जी हाँ ,विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत में भले ही तलाक के मामले कम हो ,मगर राजधानी दिल्ली में लगातार इजाफा हो रहा है !काम का बोझ ,आफिस की चिंता ,बॉस का प्रेशर ,बच्चों की पढाई ,घर के खर्चे ऐसे अनेक समस्याओं के तले दबा जा रहा है दिल्ली वालों का जीवन !माँ -बाप के सपने ,पत्नी की चाहत ,बच्चों के अधूरे अरमानों के लिए ही वक्त नहीं है राजधानी वासियों के पास !
इसके लिए एकल परिवार प्रमुख रूप से जिम्मेदार है !सर्वेक्षण एजेंसी "सपना "के अनुसार वर्ष २००९ में दिल्ली में लगभग ५४ हजार शादियाँ हुईं !परन्तु ०१ वर्ष के अन्दर ही १२ हजार तलाक के मामले दाखिल हो चुके हैं !सात जन्मों का साथ निभाने की कसमें पल भर में ही बिखरने को तैयार दीखते हैं !बढ़ते मामले पर कुछ समय पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की थी ,वह जायज दिखती है !
"सपना "के अनुसार टूटते संबंधों के पीछे एक दूसरे के प्रति अविश्वास और अति महात्वाकांक्षा सबसे बड़ा कारण है !इसके अलावा शादी से पूर्व के संबंधों को शक की दृष्टि से देखना ,अधिकाधिक पैसों ,सुविधाओं की चाहत तथा पश्चिम की अंधी नक़ल के पीछे भागना आदि एसी अनेक वजह है जिनके कारण संबंधों में दरार आ रही है !
आजकल तलाक के मामले में कानूनी पहलुओं से हट कर मध्यस्थता केंद्र तलाक की मांग करने वाले दम्पति का आपसी समझौता कराने का प्रयास करते हैं !इसके जरिये तलाक मांगने वाले दम्पति को ज्यादा से ज्यादा साथ रहने की सलाह देते हैं !उनको एक साथ बाहर घूमने ,यहाँ तक की फ़िल्में देखने का भी सलाह देते हैं !कई मामलों में भी यह भी देखा जा रहा है की न्यायिक अधिकारी अपनी जेब से फ़िल्में दिखने का खर्चा भी उठाते हैं !इन वर्षों में अदालत ने काफी तेजी से तलाक के मामले निपटाए भी हैं !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें