बुधवार, 13 जनवरी 2010

अनाथों के हम हैं नाथ

दोपहर के ०१:०० बजे हैं !भोजनावकाश के लिए घंटियाँ टनटनाती है !स्कूलों से निकल सैकड़ों बच्चे हाथ -मुंह धो, चप्पल -जूते उतार पंक्ति में बैठ जाते हैं !उन्हीं में से कुछ बच्चे भोजन परोसते हैं !एक छोटी सी सीटी का संकेत और भोजन प्रारंभ से पूर्व मन्त्र गूंजता है -" ॐ सहनाववतु सहनौ भुनक्तु ,सहवीर्यं करवावहे .........." !
शांतिपूर्ण और अनुशासन के अनूठे समागम के बीच भोजन कर रहे ये सारे एसे बच्चे हैं जिनके परिवार में उनका कोई सहारा नहीं है या उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है की वे पढाई कर सके !पूर्वात्तर भारत के ऐसे ही १९५ बच्चों का सहारा है जनसेवा न्यास द्वारा दिल्ली मेरठ रोड पर संचालित " माधव कुञ्ज " !
कुञ्ज के प्रकल्प प्रमुख अनिल जी २० वर्ष पहले बेसहारा बच्चों की पीड़ा से इतने दुखी हुए की उन्होंने तय किया की जीवन में बच्चे तो नहीं पैदा करूंगा लेकिन एसे अनाथ बच्चों का नाथ जरूर बनूँगा !और इस संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का निश्चय किया !
समाज के कुछ लोगों से सहयोग प्राप्त कर वर्ष २००३ में प्रारंभ हुए माधव कुञ्ज ने मात्र छ : वर्षों में ही लम्बी छलांग लगाई है !बिना कोई सरकारी सहयोग के संचालित माधव कुञ्ज के पास न केवल अपना जमीन तथा करोड़ों का भवन है ,वरण कुञ्ज के अन्दर समृद्ध गौशाला ,आरोग्य केंद्र ,भव्य विद्यालय ,मंदिर तथा २०० छात्रों के रहने लायक छात्रावास भी है !

और सबसे बड़ी बात है की इन सारे प्रकल्पों को ये सारे बच्चे ही मिलकर सँभालते और सवारते है !वे न केवल शिक्षा ग्रहण करते हैं बल्कि स्वरोजगार और स्वाबलंबन के अनूठे संस्कार भी यहीं से ग्रहण कर अपने पैरों पर खडा होने का भरसक प्रयत्न भी कर रहे हैं !
माधव कुञ्ज न केवल बेसहारा बच्चों का सहारा बना है वरण निःशुल्क इलाज के कारण दूर दराज के गरीब लोगों के आशा की किरण बनकर खडा है !और इन सारे प्रकल्पों के बुनियाद के पीछें हैं श्री अनिल जी !यह पूछने पर की इन बच्चों के तो आप ही सहारा हैं ?नाम ,पद ,प्रशिद्धि से मीलों दूर श्री अनिल जी कहतें हैं -"मैं तो भारत माता के पुत्र के नाते अपना कर्तव्य समझकर यह कर रहा हूँ !इसमें सहारे की कौन सी बात है !मैं इन बच्चों पर कोई उपकार थोड़े ही कर रहा हूँ !यह तो मेरा सौभाग्य है की मुझे इन बच्चों को संवारने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है ! "
जब तक भारत भूमि पर माधव कुञ्ज के पीछे लगे अनाम हितचिन्तक और अनिल जी जैसे समाज चिन्तक है कोई भी बच्चे बेसहारा कैसे हो सकते हैं !अरुणाचल के केशव से यह पूछने पर की आपके परिवार में कौन -कौन हैं ?केशव निःसंकोच कहते हैं -अपने अनिल जी हैं न !

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