शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

किसी के दबाये कब दबी है ...प्रतिभा


कली ने कहा -तुम खिलना छोड़ दो ,
न फूल बनो
और ना ही अपनी खुशबू से ,
सारे संसार को महकाओ ,
वह न मानी
खिली खूब खिली !
फूल बनकर रही
चारों ओर अपनी खुशबू से
संसार को महका दिया !
हिरन ने कहा -तुम दौड़ना छोड़ दो ,
अपनी कस्तूरी गंध को छिपा के रख दो ,
उसने भी न दौड़ना छोड़ा
न अपनी गंध को संजोकर रखा
आगे बढी,देखा एक छोटी सी नदी
बह रही थी ,
उसे रोकने का प्रयास किया
विफल हो गयी
देखती हूँ आगे बढ़कर ,उसने एक
विशाल सरिता का रूप
धारण कर लिया है ,
ओर अब तो वह तीव्र गति से बह रही है !
ऊपर मुख किया तो देखा कि
सूर्य को रोकने की ताकत
मुझमें नहीं
उसका प्रकाश
कम करने की हिम्मत
मुझमें नहीं .......
उसी प्रकार

एक प्रतिभावान व्यक्ति की
प्रतिभा छिप नहीं सकती
दबाई नहीं जा सकती ,
उसकी गति रोकी
नहीं जा सकती ,
उसकी तेजस्विता
कम नहीं की जा सकती
वह कहीं न कहीं दिखाई देती है
उसकी योग्यता दिखाई देती है !

पर ......उग आती हैं बेटियाँ


बोये जाते हैं बेटे
ओर उग आती हैं बेटियाँ
खाद पानी बेटों में
और लहलहाती हैं बेटियाँ
एवरेस्ट की ऊँचाइयों तक ठेले जाते हैं बेटे
ओर चढ़ जाती हैं बेटियाँ
रुलाते हैं बेटे
और रोती हैं बेटियाँ
कई तरह गिरते और गिराते हैं बेटे
और संभाल लेती हैं बेटियाँ
सुख के स्वप्न दिखाते हैं बेटे
जीवन का यथार्थ होती है बेटियाँ
जीवन तो बेटों का है
और .........मारी जाती हैं बेटियाँ .

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

नपुंसक नेता ,भटके नक्सली और हमारी शिकायत

आपने ,हमने ,सबने
सुना ,पढ़ा
दंतेवाडा के क्रूर कारनामे के वक्त
नक्सलियों की क्रूरता तो देखी
लेकिन जवानों को दांव पर लगाने वाले
महानायकों की नपुंसकता किसने देखी ?
कसक दिग्गी राजा की -
अच्छा !नक्सली दुश्मन है ?
बम फोड़ता है ?जवानों को गोली मारता है ?
मगर सुन -दोस्ती में -इतना तो सहना ही पड़ता है
तय है -जरुर खोलेंगे एक और खिड़की -उसकी खातिर
मगर -हम नाराज हैं -तेरे लिए इतना तो कहना ही पड़ता है
तुम भी -बड़े जिद्दी हो -माओवादी भी बेचारे क्या करे
इतने बम फोड़े-इतनी गोलियां चलाईं -शर्म करो
तुमलोग सिर्फ ७६ ही मरे -इतने बेशर्म
चलो ठीक है -इतने कम से भी-उसका हौसला तो बढ़ता है
और फिर -तुम भी तो आखिर ११५ करोड़ हो -
क्या फर्क पड़ता है ?
भटके माओवादियों से मेरी शिकायत -
चुकाना तो पड़ेगा -इस प्यार का कर्जा
राजनेता दुनिया भर से -कर दी है शिकायत -की वो मारता है
दुनिया को फुर्सत मिले -तब तक तू यूँ ही मारते जा
किसे पडी है की -कौन मरा-और मारा गया कौन ?
मरना ही है तो -दर्जनों सैकड़ों नेताओं को मार
इनके लिए भी रख लेंगे ?
दो मिनट का हम मौन ।
समाधान -
ओढ़ी राजनीती ने अनीति की जो चादर है
एक बार उसे तार -तार होने दीजिये !
तो भूखे सिंह शावकों को खोल इसे
भेड़ियों सा शिकार होने दीजिये !!

रविवार, 7 मार्च 2010

केवल एक पक्ष की बात बेईमानी है


देश के साथ -साथ दुनिया भर की " निगाहें "भी आज भारत की और अवश्य होंगी आखिर हो भी क्यों न !सौवीं अंतर्राष्ट्रीय दिवस के मौके पर महिलाओं को ३३ प्रतिशत आरक्षण के सौगात की शुरुआती बाधा जो पार होने वाली है संभव है की आज यह बिल राज्यसभा से पेश और पारित हो जाए !कई महीनों से महगाई की आग में जल रहे आम लोगों की पीडाओं को दबाकर उससे न केवल निजात पाने की अथवा मूल मुद्दों से ध्यान हटाने का तरीका अगर सीखना हो तो वर्तमान कांग्रेसनीत सरकार से बढ़िया और क्या उदहारण हो सकता है
एक तीर से कई शिकार के मुहावरे तो आपने बहुत सुने होंगे ,लेकिन इसे सही निशाने के साथ शिकार करने के रोचक और अदभुत उदाहरण हमारे सामने हैं लेकिन आपको इसके लिए बाहरी आँखों के साथ - साथ अन्दर की आँखे भी खोलनी होगी
पिछले सप्ताह महगाई के मुद्दे पर विपक्ष के तमाम दलों सहित सरकार में बाहर से समर्थन दे रहे सपा ,राजद ने सरकार के नाकों में दम कर रक्खा था !इस एकजुटता के कारण संप्रग सरकार खासा परेशान हो रही थी !एसा प्राचीनकाल में राजा महाराजाओं के समय में भी होता रहा है जब महाराज परेशान होते थे तो उनके चाटुकार दरबारी ,मंत्री आदि उनको समाधान सुझाया करते थे !
आज इस चाटुकारिता की परम्परा को आधुनिक तड़का लगाकर लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ माने जाने वाले मीडिया बखूबी निभा रहें है और अधिकाँश चैनल तथा कुछ हद तक प्रिंट मीडिया के समाचारपत्रों ने भी इस खेल में बखूबी सहयोग किया !तभी तो महगाई से जूझ रहे अरबों लोगों की समस्या के सामने पहले से प्रायोजित योजनाओं के तहत चन्द बाबाओं के कारनामों को प्रचारित -प्रसारित किया जाने लगा जैसे देश के सम्मुख महगाई जैसी विकराल समस्या के आगे ये बाबा ही देश के सबसे बड़े दुश्मन हों !इसका यह कतई मतलब नही लगाया जाना चाहिए की मै इन कारनामों का समर्थन करता हूँ और विगत सप्ताह से चौबीसों घंटे महगाई से पीड़ित जनता के स्वरों की जगह तथाकथित बाबाओं के कारनामों ने चैनलों की टीआरपी बढाने में भरपूर मदद की मीडिया चैनलों की टीआरपी जैसे -जैसे बढ़ती गयी महगाई से पीड़ित आम जनों का स्वर दबता गया न की महगाई दबती गयी तथाकथित बाबाओं के कारनामे अभी समाप्त भी न हुए थे की सरकार द्वारा पहले से तैयार अचूक रामबाण के रूप में मीडिया को महिला आरक्षण के रूप में एक अमोघ और कारगर अस्त्र मिल गया और सरकार को अपने नाकामियों पर परदे डालने का उपयुक्त अवसर
महिलाओं को ३३ प्रतिशत आरक्षण देकर जिस श्रेय को सोनिया पार्टी सहित सहयोगी दल हासिल करना चाहते है उसमे मूल प्रश्नों को उठाने वाला कोई दीखता नहीं !
आज सत्ता के भोगी इन खटमलों से यह सवाल पूछा जाना चाहिए की -
(01)आखिर आजादी के पश्चात ६३ वर्षों के समयांतराल तक जिन कन्धों पर सत्ता रही उन्होंने महिलाओं को पिछड़े पायदान पर क्यों रखा ?उनकी सहभागिता आपने क्यों नहीं बढाई ?
(02)आपके हाथ में अवसर रहने के वाबजूद आपने उन्हें समुचित अवसर क्यों नहीं उपलब्ध कराये ?
(03)अपने परिवार के महिलाओं को तो आपने खूब आगे बढ़ाया लेकिन अन्य महिलायें क्यों पीछे रह गयी ?
(04) क्या इनके लिए ६३ वर्षों का समय बहुत छोटा होता है ?अगर नहीं तो इन ६३ वर्षों के दौरान देश के साथ होने वाले विश्वाशघातों का जबाब कौन देगा ?
(04)केवल राजनेता ही नहीं बल्कि जनता के करों से अपने पेट पोषने वाले प्रशासनिक अधिकारियों को भी यह जबाब देना होगा की इन लम्बे अंतरालों में आखिर उन पिछड़े स्तरों तक ,अंतिम पायदान पर खड़े लोगों तक विकाश की किरणों को क्यों नहीं पहुंचा पाए ?
अपनी नाकामियों को छुपाने का इससे बेहतर क्या हो सकता है की महिला आरक्षण के बहाने लालीपाप थमाकर उनका मुह ही बंद कर दो जिन मुखों से देर सबेर यह आवाज यह प्रश्न अवश्य सत्ता के सीने पर चढ़कर अपने साथ हुए अन्याय का उत्तर मांगेगा
सत्ता के इस घिनोने खेल में मीडिया न केवल उसके एजेंडे को पूरा करते नजर आये बल्कि इस हेतु उन्होंने प्रोपगेंडा का भी भरपूर इस्तेमाल किया !इसका दो उदाहरण हमें मार्च ०६ को डीडी न्यूज तथा जी न्यूज पर दोपहर में प्रसारित कार्यक्रमों में देखने को भी मिला
(01)दोपहर में डीडी न्यूज पर महिला आरक्षण विषय को लेकर सौम्य तरूणी एंकर द्वारा चर्चा प्रसारित की जा रही थी। जिसमें एक ओर अधेड़ लोगों को बैठाया गया था वहीं दूसरी तरफ चौदह से सोलह आयु वर्ग की नौवीं तथा दसवीं में पढ़ने वाली दर्जनों लड़कियाँ बैठी थी। इसके अलावे मुख्य वार्ताकार के रूप मे चार पांच और भी सम्मानीया महिलाएं बैठी थी। एक ओर बीस बाइस लड़कियों / महिलाओं का समूह साथ में एंकर का भी परोक्ष समर्थन था जबकि दूसरी ओर चार से पांच निर्जर- निर्बल पुरूष बैठा था ।अब इससे आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि वार्ता का निष्कर्ष क्या रहा होगा क्या यह प्रोपगेण्डा नहीं था ? जिस अल्प आयु की युवतियों को अभी ठीक प्रकार से घर परिवार की समझ नहीं थी वह स्टूडियो रूम में बैठकर महिला आरक्षण की दिशा और दशा तय कर रही थी।
इसका यह अर्थ नहीं है कि मैं इनके बुद्धिमत्ता पर सवाल खड़े कर रहा हूं, लेकिन ये लडकियां जैसी सवाल कर रही थी उससे जरूर उनके बुद्धि पर सवाल खड़ा होता है। उनमें से एक बहन जी ने अपने पिता के समान पुरूष वर्ग को संबोधित करते हुए बड़े ही आवेश में कहा कि इन लोगों को शर्म आनी चाहिेए कि महिलाओं को देवी के समान पुजने की बात तो करते हैं लेकिन छोटा सा आरक्षण नहीं दे सकते और इस जोरदार तर्क पर उनकी सहेलियों ने ऐसी जोरदार तालियां बजाई कि जिससे लगा कि पहले से यह मैच फिक्स हो और तालियां बजाने के लिए ही लाई गयी हो। वास्तव में कभी कभार डीडी न्यूज पर ऐसा होता भी है पर जीवंत कल देखने को मिल भी गया प्रश्न भी लड़कियों को पहले से लिखकर ही दे दिए गए थे।
(02) दूसरा प्रकरण जी न्यूज पर देखने को मिला दोपहर में प्रसारित महिला आरक्षण से संबंधित पैनल डिस्कशन में एक ओर रंजना कुमारी तथा महिला आयोग की पूर्व अधिकारी समेत कई महिलाएं बैठी थी तो वहीं दूसरी ओर पुरूष के नाम पर एक मात्र ओबीसी समुदाय के नेता थे। सौभाग्य से इस शो की एंकर भी तरूणी महिला ही थी। बार -बार पुरूष नेता के सवाल पर चारों महिला ऐसे टूट पड़ती थी कि महिलाओं के सबसे बड़े खलनायक यही हैं। एक ओर आधा दर्जन महिलाओं का समूह दूसरी ओर अकेला नेता परिणाम क्या होगा यह आप बखूबी समझ सकते हैं यह भी प्रोपगेण्डा का दूसरा प्रकार था ।
अधिकांश मिडिया चैनलों तथा मुद्रित माध्यम के पत्रों ने महिला आरक्षण के मूल स्वरूप का विरोध कर रहे राजद सुप्रीमों लालू यादव, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव तथा जदयू अध्यक्ष शरद यादव को खलनायक के रूप में पेश करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं इन यादवी नेताओं का समर्थक हूं लेकिन मिडिया हाउसों ने ऐसा वातावरण निर्मित किया जैसे महिलाओं के सबसे बड़े दुश्मन ये यादव नेता ही हैं।
इन विवादों में मूल प्रश्न अनुत्तरित ही रह गया जिसका जबाव मिलना अभी बाकी है कि आखिर आजादी के तिरेसठ वर्षों के बाद भी महिलाओं का उत्थान क्यों नहीं हो पाया ? क्या अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए सत्ता तंत्र आरक्षण का सहारा नहीं ले रहें हैं ?आखिर आरक्षण के बैशाखी के सहारे पुरूष और स्त्री के बीच दरार नहीं डाल रहे ?
कहीं पश्चिम की अवधारणाओं( जिसमें महिला को प्रोडक्ट माना जाता है ) को तो नहीं अप्रत्यक्ष रूप से विस्तारित किया जा रहा है जिसके दूरगामी परिणाम गंभीर और घातक होंगे समय रहते सचेत रहने की जरुरत है अन्यथा हाथ मलने के सिवाय हाथ में कुछ और नहीं बच जाएगा।

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

यादवी दीवारों में दबती जनता




एक कहावत है -
राजा अगर राम हुआ तो सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ेगा ,और राजा अगर रावण हुआ तो सीता हरी जायेगी !
राजा अगर पांडव हुआ तो द्रोपदी जुए में हारी जायेगी ,और राजा अगर कौरव हुआ तो उसका चीर हरण होगा !
राजा अगर हिन्दू हुआ तो जनता जलाई जायेगी ,और राजा अगर मुसलमान हुआ तो जनता दफनाई जायेगी!

पिसती आखिर जनता ही है !

अगस्त १८,२००८ !कोसी वासियों के लिए काला अध्याय !कोसी मैया के प्रकोप ने यूँ कहर ढाया की लोगों में हाहाकार मच गया !अचानक आयी भयंकर बाढ़ ने न केवल लोगों के घर उजारे वरण हजारों मांगों की सिन्दूरं पोंछ गयी !अनेक माओं की गोद सूनी हुई तो लाखों पशु काल के गाल में समा गए !लोगों के पास बच गए तो केवल फटेहाल बदन और उअर खुला गगन !लोग दाने -दाने को मोहताज हो गए !आवागमन के सारे साधन तहस -नहस हो गए !
कुछ दिनों तक तो बाढ़ राहत के सामानों से पेट भरा परन्तु लोगों के सामने समस्या थी की वे जाये कहाँ ?क्योंकि अब उनके पास कुछ भी नहीं बच गया था !न रहने का घर और न खाने को अन्न !परन्तु इससे अधिक तो नेताओं की कारगुजारियों ने उन्हें रुलाया !पुनर्वास के नाम पर केंद्र से करोड़ों झटके परन्तु सत्ता के ये घिनोने दलाल अपनों में ही उसे गटक गए ! लेकन स्थानीय सांसद शरद यादव द्वारा किये प्रयासों का वर्णन करते अघाते थकते नहीं उनके जिलाध्यक्ष रामानंद यादव उर्फ़ "झल्लू बाबू" !
श्री यादव कहते हैं -" हमारी जदयू सरकार ने हरसंभव लोंगों को जीवन -यापन के लायक सामान मुहैया कराई है तथा फसलो के नुकसान का मुआवजा भी दिया जा रहा है ! "परन्तु असलियत है की ५० हजार प्रति एकड़ लागत की जगह किसानों को २०० से ५०० रु प्रति एकड़ ही मुआवजा मिल रहा है !वह भी दफ्तरों के लाखों चक्कर काटने के बाद !
दूसरी ओर पूर्व सांसद रहे लालू यादव के नजदीकी तथा पूर्व राजद प्रत्याशी रवीन्द्र चरण लालू गुणगान करते थकते नहीं !रवीन्द्र चरण कहतें हैं - "लालू यादव के दवाब तथा प्रयासों के कारण ही केंद्र सरकार ने १२०० करोड़ की सहाता राशि तत्काल उपलब्द्ध कराई !तथा हमारे नेता ने उस समय रेल मंत्रालय की ओर से भी भरपूर सहायता की !पर राज्य सरकार ठीक से उसे खर्च ही नहीं कर पा रही है !"
सबके अपने -अपने दावे !लेकिन लोगों की दयनीय स्थिति इन दावों की हवा निकल देती है !लोगों की पहली जरूरत है की उनके पास रहने लायक घर तो हो !परन्तु अपने बलबूते घर बनाना इतना आसान नहीं! हालांकि इंदिरा आवास योजना के तहत कुछ लोगों को २५ -२५ हजार की सहायता राशि मिली है लेकिन बाढ़ से प्रभावित लाखों जनता के सामने यह संख्या बहुत छोटी है !केवल मधेपुरा में बढ़ से १४ लाख लोग प्रभावित हुए हैं !
कोसी के लोगों के जीविका का मुख्य आधार खेती है !परन्तु तबाह हो चुके लोगों के पास खेती लायक साधन नहीं !ऊपर से बढ़ती महगाई ने खाद बीजों के दामों में इतनी बढ़ोतरी कर दी है की किसानों के लिए बीज खरीदना ही मुश्किल हो रहा है !खाद पानी की जुगाड़ तो दूर की बात ! ऊपर से पेट्रोल और डीजल के बढे दामों ने उनके खेती पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है !किसान हतास -निराश है कि आखिर खेतों का पटवन कैसे हो ?और बिना पटवन के फसलें तो मारीं जायेंगी !
रुदन कर रहे लोग, उनके परिवार, बच्चे पर महगाई कब तरस खाकर अपना ग्राफ नीचे करती है यह तो केन्द्रीय सत्ता -प्रतिष्ठान ही शायद बेहतर बता सकती हैं!
मधेपुरा के लोगों का क्या कुसूर की उन पर टूटा एक और कोसी का कहर तो दूसरी और नेताओं ने उन्हें छाला !कभी पिछड़ों के हिमायती के नाम पर लालू यादव ,युवा शक्ति के नाम पर पप्पू यादव तो कभी विकास के नाम पर शरद यादव !पर यहाँ के लोगों के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया !हकीकत यही है की हमेशा इन यादवी दीवारों के नीचे जनता दबती ही गयी !और पिछड़ों के नाम पर ये यादव असुर नेता अपने परिवारों का पेट भरते रहे !कभी तिहार में बैठे पप्पू यादव, तो हमेशा दिल्ली से रिमोट कंट्रोल से संचालित करते शरद यादव !लेकिन लोगों के जीवन में न कोई उत्थान न कोई परिवर्तन !हाँ पंजाब और हरियाणा के मजदूरी के बल पर अपने पापी पेट तो भर ही लेते हैं !क्या उनके लिए विकास के यही मायने हैं ?

रविवार, 7 फ़रवरी 2010

विश्व मंच पर लहराता हिंदी का परचम

एक ओर जहां विश्व हिंदी सम्मलेन और प्रवासी हिंदी सम्मलेन आयोजित हो रहे हैं ,वहीं दूसरी ओर हिंदी पट्टी में पाठकीयता के संकट को लेकर चिंता व कई तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं !एक ओर हिंदी के विस्तृत होते दायरे की बुनियाद पर इसे संयुक्त राष्ट्रसंघ में जगह दिलाने की मांग हो रही है तो दूसरी ओर हिंदी साहित्य के पाठकों की कमी का रोना रोया जा रहा है !एक ओर हिंदी फिल्मों एवं हिंदी विज्ञापनों का बढ़ता जबरदस्त बाजार इसके वैश्विक प्रसार को दर्शाते हैं तो दूसरी ओर अपनों की बेवफाई से अपने ही घरों में घायल कराहती हिंदी कुछ ओर ही कहने को तत्पर दिखती हैं !हिंदी को लेकर इन दो परस्पर विरोधाभाषी तथ्यों के आलोक में यह सवाल उठता है की आखिर सच क्या है ?क्या हिंदी पाठकों की बढी हुई संख्या अंगरेजी के बर्चस्व की कमी को सूचित नहीं करती है !(मालूम होकी ताजा आंकड़ों के अनुसार महत्वपूर्ण दैनिक पत्रों ने अपने पाठकों की संख्या १९१ मिलियन से लगभग २५० मिलियन में महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की है ,जबकि अंगरेजी दैनिक लगभग ३० मिलियन पाठकों के साथ काफी पीछे हैं !) क्या वाकई में हिंदी पट्टी में पाठकीयता का संकट है या मामला राड़-रुदन का है !राड़ -रुदन यानी संकट पाठकों के पाठकीयता का नहीं बल्कि कुछ ओर ही है !
गौरतलब है की विगत कुछ वर्षों में हिंदी का बर्चस्व बढ़ा है ओर इस बर्चस्व में उत्तरोत्तर बढ़ावा ही हो रहा है !कल तक हिंदी हाशिये पर खड़ी नजर आती थी और हिंदी बोलना ,लिखना ओर पढ़ना पिछड़ेपन की पहचान समझा जाता था !उपेक्षा व हिकारत भरी नज़रों से देखने वाले लोग आज हिंदी के खासकर वैश्विक स्तर पर बढ़ते बर्चस्व को नकार पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते है ! अपने को अभिजात्य समझने वाले अंग्रेजीदा लोगों के ड्राइंग रूमों टाक हिंदी पहुँच गयी है ! यह अलग बात है की उनके घरों की शोभा बनकर रह जाती है ! आज बाजार के विज्ञापन की मुख्य भाषा हिंदी ही है !क्योंकि हिंदी के माध्यम से ही बाजार उपभोक्ताओं के एक बहुत बड़े वर्ग तक अपनी पहुँच और पकड़ बनाने में कामयाब हो सका है !यह दीगर बात है की बाजार की इस हिंदी का अपना एक बाजारू रूप है ,किन्तु है तो वह हिंदी ही जो यह साबित करती है की हिंदी भाषा का क्षेत्र कितना विस्तृत और व्यापक प्रभाव लिए हुए है !
भाषा किसी राष्ट्र की संस्कृति का वाहक होता है !किसी प्रान्त विशेष या राष्ट्र विशेष की रहन -सहन ,खान -पान,आचर -विचार इत्यादि से वहाँ पर बोली और समझे जाने वाली भाषा यानी शब्द समूह ,बोलने की शैली ,उच्चारण आदि से बोध होता है! भारत की संस्कृति की गरिमा हिंदी भाषा के जरिये विश्व के कोने -कोने में फ़ैल रही है इसमें कोई शक नहीं !हिंदी भाषा विश्व के जनमानस में विश्वभाषा का रूप धीरे -धीरे धारण कर रहा है !भारत में राजभाषा ,राष्ट्रभाषा तथा संपर्क भाषा के रूप में कच्छप गति से हिंदी की प्रतिष्ठा बढ़ रही है ! अब प्रश्न उठता है की जब भारत में १५ बड़ी भाषा में एसी कौन सी खासियत है जिसकी वजह से भारत में राष्ट्र भाषा तथा विश्व में वैश्विक रूप में हिंदी मान्यता प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हो रही है !
उत्तर में कहना होगा कि -हिंदी भाषा में जो संवहन तथा सम्प्रेषण की क्षमता है वह अन्य भाषाओं की अपेक्षा निराली है !वह एक सहज ,सरल तथा कोमल मधुर भाषा ही नहीं बल्कि अन्य भाषाओं के शब्दों को हृदयंगम करने कि सहिष्णुता भी रखती हैं !इसकी मधुर संगीतात्मक ध्वनियाँ चित्त को मनोहर ढंग से आकर्षित करती है ! हन्दी भाषा में यह गुण विद्यमान है कि वह मन की गहनतम और सूक्ष्मतम अनुभूतियों को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त कर सकती है !यह एक जीवंत भाषा है जो शब्दों की छुआछूत नहीं मानती ,शब्द किधर से भी आ जाए सहर्ष स्वीकार करती है !
इसी स्वीकार्यता का परिणाम है की आज विश्व में कोई ६० करोड़ हिंदी बोलने वाले ,८० करोड़ समझने वाले और अंगरेजी और चीनी के बाद तीसरी सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा बन गयी है ! जागरण न्यूज नेटवर्क के अनुसार आज नेपाल में ८६ लाख ,अमेरिका में ३१ लाख ७ हजार ,मारीशस में ६८ लाख ५ हजार ,दक्षिण अफ्रीका में ८ लाख ९ हजार ,यमन में २ लाख ३३ हजार ,युगांडा में १ लाख ४७ हजार ,सिंगापुर में ५ हजार ,न्यूजीलैंड में २० हजार तथा जर्मनी में ३० हजार से अधिक लोग हिंदी बोलने वाले है !
फिजी ,मारीशस ,गुयाना ,सूरीनाम ,त्रिनिदाद एवं टोबैगो एवं संयुक्त अरब अमीरात में हिंदी अल्पसंख्यक भाषा है !जबकि विश्व के ९३ देशों में संगठित रूप से हिंदी पढ़ाई जा रही है !
जिसमे एशिया में नेपाल ,वर्मा ,थाईलैंड ,सिंगापुर ,मलेशिया ,इंडोनेशिया ,अफ्रीका में मारीशस ,ला रीयूनियन ,केनिया ,रंजानिया ,युगांडा ,योरोप में इंग्लैण्ड ,नैदरलैंड,बेल्जियम ,जर्मनी ,दक्षिणी अमेरिका के आसपास के क्षेत्रों में त्रिनिदाद ,गुयाना ,सूरीनाम ,जमैका ,प्रशांत महासागर वाले क्षेत्रों में न्यूजीलैंड ,आस्ट्रेलिया और फिजी तथा मध्य पूर्व के देशों में दुबई शामिल है जहां की एक बड़ी संख्या में भारतीय निवास करते हैं! य़ू के में वेल्स को हटाकर दूसरी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा हिंदी बन गयी है !लगभग ८ वर्ष पूर्व एक स्वयंसेवी संस्था " हिंदी usa " की स्थापना न्यूजर्सी में की गयी जिसका उद्देश्य बच्चों को हिंदी बोलना पढ़ना और लिखना सिखाकर भारतीय संस्कृति को बचाना है !हिंदी USA हिंदी की २५ पाठशालाएं चलाती हैं जिसमे १६०० से अधिक विद्यार्थी हिंदी के नौ स्तरों में शिक्षा ग्रहण करते हैं !अमेरिका से निकल रही पत्रिकाओं में हिंदी जगत ,सौरभ ,विश्वा ,विश्व विवेक ,विज्ञान प्रकाश और बल हिंदी जगत प्रमुख हैं !यही नहीं विश्व हिंदी न्यास का न्यास समाचार ,बिहार संघ की वैशाली ,आर्य प्रतिनिधि सभा का पत्र,द्विभाषी पत्रिका नवरंग टाइम्स और वाशिंगटन डी सी से प्रकाशित लोकमत भी समय -समय पर अपनी आभा बिखेरती है !
मूलतः मुजफारपुर (बिहार ) के रहने वाले तथा हिंदी और हिन्दुस्थान को अपने जीवन में जीने वाले रशिया (रूस ) से MBBS की पढाई कर रहे श्री सौरभ दत्ता कहते हैं -"गैरों में कहाँ दम था अपनों की वेबफाई ने ही रुलाया था "!हिंदी आज अपने ही घरो में अपमानित हो रही है !तथाकथित बुद्धिजीवी खाते तो हैं हिंदी की रोटी और बोलते तथा जीते हैं अंगरेजी और अंग्रेजियत को !वे सचेत करते हुए कहते है की हम भारतीयों को पश्चिम की तरफ देखने व जूठी प्लेटे चाटने की आदत पड़ती जा रही है !हिंदी की स्वीकार्यता को सारी दुनिया स्वीकार कर रही है अपितु इसके की हम इसको हिंगलिश का रूप दे हिंदी की मौलिकता से खिलवाड़ कर रहेहै !समय रहते सचेत रहना जरूरी है !भारतीय भाषाओं से सम्बंधित कार्य भारतीयों को ही करना है !इस कार्य को करने के लिए संपन्न और योग्य हैं ! इसी में हिंदी के उन्नति का मार्ग प्रशस्त होगा !