राष्ट्र की चेतना का गीत वन्देमातरम
या
राष्ट्रभक्ति प्रेरणा का गीत वन्देमातरम
भगत सिंह के बलिदान का मन्त्र वन्देमातरम
या
आजादी का आह्वान वंदे मातरम !!
परन्तु कोटि -कोटि कंठों का हार बना यह राष्ट्रीय गीत एक बार पुनः विवादों के घेरे में आ गया है !आजादी के असंख्य परवाने ,देशभक्त मस्ताने ,क्या हिंदू -क्या मुस्लिम जिस गीत को गाते हँसते -हँसते फासी पर झूल गए आज वही गीत कुछ कट्टर उलेमाओं के लिए अछूत बन गया है !जिस वन्देमातरम ने १९०५ में अंग्रेजों के बंग -भंग रुपी कुचक्र को असफल कर दिया आज उसी गीत से उलेमाओं को नफरत होने लगी !
जी हाँ सोमवार को कुछ एसा ही नजारा देवबंद में आयोजित जमियत उलेमा हिंद के अधिवेशन में दिखा जहाँ हजारों उलेमाओं की उपस्तिथि में जमियत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी तथा जमियत के अध्यक्ष मो कारी उस्मान ने वन्देमातरम गायन के विरूद्व फतवा जारी कर कहा की मुसलामानों को वन्देमातरम नहीं गाना चाहिए ! क्योंकि इससे मूर्तिपूजा की बू आती है !ओर इस्लामी शरियत मूर्तिपूजा के खिलाफ है !
आश्चर्य की बात रही की केन्द्रीय सत्ता प्रतिष्ठान के दूसरे नंबर के सर्वेसर्वा देश के गृहमंत्री दुसरे दिन उसी अधिवेशन में मौजूद थे, परन्तु उन्होंने उस पर छुपी सधे रक्खी! बाद में विश्व हिन्दू परिषद् ,शिवसेना तथा देश भर के साधू -संतों द्वारा जब विरोध शुरू हुआ तो श्री चिदम्बरम ने कहा की उसे इस मुद्दे की जानकारी ही नहीं थी !घोर आश्चर्य है की गृह मंत्री जिस अधिवेशन में जाने वाले हो एक दिन पहले उसी अधिवेशन में वन्देमातरम के विरुद्ध फतवा जारी होता है ओर गृहमंत्री को इसका पता नहीं होता है !
अपने को राष्ट्री संत बताने वाले बाबा रामदेव का असली चित्र ओर चरित्र भी देशवासियों को देखने को मिला !बाबा ने मंच पर रहते हुए भी इस मुद्दे पर चुप्पी सधे रक्खी ! हालाँकि वन्देमातरम का गाना या न गाना देशभक्ति का परिचायक नहीं हो सकता है लकिन देश के राष्ट्रिय गीत तथा आजादी के असंख्य शहीदों का बीजमंत्र रहा वन्देमातरम गीत के विरुद्ध फतवा जारी करना भी राष्ट्रभक्ती का दिशासूचक नहीं हो सकता !
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राष्ट्रभक्ति प्रेरणा का गीत वन्देमातरम
भगत सिंह के बलिदान का मन्त्र वन्देमातरम
या
आजादी का आह्वान वंदे मातरम !!
परन्तु कोटि -कोटि कंठों का हार बना यह राष्ट्रीय गीत एक बार पुनः विवादों के घेरे में आ गया है !आजादी के असंख्य परवाने ,देशभक्त मस्ताने ,क्या हिंदू -क्या मुस्लिम जिस गीत को गाते हँसते -हँसते फासी पर झूल गए आज वही गीत कुछ कट्टर उलेमाओं के लिए अछूत बन गया है !जिस वन्देमातरम ने १९०५ में अंग्रेजों के बंग -भंग रुपी कुचक्र को असफल कर दिया आज उसी गीत से उलेमाओं को नफरत होने लगी !
जी हाँ सोमवार को कुछ एसा ही नजारा देवबंद में आयोजित जमियत उलेमा हिंद के अधिवेशन में दिखा जहाँ हजारों उलेमाओं की उपस्तिथि में जमियत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी तथा जमियत के अध्यक्ष मो कारी उस्मान ने वन्देमातरम गायन के विरूद्व फतवा जारी कर कहा की मुसलामानों को वन्देमातरम नहीं गाना चाहिए ! क्योंकि इससे मूर्तिपूजा की बू आती है !ओर इस्लामी शरियत मूर्तिपूजा के खिलाफ है !
आश्चर्य की बात रही की केन्द्रीय सत्ता प्रतिष्ठान के दूसरे नंबर के सर्वेसर्वा देश के गृहमंत्री दुसरे दिन उसी अधिवेशन में मौजूद थे, परन्तु उन्होंने उस पर छुपी सधे रक्खी! बाद में विश्व हिन्दू परिषद् ,शिवसेना तथा देश भर के साधू -संतों द्वारा जब विरोध शुरू हुआ तो श्री चिदम्बरम ने कहा की उसे इस मुद्दे की जानकारी ही नहीं थी !घोर आश्चर्य है की गृह मंत्री जिस अधिवेशन में जाने वाले हो एक दिन पहले उसी अधिवेशन में वन्देमातरम के विरुद्ध फतवा जारी होता है ओर गृहमंत्री को इसका पता नहीं होता है !
अपने को राष्ट्री संत बताने वाले बाबा रामदेव का असली चित्र ओर चरित्र भी देशवासियों को देखने को मिला !बाबा ने मंच पर रहते हुए भी इस मुद्दे पर चुप्पी सधे रक्खी ! हालाँकि वन्देमातरम का गाना या न गाना देशभक्ति का परिचायक नहीं हो सकता है लकिन देश के राष्ट्रिय गीत तथा आजादी के असंख्य शहीदों का बीजमंत्र रहा वन्देमातरम गीत के विरुद्ध फतवा जारी करना भी राष्ट्रभक्ती का दिशासूचक नहीं हो सकता !
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