शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

यादवी दीवारों में दबती जनता




एक कहावत है -
राजा अगर राम हुआ तो सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ेगा ,और राजा अगर रावण हुआ तो सीता हरी जायेगी !
राजा अगर पांडव हुआ तो द्रोपदी जुए में हारी जायेगी ,और राजा अगर कौरव हुआ तो उसका चीर हरण होगा !
राजा अगर हिन्दू हुआ तो जनता जलाई जायेगी ,और राजा अगर मुसलमान हुआ तो जनता दफनाई जायेगी!

पिसती आखिर जनता ही है !

अगस्त १८,२००८ !कोसी वासियों के लिए काला अध्याय !कोसी मैया के प्रकोप ने यूँ कहर ढाया की लोगों में हाहाकार मच गया !अचानक आयी भयंकर बाढ़ ने न केवल लोगों के घर उजारे वरण हजारों मांगों की सिन्दूरं पोंछ गयी !अनेक माओं की गोद सूनी हुई तो लाखों पशु काल के गाल में समा गए !लोगों के पास बच गए तो केवल फटेहाल बदन और उअर खुला गगन !लोग दाने -दाने को मोहताज हो गए !आवागमन के सारे साधन तहस -नहस हो गए !
कुछ दिनों तक तो बाढ़ राहत के सामानों से पेट भरा परन्तु लोगों के सामने समस्या थी की वे जाये कहाँ ?क्योंकि अब उनके पास कुछ भी नहीं बच गया था !न रहने का घर और न खाने को अन्न !परन्तु इससे अधिक तो नेताओं की कारगुजारियों ने उन्हें रुलाया !पुनर्वास के नाम पर केंद्र से करोड़ों झटके परन्तु सत्ता के ये घिनोने दलाल अपनों में ही उसे गटक गए ! लेकन स्थानीय सांसद शरद यादव द्वारा किये प्रयासों का वर्णन करते अघाते थकते नहीं उनके जिलाध्यक्ष रामानंद यादव उर्फ़ "झल्लू बाबू" !
श्री यादव कहते हैं -" हमारी जदयू सरकार ने हरसंभव लोंगों को जीवन -यापन के लायक सामान मुहैया कराई है तथा फसलो के नुकसान का मुआवजा भी दिया जा रहा है ! "परन्तु असलियत है की ५० हजार प्रति एकड़ लागत की जगह किसानों को २०० से ५०० रु प्रति एकड़ ही मुआवजा मिल रहा है !वह भी दफ्तरों के लाखों चक्कर काटने के बाद !
दूसरी ओर पूर्व सांसद रहे लालू यादव के नजदीकी तथा पूर्व राजद प्रत्याशी रवीन्द्र चरण लालू गुणगान करते थकते नहीं !रवीन्द्र चरण कहतें हैं - "लालू यादव के दवाब तथा प्रयासों के कारण ही केंद्र सरकार ने १२०० करोड़ की सहाता राशि तत्काल उपलब्द्ध कराई !तथा हमारे नेता ने उस समय रेल मंत्रालय की ओर से भी भरपूर सहायता की !पर राज्य सरकार ठीक से उसे खर्च ही नहीं कर पा रही है !"
सबके अपने -अपने दावे !लेकिन लोगों की दयनीय स्थिति इन दावों की हवा निकल देती है !लोगों की पहली जरूरत है की उनके पास रहने लायक घर तो हो !परन्तु अपने बलबूते घर बनाना इतना आसान नहीं! हालांकि इंदिरा आवास योजना के तहत कुछ लोगों को २५ -२५ हजार की सहायता राशि मिली है लेकिन बाढ़ से प्रभावित लाखों जनता के सामने यह संख्या बहुत छोटी है !केवल मधेपुरा में बढ़ से १४ लाख लोग प्रभावित हुए हैं !
कोसी के लोगों के जीविका का मुख्य आधार खेती है !परन्तु तबाह हो चुके लोगों के पास खेती लायक साधन नहीं !ऊपर से बढ़ती महगाई ने खाद बीजों के दामों में इतनी बढ़ोतरी कर दी है की किसानों के लिए बीज खरीदना ही मुश्किल हो रहा है !खाद पानी की जुगाड़ तो दूर की बात ! ऊपर से पेट्रोल और डीजल के बढे दामों ने उनके खेती पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है !किसान हतास -निराश है कि आखिर खेतों का पटवन कैसे हो ?और बिना पटवन के फसलें तो मारीं जायेंगी !
रुदन कर रहे लोग, उनके परिवार, बच्चे पर महगाई कब तरस खाकर अपना ग्राफ नीचे करती है यह तो केन्द्रीय सत्ता -प्रतिष्ठान ही शायद बेहतर बता सकती हैं!
मधेपुरा के लोगों का क्या कुसूर की उन पर टूटा एक और कोसी का कहर तो दूसरी और नेताओं ने उन्हें छाला !कभी पिछड़ों के हिमायती के नाम पर लालू यादव ,युवा शक्ति के नाम पर पप्पू यादव तो कभी विकास के नाम पर शरद यादव !पर यहाँ के लोगों के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया !हकीकत यही है की हमेशा इन यादवी दीवारों के नीचे जनता दबती ही गयी !और पिछड़ों के नाम पर ये यादव असुर नेता अपने परिवारों का पेट भरते रहे !कभी तिहार में बैठे पप्पू यादव, तो हमेशा दिल्ली से रिमोट कंट्रोल से संचालित करते शरद यादव !लेकिन लोगों के जीवन में न कोई उत्थान न कोई परिवर्तन !हाँ पंजाब और हरियाणा के मजदूरी के बल पर अपने पापी पेट तो भर ही लेते हैं !क्या उनके लिए विकास के यही मायने हैं ?

रविवार, 7 फ़रवरी 2010

विश्व मंच पर लहराता हिंदी का परचम

एक ओर जहां विश्व हिंदी सम्मलेन और प्रवासी हिंदी सम्मलेन आयोजित हो रहे हैं ,वहीं दूसरी ओर हिंदी पट्टी में पाठकीयता के संकट को लेकर चिंता व कई तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं !एक ओर हिंदी के विस्तृत होते दायरे की बुनियाद पर इसे संयुक्त राष्ट्रसंघ में जगह दिलाने की मांग हो रही है तो दूसरी ओर हिंदी साहित्य के पाठकों की कमी का रोना रोया जा रहा है !एक ओर हिंदी फिल्मों एवं हिंदी विज्ञापनों का बढ़ता जबरदस्त बाजार इसके वैश्विक प्रसार को दर्शाते हैं तो दूसरी ओर अपनों की बेवफाई से अपने ही घरों में घायल कराहती हिंदी कुछ ओर ही कहने को तत्पर दिखती हैं !हिंदी को लेकर इन दो परस्पर विरोधाभाषी तथ्यों के आलोक में यह सवाल उठता है की आखिर सच क्या है ?क्या हिंदी पाठकों की बढी हुई संख्या अंगरेजी के बर्चस्व की कमी को सूचित नहीं करती है !(मालूम होकी ताजा आंकड़ों के अनुसार महत्वपूर्ण दैनिक पत्रों ने अपने पाठकों की संख्या १९१ मिलियन से लगभग २५० मिलियन में महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की है ,जबकि अंगरेजी दैनिक लगभग ३० मिलियन पाठकों के साथ काफी पीछे हैं !) क्या वाकई में हिंदी पट्टी में पाठकीयता का संकट है या मामला राड़-रुदन का है !राड़ -रुदन यानी संकट पाठकों के पाठकीयता का नहीं बल्कि कुछ ओर ही है !
गौरतलब है की विगत कुछ वर्षों में हिंदी का बर्चस्व बढ़ा है ओर इस बर्चस्व में उत्तरोत्तर बढ़ावा ही हो रहा है !कल तक हिंदी हाशिये पर खड़ी नजर आती थी और हिंदी बोलना ,लिखना ओर पढ़ना पिछड़ेपन की पहचान समझा जाता था !उपेक्षा व हिकारत भरी नज़रों से देखने वाले लोग आज हिंदी के खासकर वैश्विक स्तर पर बढ़ते बर्चस्व को नकार पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते है ! अपने को अभिजात्य समझने वाले अंग्रेजीदा लोगों के ड्राइंग रूमों टाक हिंदी पहुँच गयी है ! यह अलग बात है की उनके घरों की शोभा बनकर रह जाती है ! आज बाजार के विज्ञापन की मुख्य भाषा हिंदी ही है !क्योंकि हिंदी के माध्यम से ही बाजार उपभोक्ताओं के एक बहुत बड़े वर्ग तक अपनी पहुँच और पकड़ बनाने में कामयाब हो सका है !यह दीगर बात है की बाजार की इस हिंदी का अपना एक बाजारू रूप है ,किन्तु है तो वह हिंदी ही जो यह साबित करती है की हिंदी भाषा का क्षेत्र कितना विस्तृत और व्यापक प्रभाव लिए हुए है !
भाषा किसी राष्ट्र की संस्कृति का वाहक होता है !किसी प्रान्त विशेष या राष्ट्र विशेष की रहन -सहन ,खान -पान,आचर -विचार इत्यादि से वहाँ पर बोली और समझे जाने वाली भाषा यानी शब्द समूह ,बोलने की शैली ,उच्चारण आदि से बोध होता है! भारत की संस्कृति की गरिमा हिंदी भाषा के जरिये विश्व के कोने -कोने में फ़ैल रही है इसमें कोई शक नहीं !हिंदी भाषा विश्व के जनमानस में विश्वभाषा का रूप धीरे -धीरे धारण कर रहा है !भारत में राजभाषा ,राष्ट्रभाषा तथा संपर्क भाषा के रूप में कच्छप गति से हिंदी की प्रतिष्ठा बढ़ रही है ! अब प्रश्न उठता है की जब भारत में १५ बड़ी भाषा में एसी कौन सी खासियत है जिसकी वजह से भारत में राष्ट्र भाषा तथा विश्व में वैश्विक रूप में हिंदी मान्यता प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हो रही है !
उत्तर में कहना होगा कि -हिंदी भाषा में जो संवहन तथा सम्प्रेषण की क्षमता है वह अन्य भाषाओं की अपेक्षा निराली है !वह एक सहज ,सरल तथा कोमल मधुर भाषा ही नहीं बल्कि अन्य भाषाओं के शब्दों को हृदयंगम करने कि सहिष्णुता भी रखती हैं !इसकी मधुर संगीतात्मक ध्वनियाँ चित्त को मनोहर ढंग से आकर्षित करती है ! हन्दी भाषा में यह गुण विद्यमान है कि वह मन की गहनतम और सूक्ष्मतम अनुभूतियों को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त कर सकती है !यह एक जीवंत भाषा है जो शब्दों की छुआछूत नहीं मानती ,शब्द किधर से भी आ जाए सहर्ष स्वीकार करती है !
इसी स्वीकार्यता का परिणाम है की आज विश्व में कोई ६० करोड़ हिंदी बोलने वाले ,८० करोड़ समझने वाले और अंगरेजी और चीनी के बाद तीसरी सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा बन गयी है ! जागरण न्यूज नेटवर्क के अनुसार आज नेपाल में ८६ लाख ,अमेरिका में ३१ लाख ७ हजार ,मारीशस में ६८ लाख ५ हजार ,दक्षिण अफ्रीका में ८ लाख ९ हजार ,यमन में २ लाख ३३ हजार ,युगांडा में १ लाख ४७ हजार ,सिंगापुर में ५ हजार ,न्यूजीलैंड में २० हजार तथा जर्मनी में ३० हजार से अधिक लोग हिंदी बोलने वाले है !
फिजी ,मारीशस ,गुयाना ,सूरीनाम ,त्रिनिदाद एवं टोबैगो एवं संयुक्त अरब अमीरात में हिंदी अल्पसंख्यक भाषा है !जबकि विश्व के ९३ देशों में संगठित रूप से हिंदी पढ़ाई जा रही है !
जिसमे एशिया में नेपाल ,वर्मा ,थाईलैंड ,सिंगापुर ,मलेशिया ,इंडोनेशिया ,अफ्रीका में मारीशस ,ला रीयूनियन ,केनिया ,रंजानिया ,युगांडा ,योरोप में इंग्लैण्ड ,नैदरलैंड,बेल्जियम ,जर्मनी ,दक्षिणी अमेरिका के आसपास के क्षेत्रों में त्रिनिदाद ,गुयाना ,सूरीनाम ,जमैका ,प्रशांत महासागर वाले क्षेत्रों में न्यूजीलैंड ,आस्ट्रेलिया और फिजी तथा मध्य पूर्व के देशों में दुबई शामिल है जहां की एक बड़ी संख्या में भारतीय निवास करते हैं! य़ू के में वेल्स को हटाकर दूसरी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा हिंदी बन गयी है !लगभग ८ वर्ष पूर्व एक स्वयंसेवी संस्था " हिंदी usa " की स्थापना न्यूजर्सी में की गयी जिसका उद्देश्य बच्चों को हिंदी बोलना पढ़ना और लिखना सिखाकर भारतीय संस्कृति को बचाना है !हिंदी USA हिंदी की २५ पाठशालाएं चलाती हैं जिसमे १६०० से अधिक विद्यार्थी हिंदी के नौ स्तरों में शिक्षा ग्रहण करते हैं !अमेरिका से निकल रही पत्रिकाओं में हिंदी जगत ,सौरभ ,विश्वा ,विश्व विवेक ,विज्ञान प्रकाश और बल हिंदी जगत प्रमुख हैं !यही नहीं विश्व हिंदी न्यास का न्यास समाचार ,बिहार संघ की वैशाली ,आर्य प्रतिनिधि सभा का पत्र,द्विभाषी पत्रिका नवरंग टाइम्स और वाशिंगटन डी सी से प्रकाशित लोकमत भी समय -समय पर अपनी आभा बिखेरती है !
मूलतः मुजफारपुर (बिहार ) के रहने वाले तथा हिंदी और हिन्दुस्थान को अपने जीवन में जीने वाले रशिया (रूस ) से MBBS की पढाई कर रहे श्री सौरभ दत्ता कहते हैं -"गैरों में कहाँ दम था अपनों की वेबफाई ने ही रुलाया था "!हिंदी आज अपने ही घरो में अपमानित हो रही है !तथाकथित बुद्धिजीवी खाते तो हैं हिंदी की रोटी और बोलते तथा जीते हैं अंगरेजी और अंग्रेजियत को !वे सचेत करते हुए कहते है की हम भारतीयों को पश्चिम की तरफ देखने व जूठी प्लेटे चाटने की आदत पड़ती जा रही है !हिंदी की स्वीकार्यता को सारी दुनिया स्वीकार कर रही है अपितु इसके की हम इसको हिंगलिश का रूप दे हिंदी की मौलिकता से खिलवाड़ कर रहेहै !समय रहते सचेत रहना जरूरी है !भारतीय भाषाओं से सम्बंधित कार्य भारतीयों को ही करना है !इस कार्य को करने के लिए संपन्न और योग्य हैं ! इसी में हिंदी के उन्नति का मार्ग प्रशस्त होगा !

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

फर्क लाल बहादुर शास्त्री और राजीव गांधी में


लालबहादुर शास्त्री यानी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री !जिसके एक आह्वान पर देश पर मंडराते काले बादल के समय करोड़ों लोगों ने एक शाम का भोजन करना छोड़ दिया !जनता के नब्ज पर इतनी मजबूत पकड़ थी ,शास्त्री जी की! सरलता ,सहजता और मितव्यता के अनूठे वाहक !काम करने की चाहत रहती थी उनकी !प्रशंसा और प्रसिद्धि से कोसों दूर !समाचारपत्रों से वे अधिकतर दूर ही रहते थे !एक बार कई पत्रकारों ने शास्त्री जी से इसका उत्तर जानना चाहा !

उन्होंने बड़ी सहजता से जबाब दिया -ताजमहल में संगमरमर के एक ही पत्थर लगे होते हैं,लेकिन दुनिया मीनार की प्रशंसा करती हैं !नीवं में लगे पत्थरों की कोई प्रशंसा नहीं करता !लेकिन सच्चाई यही है की ताजमहल उन्ही नीवं पर टिका होता है !मै मीनार का नहीं ,नीवं का ही पत्थर बने रहना चाहता हूँ !महानता के इतने उद्दात आदर्शों को अपने जीवन में जीने वाले थे पूर्व प्रधान मंत्री लालबहादुर शास्त्री !

दूसरी और १९८४ में इंदिरा गांधी के ह्त्या के पश्चात नेहरू के एक और वंश बेल के रूप में उनके नाती राजीव गांधी ने सत्ता संभाली ! देश के नब्ज पर श्री गांधी की कितनी पकड़ थी इसका भी एक बड़ा ही अच्छा उदाहरण सुनने को मिलता है !
एक बार श्री राजीव जी गावों में घूमने गए (जैसा की आजकल राहुल जी जा रहे हैं ) !वहाँ भूसे का ढेर देखकर राजीव जी ने एक बुढ़िया माता से पूछा माते -"यह क्या है ? "तो माता जी ने बताया की यह गेहूं का भूसा है !राजीव गांधी का लालन -पालन तथा पढ़ाई शहरों एवं विदेशों में होने के कारण गावों के बारे में जानकारी होती तो कैसे ?इस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प .पू .श्री गुरूजी ने चुटकी लेते हुए कहा था -"अगर मै उस माते की जगह होता तो कहता की यह सूजी है और राजीव जी को उसका हलुआ बनाकर खिलाता !जिस देश के प्रधानमंत्री को ७० प्रतिशत ग्रामीण भारत के बारे में कुछ मालूम नहीं ,वह देश का कितना उत्थान कर सकते हैं?इसकी कल्पना तो आप सहज रूप से कर ही सकते हैं !"
लालबहादुर शास्त्री और राजीव गांधी के जीवन में कितना अंतर था इसकी कल्पना आप ऊपर दिए दोनों प्रकरणों के बाद तो लगा ही लिए होंगे !लेकिन वर्तमान संप्रग सरकार की नज़रों में "जय जवान -जय किसान "का मन्त्र गुंजाने वाले शास्त्री जी की जगह राजीव गांधी अधिक श्रेष्ठ थे !तभी तो महगाई के इस दौर में किफायत का नारा गढ़कर वाहवाही लूट रही सोनिया पार्टी की संप्रग सरकार सरकारी विज्ञापनों के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री के साथ भेदभाव बरत रही है !एक विभाग न केवल राजीव गांधी के महिमा मंडन में करोड़ों रुपया फूंक रहा है बल्कि ,ख़ास बात यह है की इस विभाग ने राजीव गांधी के गुणगान में सिर्फ दो महीने की अवधि में जितना धन खर्च किया है वह पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पर पिछले दश सालों में खर्च धन से तीन गुना ज्यादा है !
सूचनाधिकार क़ानून के तहत विज्ञापन और दृश्यप्रचार निदेशालय द्वारा दिए गए एक जबाव में यह जानकारी दी गयी है! देश के DAVP ने दो महीनों जुलाई -अगस्त २००९ में राजीव गांधी को महिमा मंडित करने के लिए ०२ करोड़ ९७ लाख ७० हजार ४९८ रूपये के विज्ञापन जारी किये,जबकि शास्त्री जी के लिए पिछले दस साल २००१ -२०१० में मात्र ८७ लाख मूल्य के विज्ञापन जारी किये गए !
मुंबई निवासी अजय म्हात्रे ने सूचना मंत्रालय में आरटीआई दाखिल कर यह जानकारी माँगी थी !जिसके जबाव में आखें खोलने वाली यह जानकारी प्राप्त हो पायी है !यह तो संप्रग सरकार के नमूने के केवल एक झांकी है !आगे बहुत कुछ अभी और भी बाकी है !धीरे -धीरे एसे ही तहों तक की जानकारी को हम आपके सम्मुख लाते रहेंगे !

जनहुंकार आतंक के विरुद्ध


न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के छ : साल पूरे हो चुके है !इस हमले के पश्चात अमेरिका ने आतंकवाद का समूल नाश करने का लक्ष्य बनाया था !यद्यपि अपने इस लक्ष्य में वह पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है ,लेकिन पिछले छ ; वर्षों में अमेरिका में एक भी बड़ी आतंकवादी घटना नहीं घटी !यह इस बात का प्रमाण है की अपनी आतंरिक सुरक्षा में उन्होंने पूर्ण सफलता कर ली है !
इसे संभव बनाने में वहाँ की जनता ,प्रशासन ,सुरक्षा एजेंसियों ,नेताओं ,नौकरशाहों ,न्याय व्यवस्था तथा सैनिक बलों ने एकजुट होकर एक निति के तहत काम किया है !आज अमेरिका आतंरिक और बाह्य सुरक्षा की नजर से बेहद सुरक्षित देश है !
इसके विपरीत संसद पर हमले से हैदराबाद विस्फोट तक भारत में छोटी और बड़ी आतंकवादी घटनाओं में बड़ी तादाद में निर्दोष लोग तथा सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं और आतंकवाद बढ़ता ही जा रहा है !कुछ समय पहले तक पाकिस्तान पोषित आतंकवाद केवल कश्मीर तक ही सीमित था ,लेकिन अब यह धीरे -धीरे पूरे भारत में फ़ैल गया है !आज भारत के लोग आतंक के साए में जी रहे है !
हमारे नेताओं ने केवल बातों से लड़ाई की है और मीडिया को बयानबाजी से भरमाया है ,क्योंकि इस समस्या से जूझने के लिए अभी तक भारत के पास कोई ठोस नीति ही नहीं है !भारत में समय -समय पर हो रही आतंकवादी घटनाओं से निबटने में असफलता के कारण दुनिया ने भारत को "सोफ्ट स्टेट की " संज्ञा दे दी है !बिना कठोर क़ानून के आतंकवाद को रोकना संभव नहीं है !आज तक कोई भी ठोस क़ानून नहीं बना ,जिससे सेना को उग्रवाद मिटने में मदद मिल सके !
/११ की घटना के बाद अमेरिका ,कनाडा ,ब्रिटेन तथा आस्ट्रेलिया ने उग्रवाद विरोधी सख्त क़ानून बनाए ,और उस पर अमल किया गया !हमने भी इन चार देशों की तरह पोटा बनाया !पोटा को संप्रग सरकार ने हटा तो दिया लिकिन उसके बदले लचीले क़ानून बनाकर मात्र अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली ! लगता है प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री को कठिन रास्ता पसंद नहीं !
राष्ट्र के आंतरिक हिस्सों में तोड़ -फोड़ बाह्य गतिविधियों से भी अधिक खतरनाक है !इससे समाज में अलगाव की स्थिति पैदा होती है !इस पर तुरंत रोक लगाने की कोशिश होनी चाहिए !इसके लिए घरेलू शासन को चुस्त करना होगा !आतंवाद के प्रति प्रशासन का ढीला रवैया हमारी असफलता का बड़ा कारण है !प्रशासनिक कर्मियों की कमजोरियों तथा राजनितिक दवाब की वजह से सेना के जवानों का मनोबल टूट रहा है !
हमारे पास कोई कानून नहीं है ,जिसके तहत हम उग्रवादियों को छुपकर मदद कर रहे लोगों के विरुद्ध कारवाई कर सके !कुछ दिन पहले सरकार ने सुरक्षा एजेंसियों तथा पुलिस की "टास्क- फ़ोर्स" को कर्मठ बनाने के लिए ३५ हजार करोड़ रु खर्च करने का एलान किया , लेकिन इन सबसे कुछ नतीजा निकलने वाला नहीं ,जब तक फैलते उग्रवाद को बढ़ावा देने में अधिकारियों को जबाबदेह नहीं बनाया जाता!
कश्मीर में पिछले १८ वर्षों में पकडे गए हजारों आतंकियों में कितनो को सजा मिल पाई है ?याद रहे उग्रवादियों के विरुद्ध एक्शन में सुरक्षाकर्मियों की जाने जाती हैं और काफी मुश्किलों के बाद उग्रवादी पकडे जाते हैं ! यदि सालों तक उन उग्रवादियों की देखभाल सरकार करती रहे और जल्दी सजा न मिले ,तो सैनिकों का मनोबल टूटेगा ही !
हमारे प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान का दिल जीतने के लिए बड़े प्रयत्न किये ,परन्तु नतीजा सिफर ही रहा !पाकिस्तान उग्रवादियों की मदद हर तरह करता ही रहेगा !यही करण है की उग्रवादी १८ साल की जद्दोजहद के बाद भी और हजारों की संख्या में मारे जाने के वाबजूद न तो हारे हैं ,न थके हैं और न ही उनके हिमायतियों की कमी हुई है !हमें यह काम स्वयं करना होगा !
इस काम में पाकिस्तान से मदद की आशा करना हमारी बड़ी भूल है ! समय आ गया है की हमें उग्रवादियों के ट्रेनिंग ठिकानों को बर्बाद करने की कारवाई करनी चाहिए !विशेषतौर पर उन ठिकानों को जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है !पाकिस्तान को चेताते रहने और इससे आगे कुछ नहीं करने की नीति से आतंकवाद ख़त्म नहीं होगा !
किसी दुसरे देश से उम्मीद करना की वह हमारे इस काम में मदद करेगा ,बड़ी भूल होगी !अमेरिका के इशारों पर काम करने का नतीजा हम भुगत चुके हैं !हमें वही करना चाहिए जो हमारे हित में है !विश्व मंचों पर इस मामले को उठाकर हमने कुछ हासिल नहीं किया !
इस समय चन्द पंक्तिया याद आ रही है .......

क्या हुआ कुछ -कुछ लोग हिंसक हो गए ,

पड़ोसी अपने निरंकुश हो गए !

हुक्मरानों बात ये कडवी लगे तो माफ़ करना ,

वो हिंसक नहीं हुए हम नपुंसक हो गए !!
ठोस नीति का आभाव ,राजनैतिक भ्रष्टाचार ,लचर प्रशासनिक व्यवस्था ,पुलिस की नाकामी तथा सेना के गिरते मनोबल के कारण आतंकवाद बेकाबू होकर फैलता जा रहा है !केवल बयानों से आतंकवाद ख़त्म नहीं किया जा सकता !समय आ गया है की हमारे नेता धधकते पौरुष को जागृत करें और जनता के भीतर सुरक्षा विश्वास पैदा करें !