आपने ,हमने ,सबने
सुना ,पढ़ा
दंतेवाडा के क्रूर कारनामे के वक्त
नक्सलियों की क्रूरता तो देखी
लेकिन जवानों को दांव पर लगाने वाले
महानायकों की नपुंसकता किसने देखी ?
कसक दिग्गी राजा की -
अच्छा !नक्सली दुश्मन है ?
बम फोड़ता है ?जवानों को गोली मारता है ?
मगर सुन -दोस्ती में -इतना तो सहना ही पड़ता है
तय है -जरुर खोलेंगे एक और खिड़की -उसकी खातिर
मगर -हम नाराज हैं -तेरे लिए इतना तो कहना ही पड़ता है
तुम भी -बड़े जिद्दी हो -माओवादी भी बेचारे क्या करे
इतने बम फोड़े-इतनी गोलियां चलाईं -शर्म करो
तुमलोग सिर्फ ७६ ही मरे -इतने बेशर्म
चलो ठीक है -इतने कम से भी-उसका हौसला तो बढ़ता है
और फिर -तुम भी तो आखिर ११५ करोड़ हो -
क्या फर्क पड़ता है ?
भटके माओवादियों से मेरी शिकायत -
चुकाना तो पड़ेगा -इस प्यार का कर्जा
राजनेता दुनिया भर से -कर दी है शिकायत -की वो मारता है
दुनिया को फुर्सत मिले -तब तक तू यूँ ही मारते जा
किसे पडी है की -कौन मरा-और मारा गया कौन ?
मरना ही है तो -दर्जनों सैकड़ों नेताओं को मार
इनके लिए भी रख लेंगे ?
दो मिनट का हम मौन ।
समाधान -
ओढ़ी राजनीती ने अनीति की जो चादर है
एक बार उसे तार -तार होने दीजिये !
तो भूखे सिंह शावकों को खोल इसे
भेड़ियों सा शिकार होने दीजिये !!
शनिवार, 17 अप्रैल 2010
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