रविवार, 7 फ़रवरी 2010

विश्व मंच पर लहराता हिंदी का परचम

एक ओर जहां विश्व हिंदी सम्मलेन और प्रवासी हिंदी सम्मलेन आयोजित हो रहे हैं ,वहीं दूसरी ओर हिंदी पट्टी में पाठकीयता के संकट को लेकर चिंता व कई तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं !एक ओर हिंदी के विस्तृत होते दायरे की बुनियाद पर इसे संयुक्त राष्ट्रसंघ में जगह दिलाने की मांग हो रही है तो दूसरी ओर हिंदी साहित्य के पाठकों की कमी का रोना रोया जा रहा है !एक ओर हिंदी फिल्मों एवं हिंदी विज्ञापनों का बढ़ता जबरदस्त बाजार इसके वैश्विक प्रसार को दर्शाते हैं तो दूसरी ओर अपनों की बेवफाई से अपने ही घरों में घायल कराहती हिंदी कुछ ओर ही कहने को तत्पर दिखती हैं !हिंदी को लेकर इन दो परस्पर विरोधाभाषी तथ्यों के आलोक में यह सवाल उठता है की आखिर सच क्या है ?क्या हिंदी पाठकों की बढी हुई संख्या अंगरेजी के बर्चस्व की कमी को सूचित नहीं करती है !(मालूम होकी ताजा आंकड़ों के अनुसार महत्वपूर्ण दैनिक पत्रों ने अपने पाठकों की संख्या १९१ मिलियन से लगभग २५० मिलियन में महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की है ,जबकि अंगरेजी दैनिक लगभग ३० मिलियन पाठकों के साथ काफी पीछे हैं !) क्या वाकई में हिंदी पट्टी में पाठकीयता का संकट है या मामला राड़-रुदन का है !राड़ -रुदन यानी संकट पाठकों के पाठकीयता का नहीं बल्कि कुछ ओर ही है !
गौरतलब है की विगत कुछ वर्षों में हिंदी का बर्चस्व बढ़ा है ओर इस बर्चस्व में उत्तरोत्तर बढ़ावा ही हो रहा है !कल तक हिंदी हाशिये पर खड़ी नजर आती थी और हिंदी बोलना ,लिखना ओर पढ़ना पिछड़ेपन की पहचान समझा जाता था !उपेक्षा व हिकारत भरी नज़रों से देखने वाले लोग आज हिंदी के खासकर वैश्विक स्तर पर बढ़ते बर्चस्व को नकार पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते है ! अपने को अभिजात्य समझने वाले अंग्रेजीदा लोगों के ड्राइंग रूमों टाक हिंदी पहुँच गयी है ! यह अलग बात है की उनके घरों की शोभा बनकर रह जाती है ! आज बाजार के विज्ञापन की मुख्य भाषा हिंदी ही है !क्योंकि हिंदी के माध्यम से ही बाजार उपभोक्ताओं के एक बहुत बड़े वर्ग तक अपनी पहुँच और पकड़ बनाने में कामयाब हो सका है !यह दीगर बात है की बाजार की इस हिंदी का अपना एक बाजारू रूप है ,किन्तु है तो वह हिंदी ही जो यह साबित करती है की हिंदी भाषा का क्षेत्र कितना विस्तृत और व्यापक प्रभाव लिए हुए है !
भाषा किसी राष्ट्र की संस्कृति का वाहक होता है !किसी प्रान्त विशेष या राष्ट्र विशेष की रहन -सहन ,खान -पान,आचर -विचार इत्यादि से वहाँ पर बोली और समझे जाने वाली भाषा यानी शब्द समूह ,बोलने की शैली ,उच्चारण आदि से बोध होता है! भारत की संस्कृति की गरिमा हिंदी भाषा के जरिये विश्व के कोने -कोने में फ़ैल रही है इसमें कोई शक नहीं !हिंदी भाषा विश्व के जनमानस में विश्वभाषा का रूप धीरे -धीरे धारण कर रहा है !भारत में राजभाषा ,राष्ट्रभाषा तथा संपर्क भाषा के रूप में कच्छप गति से हिंदी की प्रतिष्ठा बढ़ रही है ! अब प्रश्न उठता है की जब भारत में १५ बड़ी भाषा में एसी कौन सी खासियत है जिसकी वजह से भारत में राष्ट्र भाषा तथा विश्व में वैश्विक रूप में हिंदी मान्यता प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हो रही है !
उत्तर में कहना होगा कि -हिंदी भाषा में जो संवहन तथा सम्प्रेषण की क्षमता है वह अन्य भाषाओं की अपेक्षा निराली है !वह एक सहज ,सरल तथा कोमल मधुर भाषा ही नहीं बल्कि अन्य भाषाओं के शब्दों को हृदयंगम करने कि सहिष्णुता भी रखती हैं !इसकी मधुर संगीतात्मक ध्वनियाँ चित्त को मनोहर ढंग से आकर्षित करती है ! हन्दी भाषा में यह गुण विद्यमान है कि वह मन की गहनतम और सूक्ष्मतम अनुभूतियों को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त कर सकती है !यह एक जीवंत भाषा है जो शब्दों की छुआछूत नहीं मानती ,शब्द किधर से भी आ जाए सहर्ष स्वीकार करती है !
इसी स्वीकार्यता का परिणाम है की आज विश्व में कोई ६० करोड़ हिंदी बोलने वाले ,८० करोड़ समझने वाले और अंगरेजी और चीनी के बाद तीसरी सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा बन गयी है ! जागरण न्यूज नेटवर्क के अनुसार आज नेपाल में ८६ लाख ,अमेरिका में ३१ लाख ७ हजार ,मारीशस में ६८ लाख ५ हजार ,दक्षिण अफ्रीका में ८ लाख ९ हजार ,यमन में २ लाख ३३ हजार ,युगांडा में १ लाख ४७ हजार ,सिंगापुर में ५ हजार ,न्यूजीलैंड में २० हजार तथा जर्मनी में ३० हजार से अधिक लोग हिंदी बोलने वाले है !
फिजी ,मारीशस ,गुयाना ,सूरीनाम ,त्रिनिदाद एवं टोबैगो एवं संयुक्त अरब अमीरात में हिंदी अल्पसंख्यक भाषा है !जबकि विश्व के ९३ देशों में संगठित रूप से हिंदी पढ़ाई जा रही है !
जिसमे एशिया में नेपाल ,वर्मा ,थाईलैंड ,सिंगापुर ,मलेशिया ,इंडोनेशिया ,अफ्रीका में मारीशस ,ला रीयूनियन ,केनिया ,रंजानिया ,युगांडा ,योरोप में इंग्लैण्ड ,नैदरलैंड,बेल्जियम ,जर्मनी ,दक्षिणी अमेरिका के आसपास के क्षेत्रों में त्रिनिदाद ,गुयाना ,सूरीनाम ,जमैका ,प्रशांत महासागर वाले क्षेत्रों में न्यूजीलैंड ,आस्ट्रेलिया और फिजी तथा मध्य पूर्व के देशों में दुबई शामिल है जहां की एक बड़ी संख्या में भारतीय निवास करते हैं! य़ू के में वेल्स को हटाकर दूसरी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा हिंदी बन गयी है !लगभग ८ वर्ष पूर्व एक स्वयंसेवी संस्था " हिंदी usa " की स्थापना न्यूजर्सी में की गयी जिसका उद्देश्य बच्चों को हिंदी बोलना पढ़ना और लिखना सिखाकर भारतीय संस्कृति को बचाना है !हिंदी USA हिंदी की २५ पाठशालाएं चलाती हैं जिसमे १६०० से अधिक विद्यार्थी हिंदी के नौ स्तरों में शिक्षा ग्रहण करते हैं !अमेरिका से निकल रही पत्रिकाओं में हिंदी जगत ,सौरभ ,विश्वा ,विश्व विवेक ,विज्ञान प्रकाश और बल हिंदी जगत प्रमुख हैं !यही नहीं विश्व हिंदी न्यास का न्यास समाचार ,बिहार संघ की वैशाली ,आर्य प्रतिनिधि सभा का पत्र,द्विभाषी पत्रिका नवरंग टाइम्स और वाशिंगटन डी सी से प्रकाशित लोकमत भी समय -समय पर अपनी आभा बिखेरती है !
मूलतः मुजफारपुर (बिहार ) के रहने वाले तथा हिंदी और हिन्दुस्थान को अपने जीवन में जीने वाले रशिया (रूस ) से MBBS की पढाई कर रहे श्री सौरभ दत्ता कहते हैं -"गैरों में कहाँ दम था अपनों की वेबफाई ने ही रुलाया था "!हिंदी आज अपने ही घरो में अपमानित हो रही है !तथाकथित बुद्धिजीवी खाते तो हैं हिंदी की रोटी और बोलते तथा जीते हैं अंगरेजी और अंग्रेजियत को !वे सचेत करते हुए कहते है की हम भारतीयों को पश्चिम की तरफ देखने व जूठी प्लेटे चाटने की आदत पड़ती जा रही है !हिंदी की स्वीकार्यता को सारी दुनिया स्वीकार कर रही है अपितु इसके की हम इसको हिंगलिश का रूप दे हिंदी की मौलिकता से खिलवाड़ कर रहेहै !समय रहते सचेत रहना जरूरी है !भारतीय भाषाओं से सम्बंधित कार्य भारतीयों को ही करना है !इस कार्य को करने के लिए संपन्न और योग्य हैं ! इसी में हिंदी के उन्नति का मार्ग प्रशस्त होगा !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें