रविवार, 7 मार्च 2010

केवल एक पक्ष की बात बेईमानी है


देश के साथ -साथ दुनिया भर की " निगाहें "भी आज भारत की और अवश्य होंगी आखिर हो भी क्यों न !सौवीं अंतर्राष्ट्रीय दिवस के मौके पर महिलाओं को ३३ प्रतिशत आरक्षण के सौगात की शुरुआती बाधा जो पार होने वाली है संभव है की आज यह बिल राज्यसभा से पेश और पारित हो जाए !कई महीनों से महगाई की आग में जल रहे आम लोगों की पीडाओं को दबाकर उससे न केवल निजात पाने की अथवा मूल मुद्दों से ध्यान हटाने का तरीका अगर सीखना हो तो वर्तमान कांग्रेसनीत सरकार से बढ़िया और क्या उदहारण हो सकता है
एक तीर से कई शिकार के मुहावरे तो आपने बहुत सुने होंगे ,लेकिन इसे सही निशाने के साथ शिकार करने के रोचक और अदभुत उदाहरण हमारे सामने हैं लेकिन आपको इसके लिए बाहरी आँखों के साथ - साथ अन्दर की आँखे भी खोलनी होगी
पिछले सप्ताह महगाई के मुद्दे पर विपक्ष के तमाम दलों सहित सरकार में बाहर से समर्थन दे रहे सपा ,राजद ने सरकार के नाकों में दम कर रक्खा था !इस एकजुटता के कारण संप्रग सरकार खासा परेशान हो रही थी !एसा प्राचीनकाल में राजा महाराजाओं के समय में भी होता रहा है जब महाराज परेशान होते थे तो उनके चाटुकार दरबारी ,मंत्री आदि उनको समाधान सुझाया करते थे !
आज इस चाटुकारिता की परम्परा को आधुनिक तड़का लगाकर लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ माने जाने वाले मीडिया बखूबी निभा रहें है और अधिकाँश चैनल तथा कुछ हद तक प्रिंट मीडिया के समाचारपत्रों ने भी इस खेल में बखूबी सहयोग किया !तभी तो महगाई से जूझ रहे अरबों लोगों की समस्या के सामने पहले से प्रायोजित योजनाओं के तहत चन्द बाबाओं के कारनामों को प्रचारित -प्रसारित किया जाने लगा जैसे देश के सम्मुख महगाई जैसी विकराल समस्या के आगे ये बाबा ही देश के सबसे बड़े दुश्मन हों !इसका यह कतई मतलब नही लगाया जाना चाहिए की मै इन कारनामों का समर्थन करता हूँ और विगत सप्ताह से चौबीसों घंटे महगाई से पीड़ित जनता के स्वरों की जगह तथाकथित बाबाओं के कारनामों ने चैनलों की टीआरपी बढाने में भरपूर मदद की मीडिया चैनलों की टीआरपी जैसे -जैसे बढ़ती गयी महगाई से पीड़ित आम जनों का स्वर दबता गया न की महगाई दबती गयी तथाकथित बाबाओं के कारनामे अभी समाप्त भी न हुए थे की सरकार द्वारा पहले से तैयार अचूक रामबाण के रूप में मीडिया को महिला आरक्षण के रूप में एक अमोघ और कारगर अस्त्र मिल गया और सरकार को अपने नाकामियों पर परदे डालने का उपयुक्त अवसर
महिलाओं को ३३ प्रतिशत आरक्षण देकर जिस श्रेय को सोनिया पार्टी सहित सहयोगी दल हासिल करना चाहते है उसमे मूल प्रश्नों को उठाने वाला कोई दीखता नहीं !
आज सत्ता के भोगी इन खटमलों से यह सवाल पूछा जाना चाहिए की -
(01)आखिर आजादी के पश्चात ६३ वर्षों के समयांतराल तक जिन कन्धों पर सत्ता रही उन्होंने महिलाओं को पिछड़े पायदान पर क्यों रखा ?उनकी सहभागिता आपने क्यों नहीं बढाई ?
(02)आपके हाथ में अवसर रहने के वाबजूद आपने उन्हें समुचित अवसर क्यों नहीं उपलब्ध कराये ?
(03)अपने परिवार के महिलाओं को तो आपने खूब आगे बढ़ाया लेकिन अन्य महिलायें क्यों पीछे रह गयी ?
(04) क्या इनके लिए ६३ वर्षों का समय बहुत छोटा होता है ?अगर नहीं तो इन ६३ वर्षों के दौरान देश के साथ होने वाले विश्वाशघातों का जबाब कौन देगा ?
(04)केवल राजनेता ही नहीं बल्कि जनता के करों से अपने पेट पोषने वाले प्रशासनिक अधिकारियों को भी यह जबाब देना होगा की इन लम्बे अंतरालों में आखिर उन पिछड़े स्तरों तक ,अंतिम पायदान पर खड़े लोगों तक विकाश की किरणों को क्यों नहीं पहुंचा पाए ?
अपनी नाकामियों को छुपाने का इससे बेहतर क्या हो सकता है की महिला आरक्षण के बहाने लालीपाप थमाकर उनका मुह ही बंद कर दो जिन मुखों से देर सबेर यह आवाज यह प्रश्न अवश्य सत्ता के सीने पर चढ़कर अपने साथ हुए अन्याय का उत्तर मांगेगा
सत्ता के इस घिनोने खेल में मीडिया न केवल उसके एजेंडे को पूरा करते नजर आये बल्कि इस हेतु उन्होंने प्रोपगेंडा का भी भरपूर इस्तेमाल किया !इसका दो उदाहरण हमें मार्च ०६ को डीडी न्यूज तथा जी न्यूज पर दोपहर में प्रसारित कार्यक्रमों में देखने को भी मिला
(01)दोपहर में डीडी न्यूज पर महिला आरक्षण विषय को लेकर सौम्य तरूणी एंकर द्वारा चर्चा प्रसारित की जा रही थी। जिसमें एक ओर अधेड़ लोगों को बैठाया गया था वहीं दूसरी तरफ चौदह से सोलह आयु वर्ग की नौवीं तथा दसवीं में पढ़ने वाली दर्जनों लड़कियाँ बैठी थी। इसके अलावे मुख्य वार्ताकार के रूप मे चार पांच और भी सम्मानीया महिलाएं बैठी थी। एक ओर बीस बाइस लड़कियों / महिलाओं का समूह साथ में एंकर का भी परोक्ष समर्थन था जबकि दूसरी ओर चार से पांच निर्जर- निर्बल पुरूष बैठा था ।अब इससे आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि वार्ता का निष्कर्ष क्या रहा होगा क्या यह प्रोपगेण्डा नहीं था ? जिस अल्प आयु की युवतियों को अभी ठीक प्रकार से घर परिवार की समझ नहीं थी वह स्टूडियो रूम में बैठकर महिला आरक्षण की दिशा और दशा तय कर रही थी।
इसका यह अर्थ नहीं है कि मैं इनके बुद्धिमत्ता पर सवाल खड़े कर रहा हूं, लेकिन ये लडकियां जैसी सवाल कर रही थी उससे जरूर उनके बुद्धि पर सवाल खड़ा होता है। उनमें से एक बहन जी ने अपने पिता के समान पुरूष वर्ग को संबोधित करते हुए बड़े ही आवेश में कहा कि इन लोगों को शर्म आनी चाहिेए कि महिलाओं को देवी के समान पुजने की बात तो करते हैं लेकिन छोटा सा आरक्षण नहीं दे सकते और इस जोरदार तर्क पर उनकी सहेलियों ने ऐसी जोरदार तालियां बजाई कि जिससे लगा कि पहले से यह मैच फिक्स हो और तालियां बजाने के लिए ही लाई गयी हो। वास्तव में कभी कभार डीडी न्यूज पर ऐसा होता भी है पर जीवंत कल देखने को मिल भी गया प्रश्न भी लड़कियों को पहले से लिखकर ही दे दिए गए थे।
(02) दूसरा प्रकरण जी न्यूज पर देखने को मिला दोपहर में प्रसारित महिला आरक्षण से संबंधित पैनल डिस्कशन में एक ओर रंजना कुमारी तथा महिला आयोग की पूर्व अधिकारी समेत कई महिलाएं बैठी थी तो वहीं दूसरी ओर पुरूष के नाम पर एक मात्र ओबीसी समुदाय के नेता थे। सौभाग्य से इस शो की एंकर भी तरूणी महिला ही थी। बार -बार पुरूष नेता के सवाल पर चारों महिला ऐसे टूट पड़ती थी कि महिलाओं के सबसे बड़े खलनायक यही हैं। एक ओर आधा दर्जन महिलाओं का समूह दूसरी ओर अकेला नेता परिणाम क्या होगा यह आप बखूबी समझ सकते हैं यह भी प्रोपगेण्डा का दूसरा प्रकार था ।
अधिकांश मिडिया चैनलों तथा मुद्रित माध्यम के पत्रों ने महिला आरक्षण के मूल स्वरूप का विरोध कर रहे राजद सुप्रीमों लालू यादव, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव तथा जदयू अध्यक्ष शरद यादव को खलनायक के रूप में पेश करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं इन यादवी नेताओं का समर्थक हूं लेकिन मिडिया हाउसों ने ऐसा वातावरण निर्मित किया जैसे महिलाओं के सबसे बड़े दुश्मन ये यादव नेता ही हैं।
इन विवादों में मूल प्रश्न अनुत्तरित ही रह गया जिसका जबाव मिलना अभी बाकी है कि आखिर आजादी के तिरेसठ वर्षों के बाद भी महिलाओं का उत्थान क्यों नहीं हो पाया ? क्या अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए सत्ता तंत्र आरक्षण का सहारा नहीं ले रहें हैं ?आखिर आरक्षण के बैशाखी के सहारे पुरूष और स्त्री के बीच दरार नहीं डाल रहे ?
कहीं पश्चिम की अवधारणाओं( जिसमें महिला को प्रोडक्ट माना जाता है ) को तो नहीं अप्रत्यक्ष रूप से विस्तारित किया जा रहा है जिसके दूरगामी परिणाम गंभीर और घातक होंगे समय रहते सचेत रहने की जरुरत है अन्यथा हाथ मलने के सिवाय हाथ में कुछ और नहीं बच जाएगा।