दिल्ली ,मुंबई ,कोलकाता या चेन्नई!
गुरगांव,चंडीगढ़ ,हैदराबाद या फ़िर !
फिजी ,दुबई,सूडान हो या मारीशस !
कंही भी चले जाइए आप
रिक्शा चलाते ,ठेला खींचते ,फल -सब्जियों की दुकान चलाते ,घरों में काम करते एक परेशान सा चेहरा दिख जाता है आपको !थोडा पूछ बैठिये कहाँ के हो भाई ?
उत्तर मिलेगा केवल और केवल बिहार !
अपने मेहनती हाथों से हरेक शहर हो या डगर ,दूकान या फ़िर मकान सबको सवांरता मिलेगा बिहार !
फ़िर भी हिकारत और जलालत की नजर से देखा जाता है बिहार !
कभी राज तो कभी शिवराज के निशाने पर होता है बिहार !
परन्तु यह तस्वीर का केवल एक पहलू है ,हकीकत कुछ और भी है !
जनकनन्दिनी सीता की जन्मभूमि !
गौतम बुद्ध की तपोभूमि !
भगवान् महावीर की कर्मभूमि !
चाणक्य की साधनाभूमि और
चन्द्रगुप्त की शौर्यभूमि रहा है बिहार !
संसार को शान्ति का उपदेश देने वाला बिहार !
विश्व को सर्वप्रथम लोकतंत्र की परिकल्पना देने वाला लिक्क्षवी गणराज्य की राजधानी वैशाली बिहार में!
वैश्विक शिक्षा का सबसे बड़ा केन्द्र रहा नालंदा विश्वविद्यालय बिहार में !
पराक्रमी सम्राट अशोक के एतिहासिक मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र
बिहार में !
एतिहासिक अंग साम्राज्य का केन्द्र रहा मुंगेर बिहार में !
चीनी यात्री फाहियान की शोध स्थली ,सिद्धार्थ को बुद्धत्व देकर बुद्ध में बदलने वाला बिहार !
जगदगुरू शंकराचार्य को पराजीत करने वाली विदुषी भारती बिहार की!
आजादी के युद्ध में अपना हाथ काटकर माँ गंगा को अर्पण करने वाले बाबू वीर कुवर सिंह बिहार के !
अंगरेजी साम्राज्य को चुनौती देने वाला धधकता ज्वाल बिरसा मुंडा बिहार के !
महात्मा गांधी का प्रयोगभूमि रहा चंपारण बिहार में !
अगस्त क्रांति में तिरंगा के खातिर अपने खिलते नवयौवन को माँ भारती के चरणों में चढाने वाले सात शहीद बिहार के!
स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद बिहार के !
सम्पूर्ण क्रांति के उदगाता लोकनायक जयप्रकाश नारायण बिहार के !
तेजस्वी तथागत तुलसी की धरती बिहार !
गणितग्य कुमार आनंद की धरती बिहार !
मारीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम की धरती बिहार !
हजारों IAS ओर पत्रकार बिहार के!
हरेक सरकार में दर्जनों मंत्री बिहार के !
परन्तु प्रश्न है -
फिर भी क्यों पीछे है बिहार ?
अशिक्षा ,गरीबी ,भुखमरी ओर पिछडापन से क्यों कराह रहाहै बिहार ?
हर जगह क्यों धक्का खाता ,पेट के खातिर दर -दर भटकता बिहार और बिहारी समाज !
विकास की बात जोह रहे बिहारियों को आशा है की कोई भागीरथ विकास की गंगा बिहार में भी अवतरित करेगा !
परन्तु क्या ,
बिहार के वर्तमान नेताओं से आशा की जा सकती है की वे बदल सकेंगे बिहार की तकदीर और तस्वीर !
मसला यह नहीं है की -
अनेकों समस्याओं को हल कौन करेगा ?
प्रश्न है पहल कौन करेगा ?और इसकी शुरुआत बिहारियों को खुद करनी होगी !
मंगलवार, 10 नवंबर 2009
गुरुवार, 5 नवंबर 2009
फ़िर विवादों में वन्देमातरम
राष्ट्र की चेतना का गीत वन्देमातरम
या
राष्ट्रभक्ति प्रेरणा का गीत वन्देमातरम
भगत सिंह के बलिदान का मन्त्र वन्देमातरम
या
आजादी का आह्वान वंदे मातरम !!
परन्तु कोटि -कोटि कंठों का हार बना यह राष्ट्रीय गीत एक बार पुनः विवादों के घेरे में आ गया है !आजादी के असंख्य परवाने ,देशभक्त मस्ताने ,क्या हिंदू -क्या मुस्लिम जिस गीत को गाते हँसते -हँसते फासी पर झूल गए आज वही गीत कुछ कट्टर उलेमाओं के लिए अछूत बन गया है !जिस वन्देमातरम ने १९०५ में अंग्रेजों के बंग -भंग रुपी कुचक्र को असफल कर दिया आज उसी गीत से उलेमाओं को नफरत होने लगी !
जी हाँ सोमवार को कुछ एसा ही नजारा देवबंद में आयोजित जमियत उलेमा हिंद के अधिवेशन में दिखा जहाँ हजारों उलेमाओं की उपस्तिथि में जमियत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी तथा जमियत के अध्यक्ष मो कारी उस्मान ने वन्देमातरम गायन के विरूद्व फतवा जारी कर कहा की मुसलामानों को वन्देमातरम नहीं गाना चाहिए ! क्योंकि इससे मूर्तिपूजा की बू आती है !ओर इस्लामी शरियत मूर्तिपूजा के खिलाफ है !
आश्चर्य की बात रही की केन्द्रीय सत्ता प्रतिष्ठान के दूसरे नंबर के सर्वेसर्वा देश के गृहमंत्री दुसरे दिन उसी अधिवेशन में मौजूद थे, परन्तु उन्होंने उस पर छुपी सधे रक्खी! बाद में विश्व हिन्दू परिषद् ,शिवसेना तथा देश भर के साधू -संतों द्वारा जब विरोध शुरू हुआ तो श्री चिदम्बरम ने कहा की उसे इस मुद्दे की जानकारी ही नहीं थी !घोर आश्चर्य है की गृह मंत्री जिस अधिवेशन में जाने वाले हो एक दिन पहले उसी अधिवेशन में वन्देमातरम के विरुद्ध फतवा जारी होता है ओर गृहमंत्री को इसका पता नहीं होता है !
अपने को राष्ट्री संत बताने वाले बाबा रामदेव का असली चित्र ओर चरित्र भी देशवासियों को देखने को मिला !बाबा ने मंच पर रहते हुए भी इस मुद्दे पर चुप्पी सधे रक्खी ! हालाँकि वन्देमातरम का गाना या न गाना देशभक्ति का परिचायक नहीं हो सकता है लकिन देश के राष्ट्रिय गीत तथा आजादी के असंख्य शहीदों का बीजमंत्र रहा वन्देमातरम गीत के विरुद्ध फतवा जारी करना भी राष्ट्रभक्ती का दिशासूचक नहीं हो सकता !
या
राष्ट्रभक्ति प्रेरणा का गीत वन्देमातरम
भगत सिंह के बलिदान का मन्त्र वन्देमातरम
या
आजादी का आह्वान वंदे मातरम !!
परन्तु कोटि -कोटि कंठों का हार बना यह राष्ट्रीय गीत एक बार पुनः विवादों के घेरे में आ गया है !आजादी के असंख्य परवाने ,देशभक्त मस्ताने ,क्या हिंदू -क्या मुस्लिम जिस गीत को गाते हँसते -हँसते फासी पर झूल गए आज वही गीत कुछ कट्टर उलेमाओं के लिए अछूत बन गया है !जिस वन्देमातरम ने १९०५ में अंग्रेजों के बंग -भंग रुपी कुचक्र को असफल कर दिया आज उसी गीत से उलेमाओं को नफरत होने लगी !
जी हाँ सोमवार को कुछ एसा ही नजारा देवबंद में आयोजित जमियत उलेमा हिंद के अधिवेशन में दिखा जहाँ हजारों उलेमाओं की उपस्तिथि में जमियत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी तथा जमियत के अध्यक्ष मो कारी उस्मान ने वन्देमातरम गायन के विरूद्व फतवा जारी कर कहा की मुसलामानों को वन्देमातरम नहीं गाना चाहिए ! क्योंकि इससे मूर्तिपूजा की बू आती है !ओर इस्लामी शरियत मूर्तिपूजा के खिलाफ है !
आश्चर्य की बात रही की केन्द्रीय सत्ता प्रतिष्ठान के दूसरे नंबर के सर्वेसर्वा देश के गृहमंत्री दुसरे दिन उसी अधिवेशन में मौजूद थे, परन्तु उन्होंने उस पर छुपी सधे रक्खी! बाद में विश्व हिन्दू परिषद् ,शिवसेना तथा देश भर के साधू -संतों द्वारा जब विरोध शुरू हुआ तो श्री चिदम्बरम ने कहा की उसे इस मुद्दे की जानकारी ही नहीं थी !घोर आश्चर्य है की गृह मंत्री जिस अधिवेशन में जाने वाले हो एक दिन पहले उसी अधिवेशन में वन्देमातरम के विरुद्ध फतवा जारी होता है ओर गृहमंत्री को इसका पता नहीं होता है !
अपने को राष्ट्री संत बताने वाले बाबा रामदेव का असली चित्र ओर चरित्र भी देशवासियों को देखने को मिला !बाबा ने मंच पर रहते हुए भी इस मुद्दे पर चुप्पी सधे रक्खी ! हालाँकि वन्देमातरम का गाना या न गाना देशभक्ति का परिचायक नहीं हो सकता है लकिन देश के राष्ट्रिय गीत तथा आजादी के असंख्य शहीदों का बीजमंत्र रहा वन्देमातरम गीत के विरुद्ध फतवा जारी करना भी राष्ट्रभक्ती का दिशासूचक नहीं हो सकता !
फ़िर फन उठाते जहरीले नाग
वन्देमातरम गायन को लेकर एक बार फ़िर बहस गरमाया है कि क्या मुसलमानों का वन्देमातरम गाना इस्लाम के खिलाफ है !क्या वन्देमातरम गाना ही देशभक्ति का परिचायक है ?और इस गडे मुर्दे को उखारने का काम किया है जमीयत उलेमा हिंद ने !मालूम हो कि वन्देमातरम के शताब्दी बर्ष पर २००५-०६ में भी इस मुद्दे पर काफी विवाद पैदा हुआ था ! पिछले दिनों देववंद में जमियत के उलेमाओं ने यह फतवा जारी किया कि वन्देमातरम का गायन इस्लाम के खिलाफ है और मुसलमानों को इसे नही गाना चाहिए !संयोग से अगले दिन हिंद के अधिवेशन में गृह मंत्री पी चिदंबरम ,सुचना राज्य मंत्री सचिन पायलट और योग गुरु बाबा रामदेव भी मौजूद थे परन्तु उन्होंने इस पर चुप्पी साधे रक्खी ! इस चुप्पी पर बीजेपी प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी सहित देश भर के साधू -संतों तथा विश्व हिंदू परिषद् के नेताओं ने कहा कि एक बार पुनः जमियत के उलेमा अलगाववाद को हवा दे रहे है !
प्रश्न उठता है कि तीन साल पहले जिस मुद्दे को लेकर देश दो फाडों में बंटता नजर आ रहा था पुनः उस गडे मुर्दे को उखारकर जमियत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी और अध्यक्ष कारी मोहम्मद उस्मान क्या दर्शाना चाह रहे हैं !क्या वे देश भर के मुसलमानों को गुमराह कर अलगाववाद के राह पर नही ले जा रहे है ?
और वन्देमातरम तो आजादी का प्रेरक .जीवंत मन्त्र रहा है !इसी मन्त्र के सहारे बंकिमचंद ने देश में एक नयी जान फूंकी थी !भगत सिंह ,राजगुरु ,सुखदेव ,अब्दुल हामिद ,बिस्मिल सहित हजारों युवा इस मन्त्र के सहारे आजादी के खातिर फांसी के परवाने हो गए ! आजादी के समय हिंदू -मुसलमान सभी क्रांतिकारियों का प्रेरक रहा मन्त्र आज इस्लाम के विरुद्ध कैसे हो गया? मदनी और उस्मान क्या इसका उत्तर दे पाएंगे ?वन्देमातरम गीत में तो भारत माता की वन्दना की गयी है !क्या जमियत के उलेमा यह बताएँगे कि जिस भारत भूमि पर जन्म लिया ,जहाँ का अन्न खाया ,जहाँ से सब कुछ पाया उसी मातृभूमि की वन्दना इस्लाम के विरूद्व कैसे हो गया ?
और गृहमंत्री ने राष्ट्रिय गीत का न केवल अपमान सहा बल्कि तुस्टीकरण तथा वोट बैंक के लिए एक बार फ़िर से अलगाववाद रुपी फन को कुचलने के बजाय उसे दूध पिलाने का काम कर रहे है !महामहिम चिदंबरम जी को मालूम होनी चाहिए कि इसी घातक नीतियों के कारन १९४७ में न केवल मातृभूमि के टुकड़े हुए वरण हजारों लोगों का नरसंहार भी इस देश को झेलना पड़ा !जिसका सर्वाधिक शिकार हिंदू जन-मन हुआ !
और अपने को राष्ट्रवादी संत बताने वाले बाबा को क्या काठ मार गया !जिस मंच पर खुलेआम वन्देमातरम के विरुद्ध फतवा जारी हुआ उसी मंच पर पहुचकर दो शब्द भी न बोल पाये !सच कहा जाए तो बाबा संत कम और व्यावसायिक संत अधिक है !
आवश्यकता है कि आज फ़िर से फन उठाते नागों को कुचला जाय अन्यथा देश को एक बार पुनः १९४७ से भी भयंकर परिणाम भुगतने को तैयार रहनी चाहिए !
!!मुट्ठी बांधे ,सीना ताने बोलेंगे वन्देमातरम !!
प्रश्न उठता है कि तीन साल पहले जिस मुद्दे को लेकर देश दो फाडों में बंटता नजर आ रहा था पुनः उस गडे मुर्दे को उखारकर जमियत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी और अध्यक्ष कारी मोहम्मद उस्मान क्या दर्शाना चाह रहे हैं !क्या वे देश भर के मुसलमानों को गुमराह कर अलगाववाद के राह पर नही ले जा रहे है ?
और वन्देमातरम तो आजादी का प्रेरक .जीवंत मन्त्र रहा है !इसी मन्त्र के सहारे बंकिमचंद ने देश में एक नयी जान फूंकी थी !भगत सिंह ,राजगुरु ,सुखदेव ,अब्दुल हामिद ,बिस्मिल सहित हजारों युवा इस मन्त्र के सहारे आजादी के खातिर फांसी के परवाने हो गए ! आजादी के समय हिंदू -मुसलमान सभी क्रांतिकारियों का प्रेरक रहा मन्त्र आज इस्लाम के विरुद्ध कैसे हो गया? मदनी और उस्मान क्या इसका उत्तर दे पाएंगे ?वन्देमातरम गीत में तो भारत माता की वन्दना की गयी है !क्या जमियत के उलेमा यह बताएँगे कि जिस भारत भूमि पर जन्म लिया ,जहाँ का अन्न खाया ,जहाँ से सब कुछ पाया उसी मातृभूमि की वन्दना इस्लाम के विरूद्व कैसे हो गया ?
और गृहमंत्री ने राष्ट्रिय गीत का न केवल अपमान सहा बल्कि तुस्टीकरण तथा वोट बैंक के लिए एक बार फ़िर से अलगाववाद रुपी फन को कुचलने के बजाय उसे दूध पिलाने का काम कर रहे है !महामहिम चिदंबरम जी को मालूम होनी चाहिए कि इसी घातक नीतियों के कारन १९४७ में न केवल मातृभूमि के टुकड़े हुए वरण हजारों लोगों का नरसंहार भी इस देश को झेलना पड़ा !जिसका सर्वाधिक शिकार हिंदू जन-मन हुआ !
और अपने को राष्ट्रवादी संत बताने वाले बाबा को क्या काठ मार गया !जिस मंच पर खुलेआम वन्देमातरम के विरुद्ध फतवा जारी हुआ उसी मंच पर पहुचकर दो शब्द भी न बोल पाये !सच कहा जाए तो बाबा संत कम और व्यावसायिक संत अधिक है !
आवश्यकता है कि आज फ़िर से फन उठाते नागों को कुचला जाय अन्यथा देश को एक बार पुनः १९४७ से भी भयंकर परिणाम भुगतने को तैयार रहनी चाहिए !
!!मुट्ठी बांधे ,सीना ताने बोलेंगे वन्देमातरम !!
झरोखा झारखण्ड चुनाव की
महाराष्ट्र ,हरियाणा और अरुणाचल में मिली बढ़त को कांग्रेस ने भुनाने का सही समय समझा !और इस इशारे को समझ चुनाव आयोग ने झारखण्ड में रणभेरी का बिगुल बजा दिया ! कांग्रेस शायद यह सोचकर खुश हो रही है की तीनो राज्यों में मिले बढ़त का जनता पर असर होगा और बरसों से झारखण्ड में डूबे हाथ को किनारा मिल जाए ! इस बढ़त को कायम रखने के लिए कांग्रेस कोई भी कोर -कसर नही छोर रही है !तभी तो बी जे पी से अलग हुए पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का साथ लेने से भी कांग्रेस को कोई परहेज नही !कल तक कांग्रेस के लिए घोर सांप्रदायिक रहे बाबूलाल आज उसके दोस्त हो गए हैं !हालाँकि दोनों दलों के बीच सीटों का बंटवारा अभी अधर में है ,परन्तु कांग्रेस को जल्द ही यह मसला सुलझ जाने की उम्मीद है !बाबूलाल मरांडी की झारखण्ड विकास पार्टी कुल ८१ सीटों में से ३१ सेटों पर चुनाव लरना चाहती है ,जबकि कांग्रेस उसे अधिकतम २०-२२ सीटें ही देना चाहती है !हालाँकि कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व सभी ८१ सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है !परन्तु केन्द्रीय नेतृत्व महाराष्ट्र में मनसे के तरह ही झारखण्ड में बाबूलाल मरांडी को आगे कर बी जे पी के वोट बैंक में सेंध लगाकर अधिक से अधिक बी जे पी का नुकसान करना चाहती है !
इस बार शिबू सोरेन की झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का कांग्रेस से गठबंधन नही होपाने की स्थिति में अकेले असहाय नजर आ रही है !और लालू यादव का राष्ट्रीय जनता दल वामपंथी दलों के साथ मिलकर तीसरे मोर्चे के बैनर तले चुनाव लड़ने का आधार बना रही है !
इधर तीनो राज्यों मिली हार से सबक लेकर राजग एकजुट होने की कागर पर है !हालाँकि जेडीयू की और से शुरुआती दौर में परेशानी थी परन्तु ताजा जानकारी के अनुसार दोनों दलों के बीच समझोता हो गया है और इस समझोते के तहत जेडीयू १४ तथा बीजेपी ६७ सीटों पर चुनाव लडेगी !चूँकि जेडीयू ने समझोते से पहले ही १९ सीटों पर अपने उमीदवार घोषित दिए थे अतः उन्हें ०४ सीटों की उम्मीदवारी अब वापस लेनी होगी !
अब देखना यह है की तीनो राज्यों में मिली बढ़त से झारखण्ड में कांग्रेस का कोई कल्याण हो पाता है या एकजुट राजग बर्षों से काबिज कब्जे को बरक़रार रख पाती है या फ़िर पिछले चुनाव की तरह सत्ता की चाभी निर्दलियों के हाथों में जाती है या लालू और शोरेन कुछ करिश्मा दिखा पाते हैं !
इस बार शिबू सोरेन की झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का कांग्रेस से गठबंधन नही होपाने की स्थिति में अकेले असहाय नजर आ रही है !और लालू यादव का राष्ट्रीय जनता दल वामपंथी दलों के साथ मिलकर तीसरे मोर्चे के बैनर तले चुनाव लड़ने का आधार बना रही है !
इधर तीनो राज्यों मिली हार से सबक लेकर राजग एकजुट होने की कागर पर है !हालाँकि जेडीयू की और से शुरुआती दौर में परेशानी थी परन्तु ताजा जानकारी के अनुसार दोनों दलों के बीच समझोता हो गया है और इस समझोते के तहत जेडीयू १४ तथा बीजेपी ६७ सीटों पर चुनाव लडेगी !चूँकि जेडीयू ने समझोते से पहले ही १९ सीटों पर अपने उमीदवार घोषित दिए थे अतः उन्हें ०४ सीटों की उम्मीदवारी अब वापस लेनी होगी !
अब देखना यह है की तीनो राज्यों में मिली बढ़त से झारखण्ड में कांग्रेस का कोई कल्याण हो पाता है या एकजुट राजग बर्षों से काबिज कब्जे को बरक़रार रख पाती है या फ़िर पिछले चुनाव की तरह सत्ता की चाभी निर्दलियों के हाथों में जाती है या लालू और शोरेन कुछ करिश्मा दिखा पाते हैं !
मंगलवार, 3 नवंबर 2009
घायल मन की व्यथा
मैं शब्दों की क्रांति ज्वाल हूँ ,वर्तमान को गाऊँगा
जिस दिन मेरी आग बुझेगी ,उस दिन मैं मर जाऊँगा
इसीलिए मैं इन्कलाब के स्वर की एक निशानी हूँ
गाते -गाते अंगारा हूँ ,लिखते -लिखते पानी हूँ !!
क्या ये देश उन्ही का है जो युद्धों में मर जाते हैं
अपना खून बहाकर टीका सरहद पर कर जाते है
ऐसा युद्ध वतन के खातिर सबको लड़ना पड़ता है
संकट की घड़ियों में सबको सैनिक बनना पड़ता है
जो भी कौम वतन के खातिर मरने को तैयार नही
उसकी संतति को आजादी जीने का अधिकार नहीं !!
किसके कितने लाल सलोनों सीमा पर छिन जाते है
गुरु गोविन्द जी के बेटों दीवारों में चुन जाते है
मंगल पांडे आजादी का परवाना हो जाता है
उधम दायर से बदले को भी दीवाना हो जाता है
झांसी की रानी लड़कर राजधानी मितवा देती है
पन्ना धाय वफादारी में बेटा कटवा देती है
घास -फूस की रोटी खाकर महाराणा नही लड़ थे क्या ?
वंदा वैरागी के तन पर हाथी नही चढ़े थे क्या ?
ये गाथा उनको सूरज की लाली में रख देती है
हाड़ी रानी शीश काटकर थाली में रख देती है !!
अर्जून मछली की आँखों पर तीर चलना चूक गए
मुट्ठी भर जुगनू सूरज के कलश पर भी थूक गए
जब सिंहासन का राजा ही कायर दिखने लगता है
तो पूरा मौसम हत्यारा दायर दिखने लगता है
आख़िर डरते- डरते दुनिया से क्या ले लेंगे हम
कोई दिल्ली मांगेगा तो क्या दिल्ली दे देंगे हम !!
दिल्लीवालों अपने दिल को बुद्ध करो या क्रुद्ध करो
घर में छुपे हुए गद्दारों से पहले युद्ध करो
खुद्दारी ललकार रही है गीता का दर्शन पढ़ लो
जो अजगर फुंकर रहा है फ़ौरन उसका सर कुचलो
सेना को अधिकार सौंप दो और चुनोती बीस दिन की
पहले दिन ही गोला दागो नालकुंद पर रावन की
नक्सली नरसंहारों का गिन -गिनकर उत्तर मांगो
जो नक्सली जेलों में है सबको शूली पर टांगो
अर्जुन के गांडीव धनुष की प्रत्य्न्जा चढ़ जाने दो
नक्सलियों के सीने में बारूदें फट जाने दो
inke पक्षधरों पर अब बादल फट जाने दो
गद्दारों का भी अब मस्तक कट जाने दो !!!!
जिस दिन मेरी आग बुझेगी ,उस दिन मैं मर जाऊँगा
इसीलिए मैं इन्कलाब के स्वर की एक निशानी हूँ
गाते -गाते अंगारा हूँ ,लिखते -लिखते पानी हूँ !!
क्या ये देश उन्ही का है जो युद्धों में मर जाते हैं
अपना खून बहाकर टीका सरहद पर कर जाते है
ऐसा युद्ध वतन के खातिर सबको लड़ना पड़ता है
संकट की घड़ियों में सबको सैनिक बनना पड़ता है
जो भी कौम वतन के खातिर मरने को तैयार नही
उसकी संतति को आजादी जीने का अधिकार नहीं !!
किसके कितने लाल सलोनों सीमा पर छिन जाते है
गुरु गोविन्द जी के बेटों दीवारों में चुन जाते है
मंगल पांडे आजादी का परवाना हो जाता है
उधम दायर से बदले को भी दीवाना हो जाता है
झांसी की रानी लड़कर राजधानी मितवा देती है
पन्ना धाय वफादारी में बेटा कटवा देती है
घास -फूस की रोटी खाकर महाराणा नही लड़ थे क्या ?
वंदा वैरागी के तन पर हाथी नही चढ़े थे क्या ?
ये गाथा उनको सूरज की लाली में रख देती है
हाड़ी रानी शीश काटकर थाली में रख देती है !!
अर्जून मछली की आँखों पर तीर चलना चूक गए
मुट्ठी भर जुगनू सूरज के कलश पर भी थूक गए
जब सिंहासन का राजा ही कायर दिखने लगता है
तो पूरा मौसम हत्यारा दायर दिखने लगता है
आख़िर डरते- डरते दुनिया से क्या ले लेंगे हम
कोई दिल्ली मांगेगा तो क्या दिल्ली दे देंगे हम !!
दिल्लीवालों अपने दिल को बुद्ध करो या क्रुद्ध करो
घर में छुपे हुए गद्दारों से पहले युद्ध करो
खुद्दारी ललकार रही है गीता का दर्शन पढ़ लो
जो अजगर फुंकर रहा है फ़ौरन उसका सर कुचलो
सेना को अधिकार सौंप दो और चुनोती बीस दिन की
पहले दिन ही गोला दागो नालकुंद पर रावन की
नक्सली नरसंहारों का गिन -गिनकर उत्तर मांगो
जो नक्सली जेलों में है सबको शूली पर टांगो
अर्जुन के गांडीव धनुष की प्रत्य्न्जा चढ़ जाने दो
नक्सलियों के सीने में बारूदें फट जाने दो
inke पक्षधरों पर अब बादल फट जाने दो
गद्दारों का भी अब मस्तक कट जाने दो !!!!
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