भारत -चीन सीमा विवाद के मूल कारणों में तिब्बत है !अतः हमारे लिए आवश्यक है की हम तिब्बत की सच्चाइयों को जान लें !
भारत के नजरिये से देखें तो लगभग पिछली दो शताब्दियों से तिब्बत के साथ उसके सम्बन्ध बहुत ही आत्मिक रहे हैं !महाभारत में भी इन दोनों के संबंधो का जिक्र मिलता है !हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ कैलाश मानसरोवर इसी तिब्बत के अन्दर है जो आज चीनी कब्जे में है !इतिहास इस बात का गवाह है की छठी और सातवीं शताब्दी में चीनी और तिब्बतियों के बीच कई बार खूनी संघर्ष हुए हैं !आज भारत तिब्बतियों के लिए स्वर्ग के समान है !हर कोई जानता है की दलाई लामा तिब्बत को अपना घर मानते हैं और १९५९ से ही तिब्बत सरकार को धर्मशाला से ही चला रहे हैं !लेकिन कम ही लोग जानते हैं की यह पहले दलाई लामा नहीं है जो भारत में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं !बल्कि इसके पहले उनके पूर्ववर्ती और तेरहवें दलाई लामा उबेन गयात्सो १९०९ और १९१२ के मध्य चीनी आक्रान्ताओं के कारण भारत आये थे !आज लाखों तिब्बती शरणार्थी भारत में रह रहे हैं !इस तरह से तिब्बत दोनों देश के मध्य विवाद का एक प्रमुख कारण बना हुआ है !
चीन के नजरिये से देखें तो वह एतिहासिक कारणों की दुहाई देते हुए कई क्षेत्रों पर अपना अधिकार जताने से बाज नहीं आ रहा है !अंग्रेजों द्वारा चीन और भारत के बीच मैकमोहन विभाजक रेखा खींचे जाने के बाद उत्तरी तिब्बत का कुछ हिस्सा और अरुणाचल प्रदेश का तवांग भारत की सीमा में आ गए !१९१४ में ब्रिटेन ,चीन और तिब्बत का शिमला समझौता नाम से एक त्रिपक्षीय सम्मलेन हुआ !यह बैठक चीन और तिब्बत की स्थितियों के सन्दर्भ में हुई थी ,लेकिन यह बैठक तब बेनतीजा हो गयी ,जब ब्रिटेन ने तिब्बत को आतंरिक और बाह्य दो भागों में बांटने की बात की !चीन ने इस बैठक से अपनी भागीदारी वापस ले ली और उसकी अनुपस्तिथि में ही ब्रिटेन ने तिब्बत के साथ एक सेटेलमेंट कर दिया !जिसके तहत तिब्बत का लगभग 9000 स्क्वायर मीटर क्षेत्र और तवांग क्षेत्र भारत का हिस्सा बन गए !इस तरह मैकमोहन रेखा नाम से एक नई सीमा रेखा बन गयी !तिब्बत ने तो इस समझोते के लिए हाँमी भर दी ,लेकिन चीन इसके विरोध में रहा !
यही विरोध आज तक जारी रहा ,जिसके चलते तवांग पर चीन अपना अधिकार जताता है !जबकि भारत का मानना है की निःसंदेह तवांग भारत का अंग है ,इसीलिये इसे चीन को देने का सवाल ही नहीं उठता !दोनों ही देश इस बात को जानते है की जो भी विवाद है ,वह केवल सीमा को लेकर है ,इसके वाबजूद दोनों ही देशो के कट्टरपंथी लोग रह- रहकर एसी बयानबाजी करते रहते हैं ,जिससे यह मसला और भी जटिल हो जाता है !सीमा विवाद के लिए हुई वार्ता के तुरंत बाद ही चीनी स्कालर जहाँ लुइ द्वारा लिखा गया लेख इस आशंका को और भी पुष्ट करता है !इस लेख में उन्होंने लिखा है की किस तरह से उल्फा और तमिलनाडु ,बंगाल तथा कश्मीर में सक्रीय दुसरे आतंकी संगठनो को समर्थन देकर भारत को तीस स्वतंत्र राज्यों में बांटा जा सकता है!
नेपाल में माओवादी उभार के चलते चीन वहाँ सक्रीय हो रहा है ,जो भारत के लिए परेशानी का सबब है !अमेरिका द्वारा लम्बे समय से खेली जा रही कूटनीति भी दोनों देशों के संबंधों में कटुता का कारण है !अमेरिका चीन को खुद खतरे के तौर पर देख रहा है ,इसीलिय वह भारत को चीन के खिलाफ उकसाता रहता है ताकि तेजी से उभर रहे इस खतरे पर कुछ हद तक नियंत्रण पाया जा सके !एसे कारण ही झान लुइ जैसे कट्टरपंथियों को एसे वक्तव्य देने के लिए उकसाते रहते हैं जो एशिया के इन दो बड़े पड़ोसी राष्ट्र के संबंधों के लिए ख़तरा बनते हैं !
अमेरिका चीन के वैश्विक उभर को समझ रहा है ,इसीलिय वह चीन के खिलाफ जायगा ही नहीं !जबकि हम अमेरिकी बहकावे में चीन को अपना दुश्मन मान रहे हैं !अमेरिका से दोस्ती बनी रहे ये तो ठीक है ,लेकिन दोस्ती की कीमत पर हम अपने दुश्मनों में इजाफा करें ,यह कहीं से उचित नहीं है !
BAHUT ACCHA KUCH BHARAT KE SWATANTRATA PAR HO LIYE LAGATAAR AKRAMAN PAR BHE LIKHIYE
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