सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

फर्क लाल बहादुर शास्त्री और राजीव गांधी में


लालबहादुर शास्त्री यानी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री !जिसके एक आह्वान पर देश पर मंडराते काले बादल के समय करोड़ों लोगों ने एक शाम का भोजन करना छोड़ दिया !जनता के नब्ज पर इतनी मजबूत पकड़ थी ,शास्त्री जी की! सरलता ,सहजता और मितव्यता के अनूठे वाहक !काम करने की चाहत रहती थी उनकी !प्रशंसा और प्रसिद्धि से कोसों दूर !समाचारपत्रों से वे अधिकतर दूर ही रहते थे !एक बार कई पत्रकारों ने शास्त्री जी से इसका उत्तर जानना चाहा !

उन्होंने बड़ी सहजता से जबाब दिया -ताजमहल में संगमरमर के एक ही पत्थर लगे होते हैं,लेकिन दुनिया मीनार की प्रशंसा करती हैं !नीवं में लगे पत्थरों की कोई प्रशंसा नहीं करता !लेकिन सच्चाई यही है की ताजमहल उन्ही नीवं पर टिका होता है !मै मीनार का नहीं ,नीवं का ही पत्थर बने रहना चाहता हूँ !महानता के इतने उद्दात आदर्शों को अपने जीवन में जीने वाले थे पूर्व प्रधान मंत्री लालबहादुर शास्त्री !

दूसरी और १९८४ में इंदिरा गांधी के ह्त्या के पश्चात नेहरू के एक और वंश बेल के रूप में उनके नाती राजीव गांधी ने सत्ता संभाली ! देश के नब्ज पर श्री गांधी की कितनी पकड़ थी इसका भी एक बड़ा ही अच्छा उदाहरण सुनने को मिलता है !
एक बार श्री राजीव जी गावों में घूमने गए (जैसा की आजकल राहुल जी जा रहे हैं ) !वहाँ भूसे का ढेर देखकर राजीव जी ने एक बुढ़िया माता से पूछा माते -"यह क्या है ? "तो माता जी ने बताया की यह गेहूं का भूसा है !राजीव गांधी का लालन -पालन तथा पढ़ाई शहरों एवं विदेशों में होने के कारण गावों के बारे में जानकारी होती तो कैसे ?इस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प .पू .श्री गुरूजी ने चुटकी लेते हुए कहा था -"अगर मै उस माते की जगह होता तो कहता की यह सूजी है और राजीव जी को उसका हलुआ बनाकर खिलाता !जिस देश के प्रधानमंत्री को ७० प्रतिशत ग्रामीण भारत के बारे में कुछ मालूम नहीं ,वह देश का कितना उत्थान कर सकते हैं?इसकी कल्पना तो आप सहज रूप से कर ही सकते हैं !"
लालबहादुर शास्त्री और राजीव गांधी के जीवन में कितना अंतर था इसकी कल्पना आप ऊपर दिए दोनों प्रकरणों के बाद तो लगा ही लिए होंगे !लेकिन वर्तमान संप्रग सरकार की नज़रों में "जय जवान -जय किसान "का मन्त्र गुंजाने वाले शास्त्री जी की जगह राजीव गांधी अधिक श्रेष्ठ थे !तभी तो महगाई के इस दौर में किफायत का नारा गढ़कर वाहवाही लूट रही सोनिया पार्टी की संप्रग सरकार सरकारी विज्ञापनों के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री के साथ भेदभाव बरत रही है !एक विभाग न केवल राजीव गांधी के महिमा मंडन में करोड़ों रुपया फूंक रहा है बल्कि ,ख़ास बात यह है की इस विभाग ने राजीव गांधी के गुणगान में सिर्फ दो महीने की अवधि में जितना धन खर्च किया है वह पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पर पिछले दश सालों में खर्च धन से तीन गुना ज्यादा है !
सूचनाधिकार क़ानून के तहत विज्ञापन और दृश्यप्रचार निदेशालय द्वारा दिए गए एक जबाव में यह जानकारी दी गयी है! देश के DAVP ने दो महीनों जुलाई -अगस्त २००९ में राजीव गांधी को महिमा मंडित करने के लिए ०२ करोड़ ९७ लाख ७० हजार ४९८ रूपये के विज्ञापन जारी किये,जबकि शास्त्री जी के लिए पिछले दस साल २००१ -२०१० में मात्र ८७ लाख मूल्य के विज्ञापन जारी किये गए !
मुंबई निवासी अजय म्हात्रे ने सूचना मंत्रालय में आरटीआई दाखिल कर यह जानकारी माँगी थी !जिसके जबाव में आखें खोलने वाली यह जानकारी प्राप्त हो पायी है !यह तो संप्रग सरकार के नमूने के केवल एक झांकी है !आगे बहुत कुछ अभी और भी बाकी है !धीरे -धीरे एसे ही तहों तक की जानकारी को हम आपके सम्मुख लाते रहेंगे !

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