बेधड़क आवाज
मुट्ठी बांधे सीना ताने लेंगे सबकी खबर !न काहू से डर ,न काहू से भय !!
सोमवार, 12 अक्तूबर 2009
सीखें एक दीप से
एक दीप रात भर अंधेरों से जूझता है ,
लड़ता है -अपने अस्तित्व के लिए ,
अपनी पहचान के लिए
पर कहाँ शिकायत करता है -
आँधियों से ,थपेडों से ,अंधियारों से
जो प्रयत्न करते है कि
दीप का अस्तित्व न रहे !
वह दीप है
बस जलता है
स्वयं के लिए
सब के लिए !
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अभी मंजिल बहत दूर ,कारवां तो अभी चला ही है ! इस तिनके को अभी ,तूफ़ान बनना बाकी है !!
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