाधान सुझाया करते थे !
आज इस चाटुकारिता की परम्परा को आधुनिक तड़का लगाकर लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ माने जाने वाले मीडिया बखूबी निभा रहें है और अधिकाँश चैनल तथा कुछ हद तक प्रिंट मीडिया के समाचारपत्रों ने भी इस खेल में बखूबी सहयोग किया !तभी तो महगाई से जूझ रहे अरबों लोगों की समस्या के सामने पहले से प्रायोजित योजनाओं के तहत चन्द बाबाओं के कारनामों को प्रचारित -प्रसारित किया जाने लगा जैसे देश के सम्मुख महगाई जैसी विकराल समस्या के आगे ये बाबा ही देश के सबसे बड़े दुश्मन हों !इसका यह कतई मतलब नही लगाया जाना चाहिए की मै इन कारनामों का समर्थन करता हूँ और विगत सप्ताह से चौबीसों घंटे महगाई से पीड़ित जनता के स्वरों की जगह तथाकथित बाबाओं के कारनामों ने चैनलों की टीआरपी बढाने में भरपूर मदद की मीडिया चैनलों की टीआरपी जैसे -जैसे बढ़ती गयी महगाई से पीड़ित आम जनों का स्वर दबता गया न की महगाई दबती गयी तथाकथित बाबाओं के कारनामे अभी समाप्त भी न हुए थे की सरकार द्वारा पहले से तैयार अचूक रामबाण के रूप में मीडिया को महिला आरक्षण के रूप में एक अमोघ और कारगर अस्त्र मिल गया और सरकार को अपने नाकामियों पर परदे डालने का उपयुक्त अवसर
महिलाओं को ३३ प्रतिशत आरक्षण देकर जिस श्रेय को सोनिया पार्टी सहित सहयोगी दल हासिल करना चाहते है उसमे मूल प्रश्नों को उठाने वाला कोई दीखता नहीं !
आज सत्ता के भोगी इन खटमलों से यह सवाल पूछा जाना चाहिए की -
(01)आखिर आजादी के पश्चात ६३ वर्षों के समयांतराल तक जिन कन्धों पर सत्ता रही उन्होंने महिलाओं को पिछड़े पायदान पर क्यों रखा ?उनकी सहभागिता आपने क्यों नहीं बढाई ?
(02)आपके हाथ में अवसर रहने के वाबजूद आपने उन्हें समुचित अवसर क्यों नहीं उपलब्ध कराये ?
(03)अपने परिवार के महिलाओं को तो आपने खूब आगे बढ़ाया लेकिन अन्य महिलायें क्यों पीछे रह गयी ?
(04) क्या इनके लिए ६३ वर्षों का समय बहुत छोटा होता है ?अगर नहीं तो इन ६३ वर्षों के दौरान देश के साथ होने वाले विश्वाशघातों का जबाब कौन देगा ?
(04)केवल राजनेता ही नहीं बल्कि जनता के करों से अपने पेट पोषने वाले प्रशासनिक अधिकारियों को भी यह जबाब देना होगा की इन लम्बे अंतरालों में आखिर उन पिछड़े स्तरों तक ,अंतिम पायदान पर खड़े लोगों तक विकाश की किरणों को क्यों नहीं पहुंचा पाए ?
अपनी नाकामियों को छुपाने का इससे बेहतर क्या हो सकता है की महिला आरक्षण के बहाने लालीपाप थमाकर उनका मुह ही बंद कर दो जिन मुखों से देर सबेर यह आवाज यह प्रश्न अवश्य सत्ता के सीने पर चढ़कर अपने साथ हुए अन्याय का उत्तर मांगेगा
सत्ता के इस घिनोने खेल में मीडिया न केवल उसके एजेंडे को पूरा करते नजर आये बल्कि इस हेतु उन्होंने प्रोपगेंडा का भी भरपूर इस्तेमाल किया !इसका दो उदाहरण हमें मार्च ०६ को डीडी न्यूज तथा जी न्यूज पर दोपहर में प्रसारित कार्यक्रमों में देखने को भी मिला
(01)दोपहर में डीडी न्यूज पर महिला आरक्षण विषय को लेकर सौम्य तरूणी एंकर द्वारा चर्चा प्रसारित की जा रही थी। जिसमें एक ओर अधेड़ लोगों को बैठाया गया था वहीं दूसरी तरफ चौदह से सोलह आयु वर्ग की नौवीं तथा दसवीं में पढ़ने वाली दर्जनों लड़कियाँ बैठी थी। इसके अलावे मुख्य वार्ताकार के रूप मे चार पांच और भी सम्मानीया महिलाएं बैठी थी। एक ओर बीस बाइस लड़कियों / महिलाओं का समूह साथ में एंकर का भी परोक्ष समर्थन था जबकि दूसरी ओर चार से पांच निर्जर- निर्बल पुरूष बैठा था ।अब इससे आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि वार्ता का निष्कर्ष क्या रहा होगा क्या यह प्रोपगेण्डा नहीं था ? जिस अल्प आयु की युवतियों को अभी ठीक प्रकार से घर परिवार की समझ नहीं थी वह स्टूडियो रूम में बैठकर महिला आरक्षण की दिशा और दशा तय कर रही थी।
इसका यह अर्थ नहीं है कि मैं इनके बुद्धिमत्ता पर सवाल खड़े कर रहा हूं, लेकिन ये लडकियां जैसी सवाल कर रही थी उससे जरूर उनके बुद्धि पर सवाल खड़ा होता है। उनमें से एक बहन जी ने अपने पिता के समान पुरूष वर्ग को संबोधित करते हुए बड़े ही आवेश में कहा कि इन लोगों को शर्म आनी चाहिेए कि महिलाओं को देवी के समान पुजने की बात तो करते हैं लेकिन छोटा सा आरक्षण नहीं दे सकते और इस जोरदार तर्क पर उनकी सहेलियों ने ऐसी जोरदार तालियां बजाई कि जिससे लगा कि पहले से यह मैच फिक्स हो और तालियां बजाने के लिए ही लाई गयी हो। वास्तव में कभी कभार डीडी न्यूज पर ऐसा होता भी है पर जीवंत कल देखने को मिल भी गया प्रश्न भी लड़कियों को पहले से लिखकर ही दे दिए गए थे।
(02) दूसरा प्रकरण जी न्यूज पर देखने को मिला दोपहर में प्रसारित महिला आरक्षण से संबंधित पैनल डिस्कशन में एक ओर रंजना कुमारी तथा महिला आयोग की पूर्व अधिकारी समेत कई महिलाएं बैठी थी तो वहीं दूसरी ओर पुरूष के नाम पर एक मात्र ओबीसी समुदाय के नेता थे। सौभाग्य से इस शो की एंकर भी तरूणी महिला ही थी। बार -बार पुरूष नेता के सवाल पर चारों महिला ऐसे टूट पड़ती थी कि महिलाओं के सबसे बड़े खलनायक यही हैं। एक ओर आधा दर्जन महिलाओं का समूह दूसरी ओर अकेला नेता परिणाम क्या होगा यह आप बखूबी समझ सकते हैं यह भी प्रोपगेण्डा का दूसरा प्रकार था ।
अधिकांश मिडिया चैनलों तथा मुद्रित माध्यम के पत्रों ने महिला आरक्षण के मूल स्वरूप का विरोध कर रहे राजद सुप्रीमों लालू यादव, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव तथा जदयू अध्यक्ष शरद यादव को खलनायक के रूप में पेश करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं इन यादवी नेताओं का समर्थक हूं लेकिन मिडिया हाउसों ने ऐसा वातावरण निर्मित किया जैसे महिलाओं के सबसे बड़े दुश्मन ये यादव नेता ही हैं।
इन विवादों में मूल प्रश्न अनुत्तरित ही रह गया जिसका जबाव मिलना अभी बाकी है कि आखिर आजादी के तिरेसठ वर्षों के बाद भी महिलाओं का उत्थान क्यों नहीं हो पाया ? क्या अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए सत्ता तंत्र आरक्षण का सहारा नहीं ले रहें हैं ?आखिर आरक्षण के बैशाखी के सहारे पुरूष और स्त्री के बीच दरार नहीं डाल रहे ?
कहीं पश्चिम की अवधारणाओं( जिसमें महिला को प्रोडक्ट माना जाता है ) को तो नहीं अप्रत्यक्ष रूप से विस्तारित किया जा रहा है जिसके दूरगामी परिणाम गंभीर और घातक होंगे समय रहते सचेत रहने की जरुरत है अन्यथा हाथ मलने के सिवाय हाथ में कुछ और नहीं बच जाएगा।

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

यादवी दीवारों में दबती जनता




एक कहावत है -
राजा अगर राम हुआ तो सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ेगा ,और राजा अगर रावण हुआ तो सीता हरी जायेगी !
राजा अगर पांडव हुआ तो द्रोपदी जुए में हारी जायेगी ,और राजा अगर कौरव हुआ तो उसका चीर हरण होगा !
राजा अगर हिन्दू हुआ तो जनता जलाई जायेगी ,और राजा अगर मुसलमान हुआ तो जनता दफनाई जायेगी!

पिसती आखिर जनता ही है !

अगस्त १८,२००८ !कोसी वासियों के लिए काला अध्याय !कोसी मैया के प्रकोप ने यूँ कहर ढाया की लोगों में हाहाकार मच गया !अचानक आयी भयंकर बाढ़ ने न केवल लोगों के घर उजारे वरण हजारों मांगों की सिन्दूरं पोंछ गयी !अनेक माओं की गोद सूनी हुई तो लाखों पशु काल के गाल में समा गए !लोगों के पास बच गए तो केवल फटेहाल बदन और उअर खुला गगन !लोग दाने -दाने को मोहताज हो गए !आवागमन के सारे साधन तहस -नहस हो गए !
कुछ दिनों तक तो बाढ़ राहत के सामानों से पेट भरा परन्तु लोगों के सामने समस्या थी की वे जाये कहाँ ?क्योंकि अब उनके पास कुछ भी नहीं बच गया था !न रहने का घर और न खाने को अन्न !परन्तु इससे अधिक तो नेताओं की कारगुजारियों ने उन्हें रुलाया !पुनर्वास के नाम पर केंद्र से करोड़ों झटके परन्तु सत्ता के ये घिनोने दलाल अपनों में ही उसे गटक गए ! लेकन स्थानीय सांसद शरद यादव द्वारा किये प्रयासों का वर्णन करते अघाते थकते नहीं उनके जिलाध्यक्ष रामानंद यादव उर्फ़ "झल्लू बाबू" !
श्री यादव कहते हैं -" हमारी जदयू सरकार ने हरसंभव लोंगों को जीवन -यापन के लायक सामान मुहैया कराई है तथा फसलो के नुकसान का मुआवजा भी दिया जा रहा है ! "परन्तु असलियत है की ५० हजार प्रति एकड़ लागत की जगह किसानों को २०० से ५०० रु प्रति एकड़ ही मुआवजा मिल रहा है !वह भी दफ्तरों के लाखों चक्कर काटने के बाद !
दूसरी ओर पूर्व सांसद रहे लालू यादव के नजदीकी तथा पूर्व राजद प्रत्याशी रवीन्द्र चरण लालू गुणगान करते थकते नहीं !रवीन्द्र चरण कहतें हैं - "लालू यादव के दवाब तथा प्रयासों के कारण ही केंद्र सरकार ने १२०० करोड़ की सहाता राशि तत्काल उपलब्द्ध कराई !तथा हमारे नेता ने उस समय रेल मंत्रालय की ओर से भी भरपूर सहायता की !पर राज्य सरकार ठीक से उसे खर्च ही नहीं कर पा रही है !"
सबके अपने -अपने दावे !लेकिन लोगों की दयनीय स्थिति इन दावों की हवा निकल देती है !लोगों की पहली जरूरत है की उनके पास रहने लायक घर तो हो !परन्तु अपने बलबूते घर बनाना इतना आसान नहीं! हालांकि इंदिरा आवास योजना के तहत कुछ लोगों को २५ -२५ हजार की सहायता राशि मिली है लेकिन बाढ़ से प्रभावित लाखों जनता के सामने यह संख्या बहुत छोटी है !केवल मधेपुरा में बढ़ से १४ लाख लोग प्रभावित हुए हैं !
कोसी के लोगों के जीविका का मुख्य आधार खेती है !परन्तु तबाह हो चुके लोगों के पास खेती लायक साधन नहीं !ऊपर से बढ़ती महगाई ने खाद बीजों के दामों में इतनी बढ़ोतरी कर दी है की किसानों के लिए बीज खरीदना ही मुश्किल हो रहा है !खाद पानी की जुगाड़ तो दूर की बात ! ऊपर से पेट्रोल और डीजल के बढे दामों ने उनके खेती पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है !किसान हतास -निराश है कि आखिर खेतों का पटवन कैसे हो ?और बिना पटवन के फसलें तो मारीं जायेंगी !
रुदन कर रहे लोग, उनके परिवार, बच्चे पर महगाई कब तरस खाकर अपना ग्राफ नीचे करती है यह तो केन्द्रीय सत्ता -प्रतिष्ठान ही शायद बेहतर बता सकती हैं!
मधेपुरा के लोगों का क्या कुसूर की उन पर टूटा एक और कोसी का कहर तो दूसरी और नेताओं ने उन्हें छाला !कभी पिछड़ों के हिमायती के नाम पर लालू यादव ,युवा शक्ति के नाम पर पप्पू यादव तो कभी विकास के नाम पर शरद यादव !पर यहाँ के लोगों के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया !हकीकत यही है की हमेशा इन यादवी दीवारों के नीचे जनता दबती ही गयी !और पिछड़ों के नाम पर ये यादव असुर नेता अपने परिवारों का पेट भरते रहे !कभी तिहार में बैठे पप्पू यादव, तो हमेशा दिल्ली से रिमोट कंट्रोल से संचालित करते शरद यादव !लेकिन लोगों के जीवन में न कोई उत्थान न कोई परिवर्तन !हाँ पंजाब और हरियाणा के मजदूरी के बल पर अपने पापी पेट तो भर ही लेते हैं !क्या उनके लिए विकास के यही मायने हैं ?

रविवार, 7 फ़रवरी 2010

विश्व मंच पर लहराता हिंदी का परचम

एक ओर जहां विश्व हिंदी सम्मलेन और प्रवासी हिंदी सम्मलेन आयोजित हो रहे हैं ,वहीं दूसरी ओर हिंदी पट्टी में पाठकीयता के संकट को लेकर चिंता व कई तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं !एक ओर हिंदी के विस्तृत होते दायरे की बुनियाद पर इसे संयुक्त राष्ट्रसंघ में जगह दिलाने की मांग हो रही है तो दूसरी ओर हिंदी साहित्य के पाठकों की कमी का रोना रोया जा रहा है !एक ओर हिंदी फिल्मों एवं हिंदी विज्ञापनों का बढ़ता जबरदस्त बाजार इसके वैश्विक प्रसार को दर्शाते हैं तो दूसरी ओर अपनों की बेवफाई से अपने ही घरों में घायल कराहती हिंदी कुछ ओर ही कहने को तत्पर दिखती हैं !हिंदी को लेकर इन दो परस्पर विरोधाभाषी तथ्यों के आलोक में यह सवाल उठता है की आखिर सच क्या है ?क्या हिंदी पाठकों की बढी हुई संख्या अंगरेजी के बर्चस्व की कमी को सूचित नहीं करती है !(मालूम होकी ताजा आंकड़ों के अनुसार महत्वपूर्ण दैनिक पत्रों ने अपने पाठकों की संख्या १९१ मिलियन से लगभग २५० मिलियन में महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की है ,जबकि अंगरेजी दैनिक लगभग ३० मिलियन पाठकों के साथ काफी पीछे हैं !) क्या वाकई में हिंदी पट्टी में पाठकीयता का संकट है या मामला राड़-रुदन का है !राड़ -रुदन यानी संकट पाठकों के पाठकीयता का नहीं बल्कि कुछ ओर ही है !
गौरतलब है की विगत कुछ वर्षों में हिंदी का बर्चस्व बढ़ा है ओर इस बर्चस्व में उत्तरोत्तर बढ़ावा ही हो रहा है !कल तक हिंदी हाशिये पर खड़ी नजर आती थी और हिंदी बोलना ,लिखना ओर पढ़ना पिछड़ेपन की पहचान समझा जाता था !उपेक्षा व हिकारत भरी नज़रों से देखने वाले लोग आज हिंदी के खासकर वैश्विक स्तर पर बढ़ते बर्चस्व को नकार पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते है ! अपने को अभिजात्य समझने वाले अंग्रेजीदा लोगों के ड्राइंग रूमों टाक हिंदी पहुँच गयी है ! यह अलग बात है की उनके घरों की शोभा बनकर रह जाती है ! आज बाजार के विज्ञापन की मुख्य भाषा हिंदी ही है !क्योंकि हिंदी के माध्यम से ही बाजार उपभोक्ताओं के एक बहुत बड़े वर्ग तक अपनी पहुँच और पकड़ बनाने में कामयाब हो सका है !यह दीगर बात है की बाजार की इस हिंदी का अपना एक बाजारू रूप है ,किन्तु है तो वह हिंदी ही जो यह साबित करती है की हिंदी भाषा का क्षेत्र कितना विस्तृत और व्यापक प्रभाव लिए हुए है !
भाषा किसी राष्ट्र की संस्कृति का वाहक होता है !किसी प्रान्त विशेष या राष्ट्र विशेष की रहन -सहन ,खान -पान,आचर -विचार इत्यादि से वहाँ पर बोली और समझे जाने वाली भाषा यानी शब्द समूह ,बोलने की शैली ,उच्चारण आदि से बोध होता है! भारत की संस्कृति की गरिमा हिंदी भाषा के जरिये विश्व के कोने -कोने में फ़ैल रही है इसमें कोई शक नहीं !हिंदी भाषा विश्व के जनमानस में विश्वभाषा का रूप धीरे -धीरे धारण कर रहा है !भारत में राजभाषा ,राष्ट्रभाषा तथा संपर्क भाषा के रूप में कच्छप गति से हिंदी की प्रतिष्ठा बढ़ रही है ! अब प्रश्न उठता है की जब भारत में १५ बड़ी भाषा में एसी कौन सी खासियत है जिसकी वजह से भारत में राष्ट्र भाषा तथा विश्व में वैश्विक रूप में हिंदी मान्यता प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हो रही है !
उत्तर में कहना होगा कि -हिंदी भाषा में जो संवहन तथा सम्प्रेषण की क्षमता है वह अन्य भाषाओं की अपेक्षा निराली है !वह एक सहज ,सरल तथा कोमल मधुर भाषा ही नहीं बल्कि अन्य भाषाओं के शब्दों को हृदयंगम करने कि सहिष्णुता भी रखती हैं !इसकी मधुर संगीतात्मक ध्वनियाँ चित्त को मनोहर ढंग से आकर्षित करती है ! हन्दी भाषा में यह गुण विद्यमान है कि वह मन की गहनतम और सूक्ष्मतम अनुभूतियों को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त कर सकती है !यह एक जीवंत भाषा है जो शब्दों की छुआछूत नहीं मानती ,शब्द किधर से भी आ जाए सहर्ष स्वीकार करती है !
इसी स्वीकार्यता का परिणाम है की आज विश्व में कोई ६० करोड़ हिंदी बोलने वाले ,८० करोड़ समझने वाले और अंगरेजी और चीनी के बाद तीसरी सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा बन गयी है ! जागरण न्यूज नेटवर्क के अनुसार आज नेपाल में ८६ लाख ,अमेरिका में ३१ लाख ७ हजार ,मारीशस में ६८ लाख ५ हजार ,दक्षिण अफ्रीका में ८ लाख ९ हजार ,यमन में २ लाख ३३ हजार ,युगांडा में १ लाख ४७ हजार ,सिंगापुर में ५ हजार ,न्यूजीलैंड में २० हजार तथा जर्मनी में ३० हजार से अधिक लोग हिंदी बोलने वाले है !
फिजी ,मारीशस ,गुयाना ,सूरीनाम ,त्रिनिदाद एवं टोबैगो एवं संयुक्त अरब अमीरात में हिंदी अल्पसंख्यक भाषा है !जबकि विश्व के ९३ देशों में संगठित रूप से हिंदी पढ़ाई जा रही है !
जिसमे एशिया में नेपाल ,वर्मा ,थाईलैंड ,सिंगापुर ,मलेशिया ,इंडोनेशिया ,अफ्रीका में मारीशस ,ला रीयूनियन ,केनिया ,रंजानिया ,युगांडा ,योरोप में इंग्लैण्ड ,नैदरलैंड,बेल्जियम ,जर्मनी ,दक्षिणी अमेरिका के आसपास के क्षेत्रों में त्रिनिदाद ,गुयाना ,सूरीनाम ,जमैका ,प्रशांत महासागर वाले क्षेत्रों में न्यूजीलैंड ,आस्ट्रेलिया और फिजी तथा मध्य पूर्व के देशों में दुबई शामिल है जहां की एक बड़ी संख्या में भारतीय निवास करते हैं! य़ू के में वेल्स को हटाकर दूसरी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा हिंदी बन गयी है !लगभग ८ वर्ष पूर्व एक स्वयंसेवी संस्था " हिंदी usa " की स्थापना न्यूजर्सी में की गयी जिसका उद्देश्य बच्चों को हिंदी बोलना पढ़ना और लिखना सिखाकर भारतीय संस्कृति को बचाना है !हिंदी USA हिंदी की २५ पाठशालाएं चलाती हैं जिसमे १६०० से अधिक विद्यार्थी हिंदी के नौ स्तरों में शिक्षा ग्रहण करते हैं !अमेरिका से निकल रही पत्रिकाओं में हिंदी जगत ,सौरभ ,विश्वा ,विश्व विवेक ,विज्ञान प्रकाश और बल हिंदी जगत प्रमुख हैं !यही नहीं विश्व हिंदी न्यास का न्यास समाचार ,बिहार संघ की वैशाली ,आर्य प्रतिनिधि सभा का पत्र,द्विभाषी पत्रिका नवरंग टाइम्स और वाशिंगटन डी सी से प्रकाशित लोकमत भी समय -समय पर अपनी आभा बिखेरती है !
मूलतः मुजफारपुर (बिहार ) के रहने वाले तथा हिंदी और हिन्दुस्थान को अपने जीवन में जीने वाले रशिया (रूस ) से MBBS की पढाई कर रहे श्री सौरभ दत्ता कहते हैं -"गैरों में कहाँ दम था अपनों की वेबफाई ने ही रुलाया था "!हिंदी आज अपने ही घरो में अपमानित हो रही है !तथाकथित बुद्धिजीवी खाते तो हैं हिंदी की रोटी और बोलते तथा जीते हैं अंगरेजी और अंग्रेजियत को !वे सचेत करते हुए कहते है की हम भारतीयों को पश्चिम की तरफ देखने व जूठी प्लेटे चाटने की आदत पड़ती जा रही है !हिंदी की स्वीकार्यता को सारी दुनिया स्वीकार कर रही है अपितु इसके की हम इसको हिंगलिश का रूप दे हिंदी की मौलिकता से खिलवाड़ कर रहेहै !समय रहते सचेत रहना जरूरी है !भारतीय भाषाओं से सम्बंधित कार्य भारतीयों को ही करना है !इस कार्य को करने के लिए संपन्न और योग्य हैं ! इसी में हिंदी के उन्नति का मार्ग प्रशस्त होगा !

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

फर्क लाल बहादुर शास्त्री और राजीव गांधी में


लालबहादुर शास्त्री यानी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री !जिसके एक आह्वान पर देश पर मंडराते काले बादल के समय करोड़ों लोगों ने एक शाम का भोजन करना छोड़ दिया !जनता के नब्ज पर इतनी मजबूत पकड़ थी ,शास्त्री जी की! सरलता ,सहजता और मितव्यता के अनूठे वाहक !काम करने की चाहत रहती थी उनकी !प्रशंसा और प्रसिद्धि से कोसों दूर !समाचारपत्रों से वे अधिकतर दूर ही रहते थे !एक बार कई पत्रकारों ने शास्त्री जी से इसका उत्तर जानना चाहा !

उन्होंने बड़ी सहजता से जबाब दिया -ताजमहल में संगमरमर के एक ही पत्थर लगे होते हैं,लेकिन दुनिया मीनार की प्रशंसा करती हैं !नीवं में लगे पत्थरों की कोई प्रशंसा नहीं करता !लेकिन सच्चाई यही है की ताजमहल उन्ही नीवं पर टिका होता है !मै मीनार का नहीं ,नीवं का ही पत्थर बने रहना चाहता हूँ !महानता के इतने उद्दात आदर्शों को अपने जीवन में जीने वाले थे पूर्व प्रधान मंत्री लालबहादुर शास्त्री !

दूसरी और १९८४ में इंदिरा गांधी के ह्त्या के पश्चात नेहरू के एक और वंश बेल के रूप में उनके नाती राजीव गांधी ने सत्ता संभाली ! देश के नब्ज पर श्री गांधी की कितनी पकड़ थी इसका भी एक बड़ा ही अच्छा उदाहरण सुनने को मिलता है !
एक बार श्री राजीव जी गावों में घूमने गए (जैसा की आजकल राहुल जी जा रहे हैं ) !वहाँ भूसे का ढेर देखकर राजीव जी ने एक बुढ़िया माता से पूछा माते -"यह क्या है ? "तो माता जी ने बताया की यह गेहूं का भूसा है !राजीव गांधी का लालन -पालन तथा पढ़ाई शहरों एवं विदेशों में होने के कारण गावों के बारे में जानकारी होती तो कैसे ?इस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प .पू .श्री गुरूजी ने चुटकी लेते हुए कहा था -"अगर मै उस माते की जगह होता तो कहता की यह सूजी है और राजीव जी को उसका हलुआ बनाकर खिलाता !जिस देश के प्रधानमंत्री को ७० प्रतिशत ग्रामीण भारत के बारे में कुछ मालूम नहीं ,वह देश का कितना उत्थान कर सकते हैं?इसकी कल्पना तो आप सहज रूप से कर ही सकते हैं !"
लालबहादुर शास्त्री और राजीव गांधी के जीवन में कितना अंतर था इसकी कल्पना आप ऊपर दिए दोनों प्रकरणों के बाद तो लगा ही लिए होंगे !लेकिन वर्तमान संप्रग सरकार की नज़रों में "जय जवान -जय किसान "का मन्त्र गुंजाने वाले शास्त्री जी की जगह राजीव गांधी अधिक श्रेष्ठ थे !तभी तो महगाई के इस दौर में किफायत का नारा गढ़कर वाहवाही लूट रही सोनिया पार्टी की संप्रग सरकार सरकारी विज्ञापनों के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री के साथ भेदभाव बरत रही है !एक विभाग न केवल राजीव गांधी के महिमा मंडन में करोड़ों रुपया फूंक रहा है बल्कि ,ख़ास बात यह है की इस विभाग ने राजीव गांधी के गुणगान में सिर्फ दो महीने की अवधि में जितना धन खर्च किया है वह पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पर पिछले दश सालों में खर्च धन से तीन गुना ज्यादा है !
सूचनाधिकार क़ानून के तहत विज्ञापन और दृश्यप्रचार निदेशालय द्वारा दिए गए एक जबाव में यह जानकारी दी गयी है! देश के DAVP ने दो महीनों जुलाई -अगस्त २००९ में राजीव गांधी को महिमा मंडित करने के लिए ०२ करोड़ ९७ लाख ७० हजार ४९८ रूपये के विज्ञापन जारी किये,जबकि शास्त्री जी के लिए पिछले दस साल २००१ -२०१० में मात्र ८७ लाख मूल्य के विज्ञापन जारी किये गए !
मुंबई निवासी अजय म्हात्रे ने सूचना मंत्रालय में आरटीआई दाखिल कर यह जानकारी माँगी थी !जिसके जबाव में आखें खोलने वाली यह जानकारी प्राप्त हो पायी है !यह तो संप्रग सरकार के नमूने के केवल एक झांकी है !आगे बहुत कुछ अभी और भी बाकी है !धीरे -धीरे एसे ही तहों तक की जानकारी को हम आपके सम्मुख लाते रहेंगे !

जनहुंकार आतंक के विरुद्ध


न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के छ : साल पूरे हो चुके है !इस हमले के पश्चात अमेरिका ने आतंकवाद का समूल नाश करने का लक्ष्य बनाया था !यद्यपि अपने इस लक्ष्य में वह पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है ,लेकिन पिछले छ ; वर्षों में अमेरिका में एक भी बड़ी आतंकवादी घटना नहीं घटी !यह इस बात का प्रमाण है की अपनी आतंरिक सुरक्षा में उन्होंने पूर्ण सफलता कर ली है !
इसे संभव बनाने में वहाँ की जनता ,प्रशासन ,सुरक्षा एजेंसियों ,नेताओं ,नौकरशाहों ,न्याय व्यवस्था तथा सैनिक बलों ने एकजुट होकर एक निति के तहत काम किया है !आज अमेरिका आतंरिक और बाह्य सुरक्षा की नजर से बेहद सुरक्षित देश है !
इसके विपरीत संसद पर हमले से हैदराबाद विस्फोट तक भारत में छोटी और बड़ी आतंकवादी घटनाओं में बड़ी तादाद में निर्दोष लोग तथा सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं और आतंकवाद बढ़ता ही जा रहा है !कुछ समय पहले तक पाकिस्तान पोषित आतंकवाद केवल कश्मीर तक ही सीमित था ,लेकिन अब यह धीरे -धीरे पूरे भारत में फ़ैल गया है !आज भारत के लोग आतंक के साए में जी रहे है !
हमारे नेताओं ने केवल बातों से लड़ाई की है और मीडिया को बयानबाजी से भरमाया है ,क्योंकि इस समस्या से जूझने के लिए अभी तक भारत के पास कोई ठोस नीति ही नहीं है !भारत में समय -समय पर हो रही आतंकवादी घटनाओं से निबटने में असफलता के कारण दुनिया ने भारत को "सोफ्ट स्टेट की " संज्ञा दे दी है !बिना कठोर क़ानून के आतंकवाद को रोकना संभव नहीं है !आज तक कोई भी ठोस क़ानून नहीं बना ,जिससे सेना को उग्रवाद मिटने में मदद मिल सके !
/११ की घटना के बाद अमेरिका ,कनाडा ,ब्रिटेन तथा आस्ट्रेलिया ने उग्रवाद विरोधी सख्त क़ानून बनाए ,और उस पर अमल किया गया !हमने भी इन चार देशों की तरह पोटा बनाया !पोटा को संप्रग सरकार ने हटा तो दिया लिकिन उसके बदले लचीले क़ानून बनाकर मात्र अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली ! लगता है प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री को कठिन रास्ता पसंद नहीं !
राष्ट्र के आंतरिक हिस्सों में तोड़ -फोड़ बाह्य गतिविधियों से भी अधिक खतरनाक है !इससे समाज में अलगाव की स्थिति पैदा होती है !इस पर तुरंत रोक लगाने की कोशिश होनी चाहिए !इसके लिए घरेलू शासन को चुस्त करना होगा !आतंवाद के प्रति प्रशासन का ढीला रवैया हमारी असफलता का बड़ा कारण है !प्रशासनिक कर्मियों की कमजोरियों तथा राजनितिक दवाब की वजह से सेना के जवानों का मनोबल टूट रहा है !
हमारे पास कोई कानून नहीं है ,जिसके तहत हम उग्रवादियों को छुपकर मदद कर रहे लोगों के विरुद्ध कारवाई कर सके !कुछ दिन पहले सरकार ने सुरक्षा एजेंसियों तथा पुलिस की "टास्क- फ़ोर्स" को कर्मठ बनाने के लिए ३५ हजार करोड़ रु खर्च करने का एलान किया , लेकिन इन सबसे कुछ नतीजा निकलने वाला नहीं ,जब तक फैलते उग्रवाद को बढ़ावा देने में अधिकारियों को जबाबदेह नहीं बनाया जाता!
कश्मीर में पिछले १८ वर्षों में पकडे गए हजारों आतंकियों में कितनो को सजा मिल पाई है ?याद रहे उग्रवादियों के विरुद्ध एक्शन में सुरक्षाकर्मियों की जाने जाती हैं और काफी मुश्किलों के बाद उग्रवादी पकडे जाते हैं ! यदि सालों तक उन उग्रवादियों की देखभाल सरकार करती रहे और जल्दी सजा न मिले ,तो सैनिकों का मनोबल टूटेगा ही !
हमारे प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान का दिल जीतने के लिए बड़े प्रयत्न किये ,परन्तु नतीजा सिफर ही रहा !पाकिस्तान उग्रवादियों की मदद हर तरह करता ही रहेगा !यही करण है की उग्रवादी १८ साल की जद्दोजहद के बाद भी और हजारों की संख्या में मारे जाने के वाबजूद न तो हारे हैं ,न थके हैं और न ही उनके हिमायतियों की कमी हुई है !हमें यह काम स्वयं करना होगा !
इस काम में पाकिस्तान से मदद की आशा करना हमारी बड़ी भूल है ! समय आ गया है की हमें उग्रवादियों के ट्रेनिंग ठिकानों को बर्बाद करने की कारवाई करनी चाहिए !विशेषतौर पर उन ठिकानों को जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है !पाकिस्तान को चेताते रहने और इससे आगे कुछ नहीं करने की नीति से आतंकवाद ख़त्म नहीं होगा !
किसी दुसरे देश से उम्मीद करना की वह हमारे इस काम में मदद करेगा ,बड़ी भूल होगी !अमेरिका के इशारों पर काम करने का नतीजा हम भुगत चुके हैं !हमें वही करना चाहिए जो हमारे हित में है !विश्व मंचों पर इस मामले को उठाकर हमने कुछ हासिल नहीं किया !
इस समय चन्द पंक्तिया याद आ रही है .......

क्या हुआ कुछ -कुछ लोग हिंसक हो गए ,

पड़ोसी अपने निरंकुश हो गए !

हुक्मरानों बात ये कडवी लगे तो माफ़ करना ,

वो हिंसक नहीं हुए हम नपुंसक हो गए !!
ठोस नीति का आभाव ,राजनैतिक भ्रष्टाचार ,लचर प्रशासनिक व्यवस्था ,पुलिस की नाकामी तथा सेना के गिरते मनोबल के कारण आतंकवाद बेकाबू होकर फैलता जा रहा है !केवल बयानों से आतंकवाद ख़त्म नहीं किया जा सकता !समय आ गया है की हमारे नेता धधकते पौरुष को जागृत करें और जनता के भीतर सुरक्षा विश्वास पैदा करें !

बुधवार, 20 जनवरी 2010

सफ़र हमारे जीवन का

यह यात्रा है ........
बूँद से मोती
पराधीनता से स्वाधीनता
कृतघ्न से कृतज्ञं
स्वार्थ से परमार्थ
भोग से योग
विद्या से विवेक
असत्य से सत्य
ज्ञान से मुक्ति
सत्संग से समाधि
हंस से परमहंस
मृण्मय से चिन्मय
जागने से जागरण तक की .........!

यह हमारे और आपके ऊपर निर्भर है की हम किस राह चलना चाहेंगे !

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

तिब्बत चीन के साथ या भारत के हाथ


भारत -चीन सीमा विवाद के मूल कारणों में तिब्बत है !अतः हमारे लिए आवश्यक है की हम तिब्बत की सच्चाइयों को जान लें !

भारत के नजरिये से देखें तो लगभग पिछली दो शताब्दियों से तिब्बत के साथ उसके सम्बन्ध बहुत ही आत्मिक रहे हैं !महाभारत में भी इन दोनों के संबंधो का जिक्र मिलता है !हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ कैलाश मानसरोवर इसी तिब्बत के अन्दर है जो आज चीनी कब्जे में है !इतिहास इस बात का गवाह है की छठी और सातवीं शताब्दी में चीनी और तिब्बतियों के बीच कई बार खूनी संघर्ष हुए हैं !आज भारत तिब्बतियों के लिए स्वर्ग के समान है !हर कोई जानता है की दलाई लामा तिब्बत को अपना घर मानते हैं और १९५९ से ही तिब्बत सरकार को धर्मशाला से ही चला रहे हैं !लेकिन कम ही लोग जानते हैं की यह पहले दलाई लामा नहीं है जो भारत में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं !बल्कि इसके पहले उनके पूर्ववर्ती और तेरहवें दलाई लामा उबेन गयात्सो १९०९ और १९१२ के मध्य चीनी आक्रान्ताओं के कारण भारत आये थे !आज लाखों तिब्बती शरणार्थी भारत में रह रहे हैं !इस तरह से तिब्बत दोनों देश के मध्य विवाद का एक प्रमुख कारण बना हुआ है !
चीन के नजरिये से देखें तो वह एतिहासिक कारणों की दुहाई देते हुए कई क्षेत्रों पर अपना अधिकार जताने से बाज नहीं आ रहा है !अंग्रेजों द्वारा चीन और भारत के बीच मैकमोहन विभाजक रेखा खींचे जाने के बाद उत्तरी तिब्बत का कुछ हिस्सा और अरुणाचल प्रदेश का तवांग भारत की सीमा में आ गए !१९१४ में ब्रिटेन ,चीन और तिब्बत का शिमला समझौता नाम से एक त्रिपक्षीय सम्मलेन हुआ !यह बैठक चीन और तिब्बत की स्थितियों के सन्दर्भ में हुई थी ,लेकिन यह बैठक तब बेनतीजा हो गयी ,जब ब्रिटेन ने तिब्बत को आतंरिक और बाह्य दो भागों में बांटने की बात की !चीन ने इस बैठक से अपनी भागीदारी वापस ले ली और उसकी अनुपस्तिथि में ही ब्रिटेन ने तिब्बत के साथ एक सेटेलमेंट कर दिया !जिसके तहत तिब्बत का लगभग 9000 स्क्वायर मीटर क्षेत्र और तवांग क्षेत्र भारत का हिस्सा बन गए !इस तरह मैकमोहन रेखा नाम से एक नई सीमा रेखा बन गयी !तिब्बत ने तो इस समझोते के लिए हाँमी भर दी ,लेकिन चीन इसके विरोध में रहा !
यही विरोध आज तक जारी रहा ,जिसके चलते तवांग पर चीन अपना अधिकार जताता है !जबकि भारत का मानना है की निःसंदेह तवांग भारत का अंग है ,इसीलिये इसे चीन को देने का सवाल ही नहीं उठता !दोनों ही देश इस बात को जानते है की जो भी विवाद है ,वह केवल सीमा को लेकर है ,इसके वाबजूद दोनों ही देशो के कट्टरपंथी लोग रह- रहकर एसी बयानबाजी करते रहते हैं ,जिससे यह मसला और भी जटिल हो जाता है !सीमा विवाद के लिए हुई वार्ता के तुरंत बाद ही चीनी स्कालर जहाँ लुइ द्वारा लिखा गया लेख इस आशंका को और भी पुष्ट करता है !इस लेख में उन्होंने लिखा है की किस तरह से उल्फा और तमिलनाडु ,बंगाल तथा कश्मीर में सक्रीय दुसरे आतंकी संगठनो को समर्थन देकर भारत को तीस स्वतंत्र राज्यों में बांटा जा सकता है!
नेपाल में माओवादी उभार के चलते चीन वहाँ सक्रीय हो रहा है ,जो भारत के लिए परेशानी का सबब है !अमेरिका द्वारा लम्बे समय से खेली जा रही कूटनीति भी दोनों देशों के संबंधों में कटुता का कारण है !अमेरिका चीन को खुद खतरे के तौर पर देख रहा है ,इसीलिय वह भारत को चीन के खिलाफ उकसाता रहता है ताकि तेजी से उभर रहे इस खतरे पर कुछ हद तक नियंत्रण पाया जा सके !एसे कारण ही झान लुइ जैसे कट्टरपंथियों को एसे वक्तव्य देने के लिए उकसाते रहते हैं जो एशिया के इन दो बड़े पड़ोसी राष्ट्र के संबंधों के लिए ख़तरा बनते हैं !
अमेरिका चीन के वैश्विक उभर को समझ रहा है ,इसीलिय वह चीन के खिलाफ जायगा ही नहीं !जबकि हम अमेरिकी बहकावे में चीन को अपना दुश्मन मान रहे हैं !अमेरिका से दोस्ती बनी रहे ये तो ठीक है ,लेकिन दोस्ती की कीमत पर हम अपने दुश्मनों में इजाफा करें ,यह कहीं से उचित नहीं है !

दास्तान अगस्त क्रांति में अव्वल बिहार की


शहीदों के लहू की दीप्ति ने दिनमान रखा है ,
शहीदों ने समूचे राष्ट्र का सम्मान रखा है !
किसी भी तरह उनका ऋण चुकाया नहीं जा सकता ,
जिन्होनें जान दे ज़िंदा ये हिन्दुस्तान रखा है !!

आजादी के जंगे मैदान में अव्वल रहा बिहार के हुतात्माओं ने दी थी गोरों को जबरदस्त टक्कर !भले सीने पर गोली खाई ,अमानवीय अत्याचार सहे पर अंग्रेजों के आगे न रुके न झुके !गाँधी के आह्वान पर आजादी की लड़ाई में लोकतंत्र की जननी वैशाली के दर्जनों नौजवान जंग -ए-आजादी में कूद पड़े थे !बैकुंठ शुक्ल ने अपने प्राणों की आहुति दी तो योगेन्द्र शुक्ल ,पंडित जयनंदन झा ,दीपनारायण सिंह ,बसावन सिंह ,रामेश्वर प्रसाद सिंह ,अक्षयवट राय ,वीरचंद पटेल एवं सुनीति देवी ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया !सासाराम में सरकारी भवनों पर ११ अगस्त १९४२ को तिरंगा फहराते महंगू राम एवं जगरनाथ राम को गोली मार दी गयी !कुपा में जयराम सिंह ने एक फौजी को धराशायी कर रायफल छीनने की कोशिश की तो सनिकों ने उन्हें गोली मार दी !गांधी की कर्मभूमि चंपारण में शायद ही कोई इलाका हो ,जो वतनपरस्तों के त्याग और बलिदान की गवाही न देता हो !१० से २४ अगस्त के बीच अंग्रेजों की गोली से द्वारिका कहार (श्रीपुर ), लखन दुसाध (बसंतपुर ),गणेश राय (रामगढ़वा), बुधेल राम (मेहसी ), रामावतार साह (मेहसी ),शेख मो०हनीफ (चैनपुर ),यदु रावत (आदापुर ), हरी ठाकुर (चमही), जगदेश राय (श्रीपुर ),हरिहर हजाम व फौजदार अहीर शहीद हो गए, पर डरे नहीं गोरों की गोली से !समस्तीपुर में दसवीं के छात्र हरिवंश तरूण ,राधे जी ,शिवसागर ,रामानंद ,तपेश्वर ने अंग्रेजों से टक्कर ली !इस आन्दोलन में राम इकबाल सिंह के उत्पात से बौखलाए गोरों ने उनकी टांगे तोड़ दी !नित्यानंद सिंह खगड़िया के समीप रेल पटरी उखारते शहीद हुए !नागपुर जेल में अंग्रेजों के अमानवीय अत्याचार के कारण पालीगंज के १८ वर्षीय हरदेव के मौत की खबर पाकर तस्वीर देख जीवन गुजार दी उनकी बेवा ने ! सीवान में तीन किशोरों झगरू साहू ,बच्चन प्रसाद और छठू गिरी की शहादत से धधका था आन्दोलन !सोनपुर में गोली की दर्द पर भारी पडी भारत माता की जय !सत्यनारायण चटर्जी ने पूरी जवानी जेल में गुजार दी !सारणके बनियापुर में क्रांति यज्ञं में छ : वर्षीय पुत्र की आहुति दी थी शिवरतन ने !बक्सर में पुलिस की गोली से कपिलमुनि कमकर,गोपाल कमकर ,रामदास बढई व रामदास सोनार शहीद हो गए !अब्दुल्ला भठियारा के घर में घुसकर अंग्रेजों ने उनके बहन की अस्मत लूटी और दूधमुहें बच्चे को मार डाला !भरे बाजार में स्वराजी यमुना प्रसाद की छाती पर चढ़कर ने गोली मार दी !
अंत में इन शहीदों की शहादत को चन्द पंक्तियाँ समर्पित करता हूँ .............
आओं झुककर सलाम करें उन्हें ,
जिनकी जिन्दगी में ये मुकाम आता है !
कितने खुशनसीब हैं वे लोग
जिनका लहू इस वतन के काम आता है !!
मिट जाते जो मातृभूमि पर ,बनते वो इतिहास है !मस्तक धूल चढाने उनकी झुक जाते आकाश हैं !!

सोमवार, 18 जनवरी 2010

अमर शहीदों के नाम


अमर बलिदानों की बलिवेदी पर ,

पुष्प चढाने आया हूँ !

कीर्ति करे जग तेरा ,

मैं शीश झुकाने आया हूँ !!


तेरे शौर्य की गाथाएं ,

मेरे रक्त का चन्दन !

सुरभित किया है जग में ,

माँ पर तेरा अर्पण !!


कठिन तपस्या त्याग तुम्हारा ,

मैं तो पाने आया हूँ !

तेरे जैसा बनूँ मैं भी ,

मैं शीश झुकाने आया हूँ !!


हे भारत के अमर शहीदों ,

तेरे पदचिन्हों पर चलने आया हूँ !

देशहित में समर्पण हेतु

मैं संकल्प लेने आया हूँ !!

याद आती है हमें


याद आती है हमें ,कुछ भूली बिसरी बात ,

कुछ समय पहले की अपने प्यारे यारों की साथ !

वो हमारा प्यार से मिलना ,गले लगाना

पल भर में ही रूठ जाना और फिर मनाना

भूल कैसे सकता हूँ मैं ,वो सुनहरे दिन

मस्ती में जब मस्त रहता पहर -पहर भर दिन

भूला हूँ तो कई बात पर भूल नहीं मैं सकता ,

अपन -अपनों का स्नेह प्रेम ,हरगिज भुला नहीं सकता

चाहता हूँ एक बार फिर से मिल जाए मेरा बचपन मुझे ,

बिछड़े हुए खोये मिल जाए मेरे साथी मुझे !!

संग्राम जिन्दगी है ,लड़ना उसे पडेगा


संग्राम जिन्दगी है ,लड़ना उसे पडेगा !
जो लड़ नहीं सकेगा ,आगे नहीं बढेगा !!


इतिहास कुछ नहीं है ,संघर्ष की कहानी
राना ,शिवा ,भगत सिंह ,झांसी की वीर रानी
कोई भी कायरों का इतिहास क्यों पढ़ेगा !!०१!!


आओ लड़े स्वयं के ,कलुसों से कलमसों से
भोगों से वासना से ,रोगों के राक्षसों से
कुंदन नहीं बनेगा ,जो आग पर न चलेगा !!०२!!


घेरा समाज को है ,कुंठा -कुरीतियों ने
व्यसनों ने ,रुढियों ने ,निर्मय अनीतियों ने
इनकी चुनौतियों से ,है कौन जो लडेगा !!०३!!


चिंतन -चरित्र में अब ,विकृति बढी हुई है
चहुँ और कौरवों की ,सेना खडी हुई है
क्या पार्थ उन क्षणों को ,मोह में पडेगा !!०४!!


संग्राम जिन्दगी है ,लड़ना उसे पडेगा !
जो लड़ नहीं सकेगा आगे नहीं बढेगा !!

रविवार, 17 जनवरी 2010

अलकायदा का फैलता वैश्विक संजाल


पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान से सटे कबीलाई इलाके में पल -बढ़ रहे आतंकवाद से सिर्फ हमारी सुरक्षा ही दांव पर नहीं लगी है !वहाँ के ट्रेनिंग कम्पों से निकले मौत के सौदागरों का दंश कई देश झेल रहे हैं !दरअसल ,पूरी दुनिया में आतंकियों की सप्लाई करने का प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है हमारा यह पड़ोसी मुल्क !भारत से लेकर सूडान तक और अफगानिस्तान से लेकर लेबनान तक हर जगह के आतंकियों पर पकिस्तान का ही ठप्पा लगा है !आतंकी चाहे सउदी अरब के हों या ब्रिटेन के ,उन्हें इंसान से हैवान बनाने का काम पकिस्तान में हो रहा है और इसे अंजाम दे रहा है अलकायदा !लश्कर -ए-तैयबा ,हूजी ,हमास ,और हिजबुल्ला जैसे आतंकी संगठन यहीं से खाद पानी ग्रहण कर रहें हैं !अलकायदा के फैले वैश्विक संजाल पर डालते हैं एक सरसरी निगाह ............

भारत

अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित हमारा देश ही हुआ है !२००० से २००९ ,नौ साल !जिहाद और दारुल इस्लाम के नाम पर उन्मादियों की गोलियों और बमों के शिकार हुए हजारों मासूम देशवासी !इन्हें चीखती -चिल्लाती ,चूरियां तोड़ती ,करुण चीत्कार करती महिलाएं नहीं दिखती ,न ही दीखते हैं वे अबोध बच्चे जिनके सर से पिता का साया उठ गया !आतंक बढ़ता गया और बढ़ते गए लाशों के अम्बार !देश के कई शहरों पर कहर बरपाने के साथ -साथ यहाँ के अलगाववादी और नक्सली गुटों को मौत का सामान भी मुहैया करा रहे हैं !इसकी जड़ काटने से पूर्वोत्तर के अलगाववाद से लेकर लाल कारीडोर के नक्सलवाद से भी निपटना आसान होगा !

अफगानिस्तान

आतंकी अमेरिका की अगुवाई वाली संयुक्त सेना पर आत्मघाती और गुरिल्ला हमले !विदेशी नागरिकों का अपहरण !काबुल को छोड़कर देश का कोई भी भाग आतंकवाद से अछूता नहीं !

चेचेन्या

आतंकी यहाँ विद्रोही गुटों को आपस में लड़ाते रहते हैं साथ ही रूस की राजधानी मास्को को निशाना बनाते रहते हैं !एक स्कूल में बच्चों का अपहरण करने के बाद येहाँ के आतंकी चर्चा में आये थे !

इराक

आतंकवाद को सींचने में पाकिस्तान की भरपूर मदद लेकिन अब खुद आतंक साए में ! राजधानी बग़दाद ,व्यवसायिक शहर बसरा और किरकुक में अमेरिकी व अन्य देशों की सेना की टूकरियों और चेकपोस्टों पर कार बम से आत्मघाती हमलों का दौर जारी !आतंकी सेना पर छुप कर रहे हमले !विदेशी नागरिकों को बंधक बनाने और उन्हें मार डालने की घटनाएँ होती रहती हैं !

इजरायल

इस्लामी आतंकवाद से प्रभावित देशों में प्रमुख !अक्सर वहाँ से आत्मघाती हमलो की खबरें आती रहती हैं !हमास और हिजबुल्ला जैसे आतंकी संगठन बरसों से सक्रीय !लेकिन यहाँ आतंकियों के खिलाफ कारवाई भी उसी तेजी से होती है !इसलिए उनके खिलाफ जंग में कामयाबी भी मिलती रहती है !

लेबनान

आतंकवाद को मदद करने वाले देशों में शुमार ,लेकिन खुद भी प्रभावित !राजधानी बेरुत भी सुरक्षित नहीं !

नाइजीरिया

अब तक कोई आतंकी हमला नहीं ,लेकिन अलकायदा के आतंकियों की गिरफ्तारी की घटनाएं हो चुकी हैं !पश्चिमी देशों से कई बार एसी चेतावनी जारी हुई है की कभी भी विदेशी दूतावासों पर हमलें हो सकते हैं !

सूडान

इस अफ्रीकी देश पर कई बार आतंकी हमले हो चुके हैं !आतंक का निशाना बने हैं विदेशी दूतावास !इसके अलावा अलकायदा की शह पाकर विद्रोही गुटों में संघर्ष होना भी आम बात है !

सोमालिया

पिछले दिनों में घटित कई घटनाओं से अलकायदा के पैर पसारने के संकेत यहाँ भी मिलें हैं !

समझें आतंक के प्रकृति ,प्रवृति और मनोवृति को

सही अर्थों में आतंक के प्रकृति ,प्रवृति और मनोवृति को समझे बिना जो लोग यह कहते हैं की आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता उन्हें शायद सच्चाई का ज्ञान नहीं है और मुगालते में जी रहें होते हैं !वास्तव में अलकायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन और अयमान अल जवाहिरी जिस मुस्लिम ब्रदरहुड के संस्थापक सैयद कुतब उसके भाई मोहम्मद कुतब और फिलिस्तीनी इस्लामी चिन्तक अब्दुल्ला अज्जाम से प्रेरणा लेते हैं उनके जिहाद की व्याख्या पूरी तरह इस्लाम के शुद्धिकरण और शरियत आधारित शासन के लिए युद्धात्मक जेहाद की आज्ञा देता है और इसके लिए उन मुसलमानों के साथ भी जेहाद जायज है जो विशुद्ध इस्लाम के आदेश का पालन नहीं करते !इसी प्रयास का परिणाम है की पाकिस्तान के उत्तर -पश्चिमी सीमा प्रान्त में अपना नियंत्रण स्थापित करने के बाद अलकायदा और तालिबान ने पाकिस्तान की सरकार के विरुद्ध भी जेहाद तीव्र कर दिया !

अलकायदा ने अपने एजेंडे के आधार पर जो योजना बनाई है उसके आधार पर वह सफल हो रहा है !अलकायदा न केवल जेहाद के नाम पर विश्व भर के एक बड़े वर्ग के मुसलामानों को लड़ने के लिए प्रेरित कर सका है वरण सूचना क्रांति का भरपूर उपयोग कर विश्व स्टार पर मुस्लिम की एक काल्पनिक अवधारणा का सृजन कर उसे भरपूर प्रचारित भी किया है !और इस प्रचार के चलते अलकायदा ने विश्व भर के मुसलमान बुद्धिजीवियों ,तथाकथित विचारकों और युवा मुसलामानों के मन में एक वैश्विक चिंतन का बीजारोपण किया है जो स्थानीय समस्याओं को वैश्विक सन्दर्भ से जोड़कर मुस्लिम उत्पीडन की अवधारणा का समर्थन करता है !

समस्त विश्व में जेहाद केआधार पर खिलाफत साम्राज्य का स्वप्न देख रहे अलकायदा के योजनाओं के बारे में कभी समग्र स्टार पर चिंतन नहीं किया गया !

इंडिया बनाम भारत


बढ़ रहा शहरीकरण
गावों में है बेकारीकरण
आधुनिकता के नाम पर संस्कृति का पतन
गरीबी के कारण नंगा है बदन
सब कुछ बाजार
हम सब परिवार
कुत्ते से सावधान
अतिथि देवो भवःयही स्वाभिमान
अन्न है पर भूख नहीं
भूखे हैं पर अन्न नहीं
जो कमाएगा वही खायेगा
एक कमाएंगे लेकिन मिलजुलकर खायेंगे
नंगेपन की कमाई
कमाई न के कारण नंगापन
चाँद छूने में घमंड पर माँ -बाप के पैर छूने में होता है शरम
माँ बाप ही भगवान् यही मेरा धरम
स्त्री -भोग्या
स्त्री -पूज्या
एक दुसरे से आगे बढ़ने की होड़
समरस सुखी जीवन हर ओर
अनैतिक यौन सम्बन्ध
नैतिक दाम्पत्य जीवन
सर्वोपरि -स्त्री भक्ति
सर्वोपरि - मातृशक्ति
देश के प्रति गद्दारी में नहीं शरम
देश हित में जीवन का सर्वस्व समर्पण
दिनभर आराम फिर भी मालामाल
दिन -रात परेशान फिर भी कंगाल
अठारह कमरे तीन जन
अठारह जन खुला गगन
यौन शिक्षा का चित्र
शहीदों का चरित्र
नारी -मस्त कैलेण्डर
नारी -अनुपम सुन्दर
असत्य के राह पर चलने वालों की है खुशहाली
सत्य की राह पर चलने वालों की बदहाली
देख दृश्य गूंजे तेरी ठहाके
पीड़ित -शोषित को देख मन मेरा रोये -रोये
हम उस देश के वासी हैं जहाँ शिल्पा शेट्ठी रहती है
हम उस देश के वासी हैं जहां गंगा बहती है
पत्नी -एक जनम में सात का हाथ
पत्नी - सात जनम तक एक का साथ
माँ -बाप को साथ रखते हैं
माँ -बाप के साथ रहते हैं
चकाचौंध हरदम
शांत -स्वच्छ जीवन
बेटी को कैटरीना कैफ बनाने में मस्त
बेटी की शादी की चिंता से पिता की हालत है पस्त
अंग्रेज का औलाद बनने का घमंड
संस्कृति का करते संरक्षण
अस्त -व्यस्त जीवन
परिश्रम करते मस्त रहते हरदम
बिस्तर है पर नींद नहीं
टूटी खाट पर चैन की नींद
एक बदन पर दस कपडे
एक बदन पर फटे -चित्तरे
फास्ट -फ़ूड का प्रचलन
थाली में पडा है सूखा अन्न
इतनी तरक्की तो इंडिया ने कर ही ली है ...
अब भूख ,भय ,भ्रष्टाचार ,गरीबी को मिटाने की बात नहीं करता
अब बजता है ...
तोहर लहगा उठा देब रिमोट से ...................................!!!!

शनिवार, 16 जनवरी 2010

कुछ बेधड़क बातें अपने मन की


लार्ड मैकाले ने ०२ फरवरी १८३५ को ब्रिटिश संसद में कहा था --

मैंने भारत में जमकर भ्रमण किया और इस दौरान एक भी आदमी एसा नहीं मिला जो जो भिखारी या चोर हो !वहाँ के लोगों का नैतिक बल और कार्यक्षमता इतनी जबरदस्त है की मुझे नहीं लगता है की हम उनकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को नष्ट -भ्रष्ट कर सकेंगे ! हम उनकी पुराणी शिक्षा व्यवस्था को समाप्त कर नयी इंग्लिश व्यवस्था लागू करें ,जो यह साबित करें की हम उनसे महानतम है !इससे वे अपना स्वाभिमान और सभ्यता खो बैठेंगे !तब हम उस देश को पूरी तरह गुलाम बना सकेंगे !

यह वही मैकाले थे जिन्होनें १८३५ में नयी शिक्षा व्यवस्था लागू की !

६२ साल बाद भी आज अंग्रेज हुक्मरानों की तरह नहीं याचक की तरह आता है !कोई फिल्मकार इस अद्भुत दास्तान को क्यों नहीं फिल्माता ???? हमारी गरीबी को ही क्यों हर बार बेची जाती है !!चन्द चांदी के सिक्कों की खातिर बिकने वाले निर्माता और अभिनेता क्या इस विषय पर भी फिल्म बनायेंगे ?यह सवाल हमारे मन में इस समय तो मथ ही रहा है !

यह धरती है बलिदान की



मातृभू की रक्षा के हित ,
चिन्ता न कर अपने प्राण की !
नमन कर लो इस माटी को ,
यह धरती है बलिदान की !!

आज पड़ोसी छदम भेष से ,
चाल चले शैतान की !
गिरगिट जैसा रंग बदलता ,
धत्ता बता ईमान की !
जैसे को तैसा ही उत्तर ,
दे दो इस प्रतिदान की !
वीर सपूतों पुनः जागो ,
यह धरती है बलिदान की !!

कर्म भूमि है ,धर्म भूमि है ,
यह जन्म भूमि भगवान् की ,
राणा ,शिवा ,हकीकत जैसे ,
वीरों के स्वाभिमान की !
उन वीरों को कोटि नमन है ,
जय हो उनकी शान की ,
प्राणों से भी प्यारी हमको
यह धरती है बलिदान की !!

अपना आपा भूल गए,
झेल सारे शूल गए !
कथा अदभुत है,
हर देशभक्त महान की
यह धरती है बलिदान की !!


इतिहासों में अंकित गाथा ,
भारत देश महान की !
वीर शिवा ,राणा सांगा के
पौरुष के अभिमान की !

सती पदमिनी के जौहर की ,
वीरों के आह्वान की !
शीश झुका कर नमन करो ,
यह धरती है बलिदान की !!

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

दीवारों में पड़ते दरार

हकीकत यही है जब दरारें परती है तब दीवार दरकती है !पहले दीवारों के बीच रहते थे अब हमारे बीच दीवार आ गए !पता तो एक रहता है पर एक दूसरे का पता न रहता है !
जी हाँ ,विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत में भले ही तलाक के मामले कम हो ,मगर राजधानी दिल्ली में लगातार इजाफा हो रहा है !काम का बोझ ,आफिस की चिंता ,बॉस का प्रेशर ,बच्चों की पढाई ,घर के खर्चे ऐसे अनेक समस्याओं के तले दबा जा रहा है दिल्ली वालों का जीवन !माँ -बाप के सपने ,पत्नी की चाहत ,बच्चों के अधूरे अरमानों के लिए ही वक्त नहीं है राजधानी वासियों के पास !
इसके लिए एकल परिवार प्रमुख रूप से जिम्मेदार है !सर्वेक्षण एजेंसी "सपना "के अनुसार वर्ष २००९ में दिल्ली में लगभग ५४ हजार शादियाँ हुईं !परन्तु ०१ वर्ष के अन्दर ही १२ हजार तलाक के मामले दाखिल हो चुके हैं !सात जन्मों का साथ निभाने की कसमें पल भर में ही बिखरने को तैयार दीखते हैं !बढ़ते मामले पर कुछ समय पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की थी ,वह जायज दिखती है !
"सपना "के अनुसार टूटते संबंधों के पीछे एक दूसरे के प्रति अविश्वास और अति महात्वाकांक्षा सबसे बड़ा कारण है !इसके अलावा शादी से पूर्व के संबंधों को शक की दृष्टि से देखना ,अधिकाधिक पैसों ,सुविधाओं की चाहत तथा पश्चिम की अंधी नक़ल के पीछे भागना आदि एसी अनेक वजह है जिनके कारण संबंधों में दरार आ रही है !
आजकल तलाक के मामले में कानूनी पहलुओं से हट कर मध्यस्थता केंद्र तलाक की मांग करने वाले दम्पति का आपसी समझौता कराने का प्रयास करते हैं !इसके जरिये तलाक मांगने वाले दम्पति को ज्यादा से ज्यादा साथ रहने की सलाह देते हैं !उनको एक साथ बाहर घूमने ,यहाँ तक की फ़िल्में देखने का भी सलाह देते हैं !कई मामलों में भी यह भी देखा जा रहा है की न्यायिक अधिकारी अपनी जेब से फ़िल्में दिखने का खर्चा भी उठाते हैं !इन वर्षों में अदालत ने काफी तेजी से तलाक के मामले निपटाए भी हैं !

बुधवार, 13 जनवरी 2010

अनाथों के हम हैं नाथ

दोपहर के ०१:०० बजे हैं !भोजनावकाश के लिए घंटियाँ टनटनाती है !स्कूलों से निकल सैकड़ों बच्चे हाथ -मुंह धो, चप्पल -जूते उतार पंक्ति में बैठ जाते हैं !उन्हीं में से कुछ बच्चे भोजन परोसते हैं !एक छोटी सी सीटी का संकेत और भोजन प्रारंभ से पूर्व मन्त्र गूंजता है -" ॐ सहनाववतु सहनौ भुनक्तु ,सहवीर्यं करवावहे .........." !
शांतिपूर्ण और अनुशासन के अनूठे समागम के बीच भोजन कर रहे ये सारे एसे बच्चे हैं जिनके परिवार में उनका कोई सहारा नहीं है या उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है की वे पढाई कर सके !पूर्वात्तर भारत के ऐसे ही १९५ बच्चों का सहारा है जनसेवा न्यास द्वारा दिल्ली मेरठ रोड पर संचालित " माधव कुञ्ज " !
कुञ्ज के प्रकल्प प्रमुख अनिल जी २० वर्ष पहले बेसहारा बच्चों की पीड़ा से इतने दुखी हुए की उन्होंने तय किया की जीवन में बच्चे तो नहीं पैदा करूंगा लेकिन एसे अनाथ बच्चों का नाथ जरूर बनूँगा !और इस संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का निश्चय किया !
समाज के कुछ लोगों से सहयोग प्राप्त कर वर्ष २००३ में प्रारंभ हुए माधव कुञ्ज ने मात्र छ : वर्षों में ही लम्बी छलांग लगाई है !बिना कोई सरकारी सहयोग के संचालित माधव कुञ्ज के पास न केवल अपना जमीन तथा करोड़ों का भवन है ,वरण कुञ्ज के अन्दर समृद्ध गौशाला ,आरोग्य केंद्र ,भव्य विद्यालय ,मंदिर तथा २०० छात्रों के रहने लायक छात्रावास भी है !

और सबसे बड़ी बात है की इन सारे प्रकल्पों को ये सारे बच्चे ही मिलकर सँभालते और सवारते है !वे न केवल शिक्षा ग्रहण करते हैं बल्कि स्वरोजगार और स्वाबलंबन के अनूठे संस्कार भी यहीं से ग्रहण कर अपने पैरों पर खडा होने का भरसक प्रयत्न भी कर रहे हैं !
माधव कुञ्ज न केवल बेसहारा बच्चों का सहारा बना है वरण निःशुल्क इलाज के कारण दूर दराज के गरीब लोगों के आशा की किरण बनकर खडा है !और इन सारे प्रकल्पों के बुनियाद के पीछें हैं श्री अनिल जी !यह पूछने पर की इन बच्चों के तो आप ही सहारा हैं ?नाम ,पद ,प्रशिद्धि से मीलों दूर श्री अनिल जी कहतें हैं -"मैं तो भारत माता के पुत्र के नाते अपना कर्तव्य समझकर यह कर रहा हूँ !इसमें सहारे की कौन सी बात है !मैं इन बच्चों पर कोई उपकार थोड़े ही कर रहा हूँ !यह तो मेरा सौभाग्य है की मुझे इन बच्चों को संवारने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है ! "
जब तक भारत भूमि पर माधव कुञ्ज के पीछे लगे अनाम हितचिन्तक और अनिल जी जैसे समाज चिन्तक है कोई भी बच्चे बेसहारा कैसे हो सकते हैं !अरुणाचल के केशव से यह पूछने पर की आपके परिवार में कौन -कौन हैं ?केशव निःसंकोच कहते हैं -अपने अनिल जी हैं न !

जिगर मा बड़ी आग है

धूम्रपान क़ानून लागू होने के बाद लोग सार्वजनिक स्थलों पर नहीं कर सकेंगे धूम्रपान ! भारत सरकार का था यह दावा !परन्तु लोगों का फिलहाल तो दिखता नहीं कुछ ऐसा इरादा !तभी तो वे प्रतिबन्ध के वाबजूद सिगरेट के धुएं के साथ -साथ क़ानून की भी धज्जियां उड़ा रहे हैं !और यह सब खुलेआम हो रहा है देश की धड़कन और भारत की राजधानी दिल्ली में !दिल्ली का ही है जब यह चाल -ढाल, तो बाकी जगहों का क्या होगा हाल !इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है !
कशों के लोग हो चुके हैं इतने आदी,
की छोड़ने को नहीं है राजी !
चाहे हो जाए उनके फेफड़ों की बर्बादी !
डिब्बे पर स्पष्ट रूप से यह लिखा होने के वाबजूद की सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ,लोगों को इसका कोई फ़िक्र नहीं !
और जिन कन्धों पर इस क़ानून को लागू करने की है जिम्मेवारी,
वही अगर नहीं निभा रहे हैं जिम्मेदारी ,
तो लोग क्या समझेंगे अपनी जिम्मेवारी ?

बुधवार, 6 जनवरी 2010

रामकाज करिबे बिना मोहि कहाँ विश्राम

बीसवीं शताब्दी ने
विभाजन का बिष पिलाया
तो स्वतन्त्रता का सूरज
भी दिखलाया
भव्य भारत
अभिनव भारत का
अमृतपान करवाया
स्वदेशाभिमान जगाया
सुसंगठित राष्ट्रशक्ति
का संकल्प लहराया
इक्कीश्वी शताब्दी ने
नवल हर्ष नव उत्कर्ष
की कमलिनियां विकसाई
नव आशा -उत्साह की
नयी उमंगें भर लाई
यह घड़ी राष्ट्र के जीवन में
दिव्य सन्देश लेकर आयी
इसलिए है इश कृपा से
सबको अधिकाधिक
इस अवसर पर
नैतिकता- समरसता पर
पावन जीवन मूल्यों पर
श्रद्धा अस्मिता पर
सांस्कृतिक मान्यता पर
राष्ट्रीय अखंडता पर
गंगा गौमाता पर
सेतु की आस्था पर
भारतीयता पर
घोर घाटा छाई है
अनाचार भ्रष्टाचार से
हिंसा और आतंक से
जातिवाद स्वार्थ से
दानव -भौतिकतावाद से
छिड़ गई है ..........
घनघोर लड़ाई
अनार्यत्व से आर्यत्व का
रावन से राम का
दुर्योधन से अर्जुन का
कंस से कृष्ण का
दुर्घर्ष संघर्ष है
युद्ध्मात्र नहीं है यह
पावन रामकाज है !
राम काज क्षण भंगु शरीरा !
समर मरनु पुनि सुरसरी तीरे !
रावन को रथी देख
नहीं घबराएंगे
विजयी रथ पास है
धर्मध्वज कपिध्वज है
शील के पताके है
परहित के घोड़े है
शौर्य -धैर्य चक्के हैं
गांडीव सुदर्शन है
पृथ्वी आकाश है
अग्नि और त्रिशूल है
चिर विजय मन्त्र है
रामकाज करिबे बिना
मोहि कहाँ विश्राम ?








न्याय


धृतराष्ट्र तो नेत्रहीन थे ,परन्तु गांधारी ने आँखों पर पट्टी बाँध रक्खी थी !क़ानून की देवी भी गांधारी के सामान ही है !गांधारी चाहती तो देख सकती थी ,परन्तु उसने एसा नहीं किया !भीश्मपितामः,गुरु द्रोणाचार्य ,गुरु कृपाचार्य जैसे मनस्वी और तपस्वी महापुरुष सिंहासन से बंध जाए तो इन परिस्थितियों में दुर्योधन और दुशासन ही पैदा होने थे !जब -जब न्याय ने अपनी आँखों पर पट्टी बांधी है और समर्थ पुरुषों ने कर्तव्य न निभाकर मौन धारण किया है ,तब -तब महाभारत ही हुआ है !