बुधवार, 6 जनवरी 2010

रामकाज करिबे बिना मोहि कहाँ विश्राम

बीसवीं शताब्दी ने
विभाजन का बिष पिलाया
तो स्वतन्त्रता का सूरज
भी दिखलाया
भव्य भारत
अभिनव भारत का
अमृतपान करवाया
स्वदेशाभिमान जगाया
सुसंगठित राष्ट्रशक्ति
का संकल्प लहराया
इक्कीश्वी शताब्दी ने
नवल हर्ष नव उत्कर्ष
की कमलिनियां विकसाई
नव आशा -उत्साह की
नयी उमंगें भर लाई
यह घड़ी राष्ट्र के जीवन में
दिव्य सन्देश लेकर आयी
इसलिए है इश कृपा से
सबको अधिकाधिक
इस अवसर पर
नैतिकता- समरसता पर
पावन जीवन मूल्यों पर
श्रद्धा अस्मिता पर
सांस्कृतिक मान्यता पर
राष्ट्रीय अखंडता पर
गंगा गौमाता पर
सेतु की आस्था पर
भारतीयता पर
घोर घाटा छाई है
अनाचार भ्रष्टाचार से
हिंसा और आतंक से
जातिवाद स्वार्थ से
दानव -भौतिकतावाद से
छिड़ गई है ..........
घनघोर लड़ाई
अनार्यत्व से आर्यत्व का
रावन से राम का
दुर्योधन से अर्जुन का
कंस से कृष्ण का
दुर्घर्ष संघर्ष है
युद्ध्मात्र नहीं है यह
पावन रामकाज है !
राम काज क्षण भंगु शरीरा !
समर मरनु पुनि सुरसरी तीरे !
रावन को रथी देख
नहीं घबराएंगे
विजयी रथ पास है
धर्मध्वज कपिध्वज है
शील के पताके है
परहित के घोड़े है
शौर्य -धैर्य चक्के हैं
गांडीव सुदर्शन है
पृथ्वी आकाश है
अग्नि और त्रिशूल है
चिर विजय मन्त्र है
रामकाज करिबे बिना
मोहि कहाँ विश्राम ?








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