शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

संसार का सच

आज मेरा मन परेशान सा लग रहा था .आचानक मन में प्रश्न उठा मैं कौन हूँ ?
कहाँ से आया हूँ? जाना कहाँ है ? आख़िर इस संसार का रहस्य क्या है ?
तभी अचानक मेरी नजर रसोई में रखी प्याज पर गयी और समाधान भी मिलता नजर आया .आप सोचेंगे प्याज से संसार के रहस्य का समाधान ?शायद वेद का दिमाग फ़िर गया है ।
परन्तु सचमुच यह संसार प्याज के समान है ! प्याज को जितना नजदीक से आप खोलेंगे उतने ही आंसू आयेंगे ,दूर से खोलने पर आपको आसूं नही आयेंगे .शायद ऐसा ही यह संसार भी है जितना आप अपना -पराया ,तेरा -मेरा ,मोह-माया में पड़ेंगे उतना ही आप परेशान रहेंगे! हमेशा जिन्दगी से शिकायतें रहेंगी ही।
इस संसार में रहते हुए भी अपना -पराया,तेरा -मेरा से दूर रहिये आपकी सारी चिंताएँ छूमंतर हो जायेंगी ।
और जिस प्रकार प्याज को खोलते रहने पर भी अंततःअन्दर कुछ मिलता नहीं, ऐसा ही यह संसार है !
जितना अन्दर आप घुसेंगे आख़िर आपके हाथ आएगा कुछ भी नही !
प्याज की तरह !

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

पारस नही दीप बनूँ मैं


पारस एक लोहे को सोना तो बना सकता है परन्तु

लाखों प्रयत्नों के बाद भी पारस ,पारस नही बना सकता !किन्तु

एक जलता हुआ दीपक हजारों बुझे हुए दीपक को जलाकर जग को प्रकाशित कर सकता है,

आलोकित कर सकता है !

इसीलिए मेरी इच्छा है की पारस नहीं दीप बनूँ मैं !

सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

हम भी तो कुछ देना सीखें


देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखे
देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखे .......!!ध्रु0!!
सूरज हमें रोशनी देता हवा नया जीवन देती है,
भूख मिटाने को हम सबकी धरती पर होती खेती है ,
औरों का भी हित हो जिसमे हम ऐसा कुछ करना सीखे,
देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखे .......!!०१!!
गर्मी की तपती दुपहर में पेड़ सदा देते है छाया,a
सुमन सुगंध सदा देते है हम सबको फूलो की माला,a
त्यागी तरुओं के जीवन से हम परहित कुछ करना सीखे ,
देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखे .......!!०२!!
जो अनपढ़ है उन्हें पढाये जो चुप है उनको वाणी दे
पिछड़ गए जो उन्हें बढाये समरसता का भाव जगाएं ,
हम मेहनत के दीप जलाकर नया सवेरा लाना सीखे
देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखे ........!!०३!!

सीखें एक दीप से

एक दीप रात भर अंधेरों से जूझता है ,
लड़ता है -अपने अस्तित्व के लिए ,

अपनी पहचान के लिए

पर कहाँ शिकायत करता है -

आँधियों से ,थपेडों से ,अंधियारों से

जो प्रयत्न करते है कि

दीप का अस्तित्व न रहे !

वह दीप है

बस जलता है
स्वयं के लिए
सब के लिए !