वन्देमातरम गायन को लेकर एक बार फ़िर बहस गरमाया है कि क्या मुसलमानों का वन्देमातरम गाना इस्लाम के खिलाफ है !क्या वन्देमातरम गाना ही देशभक्ति का परिचायक है ?और इस गडे मुर्दे को उखारने का काम किया है जमीयत उलेमा हिंद ने !मालूम हो कि वन्देमातरम के शताब्दी बर्ष पर २००५-०६ में भी इस मुद्दे पर काफी विवाद पैदा हुआ था ! पिछले दिनों देववंद में जमियत के उलेमाओं ने यह फतवा जारी किया कि वन्देमातरम का गायन इस्लाम के खिलाफ है और मुसलमानों को इसे नही गाना चाहिए !संयोग से अगले दिन हिंद के अधिवेशन में गृह मंत्री पी चिदंबरम ,सुचना राज्य मंत्री सचिन पायलट और योग गुरु बाबा रामदेव भी मौजूद थे परन्तु उन्होंने इस पर चुप्पी साधे रक्खी ! इस चुप्पी पर बीजेपी प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी सहित देश भर के साधू -संतों तथा विश्व हिंदू परिषद् के नेताओं ने कहा कि एक बार पुनः जमियत के उलेमा अलगाववाद को हवा दे रहे है !
प्रश्न उठता है कि तीन साल पहले जिस मुद्दे को लेकर देश दो फाडों में बंटता नजर आ रहा था पुनः उस गडे मुर्दे को उखारकर जमियत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी और अध्यक्ष कारी मोहम्मद उस्मान क्या दर्शाना चाह रहे हैं !क्या वे देश भर के मुसलमानों को गुमराह कर अलगाववाद के राह पर नही ले जा रहे है ?
और वन्देमातरम तो आजादी का प्रेरक .जीवंत मन्त्र रहा है !इसी मन्त्र के सहारे बंकिमचंद ने देश में एक नयी जान फूंकी थी !भगत सिंह ,राजगुरु ,सुखदेव ,अब्दुल हामिद ,बिस्मिल सहित हजारों युवा इस मन्त्र के सहारे आजादी के खातिर फांसी के परवाने हो गए ! आजादी के समय हिंदू -मुसलमान सभी क्रांतिकारियों का प्रेरक रहा मन्त्र आज इस्लाम के विरुद्ध कैसे हो गया? मदनी और उस्मान क्या इसका उत्तर दे पाएंगे ?वन्देमातरम गीत में तो भारत माता की वन्दना की गयी है !क्या जमियत के उलेमा यह बताएँगे कि जिस भारत भूमि पर जन्म लिया ,जहाँ का अन्न खाया ,जहाँ से सब कुछ पाया उसी मातृभूमि की वन्दना इस्लाम के विरूद्व कैसे हो गया ?
और गृहमंत्री ने राष्ट्रिय गीत का न केवल अपमान सहा बल्कि तुस्टीकरण तथा वोट बैंक के लिए एक बार फ़िर से अलगाववाद रुपी फन को कुचलने के बजाय उसे दूध पिलाने का काम कर रहे है !महामहिम चिदंबरम जी को मालूम होनी चाहिए कि इसी घातक नीतियों के कारन १९४७ में न केवल मातृभूमि के टुकड़े हुए वरण हजारों लोगों का नरसंहार भी इस देश को झेलना पड़ा !जिसका सर्वाधिक शिकार हिंदू जन-मन हुआ !
और अपने को राष्ट्रवादी संत बताने वाले बाबा को क्या काठ मार गया !जिस मंच पर खुलेआम वन्देमातरम के विरुद्ध फतवा जारी हुआ उसी मंच पर पहुचकर दो शब्द भी न बोल पाये !सच कहा जाए तो बाबा संत कम और व्यावसायिक संत अधिक है !
आवश्यकता है कि आज फ़िर से फन उठाते नागों को कुचला जाय अन्यथा देश को एक बार पुनः १९४७ से भी भयंकर परिणाम भुगतने को तैयार रहनी चाहिए !
!!मुट्ठी बांधे ,सीना ताने बोलेंगे वन्देमातरम !!
प्रश्न उठता है कि तीन साल पहले जिस मुद्दे को लेकर देश दो फाडों में बंटता नजर आ रहा था पुनः उस गडे मुर्दे को उखारकर जमियत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी और अध्यक्ष कारी मोहम्मद उस्मान क्या दर्शाना चाह रहे हैं !क्या वे देश भर के मुसलमानों को गुमराह कर अलगाववाद के राह पर नही ले जा रहे है ?
और वन्देमातरम तो आजादी का प्रेरक .जीवंत मन्त्र रहा है !इसी मन्त्र के सहारे बंकिमचंद ने देश में एक नयी जान फूंकी थी !भगत सिंह ,राजगुरु ,सुखदेव ,अब्दुल हामिद ,बिस्मिल सहित हजारों युवा इस मन्त्र के सहारे आजादी के खातिर फांसी के परवाने हो गए ! आजादी के समय हिंदू -मुसलमान सभी क्रांतिकारियों का प्रेरक रहा मन्त्र आज इस्लाम के विरुद्ध कैसे हो गया? मदनी और उस्मान क्या इसका उत्तर दे पाएंगे ?वन्देमातरम गीत में तो भारत माता की वन्दना की गयी है !क्या जमियत के उलेमा यह बताएँगे कि जिस भारत भूमि पर जन्म लिया ,जहाँ का अन्न खाया ,जहाँ से सब कुछ पाया उसी मातृभूमि की वन्दना इस्लाम के विरूद्व कैसे हो गया ?
और गृहमंत्री ने राष्ट्रिय गीत का न केवल अपमान सहा बल्कि तुस्टीकरण तथा वोट बैंक के लिए एक बार फ़िर से अलगाववाद रुपी फन को कुचलने के बजाय उसे दूध पिलाने का काम कर रहे है !महामहिम चिदंबरम जी को मालूम होनी चाहिए कि इसी घातक नीतियों के कारन १९४७ में न केवल मातृभूमि के टुकड़े हुए वरण हजारों लोगों का नरसंहार भी इस देश को झेलना पड़ा !जिसका सर्वाधिक शिकार हिंदू जन-मन हुआ !
और अपने को राष्ट्रवादी संत बताने वाले बाबा को क्या काठ मार गया !जिस मंच पर खुलेआम वन्देमातरम के विरुद्ध फतवा जारी हुआ उसी मंच पर पहुचकर दो शब्द भी न बोल पाये !सच कहा जाए तो बाबा संत कम और व्यावसायिक संत अधिक है !
आवश्यकता है कि आज फ़िर से फन उठाते नागों को कुचला जाय अन्यथा देश को एक बार पुनः १९४७ से भी भयंकर परिणाम भुगतने को तैयार रहनी चाहिए !
!!मुट्ठी बांधे ,सीना ताने बोलेंगे वन्देमातरम !!
वेद प्रकाश जी देश एक और विभाजन की और अग्रसर है ! जिस तरह की राजनीति चल रही है और जिस तरह का कठमुल्ला उन्माद फैल रहा है वह अहम १९२०-१९४७ के बीच की एकदम वही याद दिलाता है जिसकी परिणिति १९४७ के विभाजन के तौर पर हमारे सामने आई !
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